सवाल न्यायपालिका की गरिमा का

By: Devendra Gautam
9/11/2017 9:38:41 AM
new delhi

-नागेंद्र प्रसाद

हाल में राहुल गांधी ने कहा था कि  न्यायपालिका में और सारे कार्यालयों में आरएसएस की मानसिकता वाले लोगों को भरा जा रहा हैं | यह कथन बेहद दुःखद हैं | साथ ही सही मायनों में राष्ट्र का अपमान है | भारतवर्ष का लोकतंत्र दुनिया में सबसे बड़ा माना जाता हैं | यह लोकतंत्र चार स्तंभों पर टिका हुआ हैं न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया। न्यायपालिका को हमारे देश में न्याय का मंदिर माना जाता है l न्याय के इस मंदिर में, राजा या रंक सबको न्याय के समान तराजू में तोला जाता हैं | उसकी मान्यता हैं की दस गुनहगार अगर सबूतों के अभाव में मुक्त हो जाएं तो हो जाएं l मगर एक भी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए | न्यायपालिका पर सारे देश की आस्था हैं | भारत की न्याय प्रणाली का दुनिया सम्मान करती है| ऐसे में न्याय के मंदिर सदृश देश की न्यायपालिका पर ओछी टिप्पणी द्वारा क्या सन्देश देने की कोशिश की गयी और किसे। यह विषय गंभीर हैं| ऐसी बातें व्यक्ति की विकृत मानसिकता का ही परिचायक हो सकती हैं| राष्ट्रद्रोहियों को टौनिक देने वाली| स्पष्ट है कि ऐसी बातों के द्वारा न्यायपालिका की छवि पर ग्रहण लगाने का कुत्सित प्रयास किया गया है। ऐसे बयानों से राष्ट्रद्रोही, भ्रष्ट चरित्रवाले, आतंकवादियों और हर प्रकार के गुनहगारों को न्यायपालिका के निष्पक्ष फैसलों को विवादास्पद बनाने की गुंजाइश  को प्रोत्साहन और ताकत मिलती है। आतंकी अजमल कसाब को भी न्यायपालिका की निष्पक्ष न्याय प्रदान करने की शैली दुनिया ने देखी| याकूब मेनन जैसे राष्ट्रद्रोही के रुद्ध फैसले पर पुनर्विचार के पैरोकारों की दलीलों को मध्यरात्रि में भी सुनने का मौका दिया जाता है।से भी देश और दुनिया ने देखा। वहीं पड़ोसी देश की भी न्याय प्रक्रिया जरा देख लें। कुलभूषण यादव मामले में न्याय प्रक्रिया की पूरी धज्जी उडाई जा रही है। यहां तक कि शारीरिक यातनाओं के दम पर यादव से वह बातें कहलवाई और कुबूल करवाई जा रही हैं जो वहां की सरकार और सरकारी अधिकारी कुबूल करवाना चाहते हैं| यह आलम तब हैं जब कुलभूषण को न्याय मिले इसके लिया पड़ोसी देश पर वैश्विक दबाव हैं तथा भारतीय विदेशी मंत्रालय निरतर संपर्क में है।

बावजूद सारे प्रयासों के कुलभूषण यादव को न्याय मिलेगा इसकी रंचमात्र भी गुंजाइश नहीं है। जिस देश में आरोप भी मनचाहे हो, न्याय प्रक्रिया न्यायकर्ताओं की मर्जी की मुहताज हो,

जहां फैसले भी मनचाहे हों ऐसी व्यवस्था में आरोपी के पास कोई विकल्प नहीं होता। उसे सिर्फ और सिर्फ न्याय कर्ताओं के मन चाहे फैसले का इंतजार होता है। उस निर्मम फैसले का जिसमें न तो आरोपी को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है और न उसके पक्ष में सौपें सबूतों को निष्पक्ष न्याय की कसौटी पर परखा जाता है। अब थोड़ा भारतवर्ष की न्याय व्यवस्था और न्यायपालिका की निष्पक्षता की थोड़ी और झलक भी देख लें। इलहाबाद हाई कोर्ट में स्व. राजनारायण ने तत्कालीन प्रधानमत्री श्रीमति इंदिरा गांधी के चुनाव के विरुद्ध याचिका दायर की थी। आरोप यह था की स्व. गांधी ने अपने चुनाव में धांधली की है और सरकारी तंत्र का अपने पक्ष में दुरुपयोग किया है। तब हाई कोर्ट के विद्वान न्यायधीश ने कटघरे में खड़ी आरोपिता के ओहदे की कसौटी पर न्याय का मूल्यांकन नहीं किया था। बल्कि उन पर लगे आरोपों का विश्लेषण सबूतों और साक्ष्य के आलोक में किया था। मामले की सुनवाई करते हुए आरोपिता के विरुद्ध आरोप सिद्ध होने पर आरोपिता के विरुद्ध निर्णय दिया था। कोर्ट ने आरोपिता को न्याय प्रक्रिया के तहत उपलब्ध सारी रियायतें भी दी थीं जो नियमानुकूल थीं। मसलन आरोपिता की मांग पर सजा को अमल में लाने के लिए मोहलत भी दी। जिस मोहलत का लाभ उठाते हुए हाई कोर्ट के फैसले को विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर स्थगन आदेश प्राप्त किया गया तथा अवसर का लाभ उठाते हुए आपातकाल के इतिहास की रचना की गई। यह सबकुछ न्याय पालिका के न्याय की स्वच्छ और निष्पक्ष प्रक्रिया का हिस्सा था। बहरहाल न्यायपालिका ने आपनी सवच्छ और पारदर्शी न्याय प्रक्रिया द्वारा सबको समान न्याय प्रदान करने की, सबको अपना पक्ष रखने का प्रयाप्त अवसर देने की प्रतिबद्धता पूरी की। ऐसे में देश की सुदृढ़ न्याय व्यवस्था पर ओछी टिप्पणी देश को गंवारा नहीं होगी l

क्या इटली की “मिलान” कोर्ट ने अगस्था वेस्टलैंड मामले में जो निर्णय दिया था वहां भी आरएसएस की मानसिकता का कोई था क्या? कोर्ट ने कांग्रेस “अध्यक्ष” सहित कई कांग्रेस नेताओं के नाम के साथ रिश्वत लेने की पुष्टि की है l उसी पुष्टि के आधार रिश्वत देने वालों को इटली के कानून के तहत कैद में डाल रखा है l यदि “मिलान” कोर्ट के फैसले की मानें तो यह कैसी बिडम्बना है की रिश्वत लेनेवाले आजाद हैं और देने वाले सलाखों के पीछे। क्या इटली के मिलान कोर्ट के उस फैसले के विरुद्ध, उससे वरीय अदालत में अपील नहीं की जा सकती ? क्या फैसले में सच्चाई है? यदि नहीं तो क्या आरोपियों को वरीय अदालत में फैसले को चुनौती देकर अपने को निर्दोष सिद्ध करने का अवसर इटली की न्याय व्यवस्था में मौजूद है। अगर ऐसा नहीं है तो स्पष्ट है क भारतीय न्याय व्यवस्था दुनिया में सर्वोत्तम है l इसपर नकारात्मक टिप्पणी करना मासिक असंतुलन की समस्या का द्योतक हैl राहुल जी ने प्रश्न किया कि केजरीवाल जी बूढ़े हो गए ? नहीं...नहीं केजरीवाल जी आप ही की तरह टिप्पणियां करते रहते थेl पहले तो दूसरो पर आरोप लगाते नहीं थकते थे l अब उन्हीं की पार्टी के कपिल मिश्रा ने उन पर आरोपों की ऐसी झड़ी लगाई हैं कि उनसे प्ररास्त हो कर पस्त हो गए। पहले उनको अन्ना ने पहचाना था अब देश ने पहचाना है। इसलिय पस्त हैं राजनीति के ठंढे बस्ते में हैं। एक मुफ्त का मश्विरा आपको भी। ओछी टिप्पणियों से बचिए। कहीं आप भी केजरीवाल के नक्शे-कदम पर चलकर उन्ही के अंजाम को न प्राप्त हो जाएं।जब सत्ता हाथ से फिसल जाए तो बड़े संयम और सूझ-बूझ की जरूरत पड़ती है।

देवेंद्र गौतम का एक शेर है-

जमीं की खाक में देखा गया है।

परिंदा जो बहुत ऊँचा उड़ा हैं।


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