सूर्य नमस्कार सेहत का सुरक्षा कवच

By: Dilip Kumar
12/16/2017 1:22:26 PM
नई दिल्ली

सूर्य नमस्कार 12 आसनों का एक ऐसा समूह है, जो शरीर की प्रत्येक कोशिका के साथ-साथ रक्त संचालन, पाचन, श्वसन, मल निष्कासन, नाड़ी तथा ग्रंथितंत्र को सक्रिय, सशक्त तथा संतुलित बनाता है। यह गतिशील तथा स्थिर दोनों प्रकार के आसनों का एक संयुक्त विकल्प प्रस्तुत करता है। यह स्वयं अपने आप में एक पूर्ण व्यायाम है। तो आइए, इसका अभ्यास करते हैं।

स्थिति-1 (प्रणामासन)

दोनों पैर के पंजों को आसन में मिलाते हुए सीधे खड़े हो जाएं। दोनों हाथों की हथेलियों को सीने के सामने प्रणाम की मुद्रा में रखें। एक गहरी श्वास प्रश्वास (सजगता) के साथ मन में ऊं मित्राय नम: का उच्चारण करें।

स्थिति-2 (हस्त-उत्तानासन

अब दोनों हाथों को सिर के ऊपर (सीधा) उठाते हुए हाथ तथा धड़ को यथासम्भव पीछे ले जाएं। इस स्थिति में सजग रहते हुए ऊं रवये नम: मंत्र का उच्चारण करें।

स्थिति-3 (पादहस्तासन)

हस्त उत्तानासन के अभ्यास के तुरन्त बाद श्वास धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए धड़ को आगे की ओर इतना झुकाएं कि हथेलियां दोनों पैरों के बगल में जमीन पर आ जाएं। माथा घुटने को स्पर्श करता हो। पैर सीधे रखें। इस स्थिति में सजग रहते हुए ऊं सूर्याय नम: मंत्र का मानसिक उच्चारण करें।

स्थिति-4 (अश्व संचालन आसन)

अब दांये पैर को जितना संभव हो, पीछे ले जाएं। बांये पैर को दोनों हाथों के बीच में घुटने से मोड़कर रखें। सिर को पीछे उठाएं, कमर को धनुषाकार बनाएं तथा दृष्टि को ऊपर की तरफ रखें। इस स्थिति में सजग हुए मन में ऊं भानवे नम: मंत्र का उच्चारण करें।

स्थिति-5 (पर्वतासन)

अब श्वास अन्दर लेते हुए बांये पैर को भी दांये पैर के पास पीछे ले जाकर नितम्ब को अधिकतम ऊपर की ओर ले जाएं। सिर को दोनों हाथों के बीच में रखें। प्रयास करें कि एड़ियां जमीन को स्पर्श करें। सजग रहते हुए मन में ऊं खगाय नम: मंत्र का उच्चारण करें।

स्थिति-6 (अष्टांग नमस्कार)

पर्वतासन के अभ्यास के तुरन्त बाद श्वास बाहर निकालते हुए पूरे शरीर को नीचे जमीन पर इस प्रकार लाएं कि शरीर के आठ अंग जमीन पर हों तथा शेष अंग जमीन के ऊपर। ठुड्डी, दोनों हथेलियां, छाती, दोनों घुटने तथा दोनों पंजे जमीन को स्पर्श करने के कारण ही इसे अष्टांग नमस्कार कहते हैं। सजग रहते हुए मन में ऊं पूष्णे नम: मंत्र का उच्चारण करें।

स्थिति-7 (भुजंगासन)

अब धड़ को यथासंभव ऊपर उठाएं। हाथों को सीधा कर लें। यह क्रिया श्वास अन्दर लेते हुए करें। कमर के ऊपर का भाग जमीन से ऊपर तथा कमर के नीचे का भाग जमीन पर रखें। इस स्थिति में सजग रहते हुए ऊं हिरण्य गर्भाय नम: मंत्र का उच्चारण करें।

स्थिति नं.8 (पर्वतासन)

स्थिति 8 में पुन: पर्वतासन में आएं। सजग रहते हुए ऊं मरीच्ये नम: मंत्र का उच्चारण करें।

स्थिति नं. 9 (अश्वसंचालन आसन)

स्थिति 9 में श्वास बाहर निकालते हुए पुन: अश्वसंचालन आसन में आएं। इस स्थिति में सजग रहते हुए ऊं आदित्याय नम: मंत्र का उच्चारण करें। इस स्थिति में बांया पैर आगे तथा दांया पैर पीछे रहता है।

स्थिति नं.10 (पाद हस्तासन)

अब ऊं सवित्रे नम: नामक मंत्र का उच्चारण करते हुए वापस पादहस्तासन में आएं।

स्थिति नं.11 (हस्त उत्तानासन)

ऊं अर्काय नम: नामक मंत्र का उच्चारण करते हुए पुन: हस्त उत्तानासन में वापस आएं।

स्थिति नं. 12 (प्रणामासन)

अन्त में ऊं भास्काराय नम: मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रणामासन में वापस आएं।
बेहतर परिणाम के लिए शाकाहारी भोजन लें

सूर्य नमस्कार एवं यौगिक क्रियाओं का अभ्यास करने वाले व्यक्ति को संतुलित, पौष्टिक तथा शाकाहारी भोजन लेना चाहिए।
ध्यान देंएक से बारह तक वर्णित स्थितियों को मिलाकर सूर्य नमस्कार का आधा चक्र होता है। शेष आधे चक्र में पुन: ऊपर वर्णित एक से बारह स्थितियों को दुहराया जाता है। अंतर केवल इतना होता है कि पूर्वार्द्ध चक्र में अश्वसंचालन स्थिति में दांये पैर को पीछे रखते हैं, जबकि उत्तरार्ध में बांये पैर को पीछे रखते हैं।

इन बातों का रखें ख्याल: हर्निया, स्लिप डिस्क, सर्वाइकल तथा पीठ के तीव्र दर्द से ग्रस्त लोग इसका अभ्यास बिल्कुल भी न करें। किसी अन्य गंभीर रोग से ग्रस्त लोग भी इसका अभ्यास योग्य मार्गदर्शन में ही करें। गर्भावस्था में भी इसका अभ्यास न करें।
थोड़ी सावधानी है जरूरी

0 क्षमता से अधिक चक्रों का अभ्यास या शरीर पर अनावश्यक जोर डालने का प्रयास न करें।
0 प्रारम्भ में इसे जल्दी-जल्दी (गतिशील) करें तथा अन्य आसनों के अभ्यास के पूर्व करें। बाद में इसे धीरे-धीरे स्थिरतापूर्वक करें। इसके पश्चात अन्य स्थिर आसनों का अभ्यास किया जा सकता है।
फायदे हैं अनेक
0 इसके अभ्यास से शरीर की सभी प्रणालियां व तंत्रिका तंत्र क्रियाशील होते हैं।
0 शरीर की सभी प्रकार की स्थूलता घटती है एवं शरीर हल्का और फुर्तीला हो जाता है। यह मोटापा तथा अति दुबलापन दोनों को दूर करता है।
0 रीढ़ को लचीला बनाता है एवं रक्त संचार में तेजी लाता है। मांसपेशियों को सशक्त करता है।
0 स्मरण शक्ति तथा मस्तिष्क के दोनों गोलार्धों को सक्रिय एवं मजबूत बनाता है।
0 शरीर के किसी भी अंग में मौजूद अनावश्यक चर्बी को दूर करता है। कब्ज तथा पाचन संस्थान को सशक्त करता है।


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