दिल्ली सरकार का गेस्ट टीचरों को नियमित करने का फैसला

By: Dilip Kumar
9/28/2017 1:33:19 AM
नई दिल्ली

दिल्ली सरकार ने दशहरे से पहले गेस्ट टीचर्स के लिए एक बड़े तोहफे का ऐलान किया है। इससे दिल्ली सरकार के स्कूलों में काम करने वाले 15000 गेस्ट टीचर्स को बहुत बड़ी राहत मिलेगी। हालांकि गेस्ट शिक्षकों को नियमित करने का बिल सरकार कैबिनेट में पास कर चुकी है और इसे विधानसभा में भी पेश करेगी। लेकिन सरकार के इस बड़े फैसले में उसके सामने अड़ंगा आने की आशंका है।

उपमुख्यमंत्री ने ये बड़ा ऐलान तो कर दिया है लेकिन इसे अमली जामा पहनाने में बड़ी तकनीकी दिक्कत है। चूंकि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है और यहां कोई भी बिल पास होने से पहले इसकी फाइलें संब‌ंधित विभागों से मंज़ूर होकर फिर एलजी की स्वीकृति के बाद कैबिनेट में आएं। कैबिनेट से पास होने के बाद इसे विधानसभा के पटल पर रखा जाता जहां यह पास होकर कानून बनता है। हालांकि इस बिल के साथ ये सारी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।

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शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने इस बारे में खुद बताया कि हम काफी समय से कोशिश कर रहे थे कि इसकी फाइलें नीचे से मंजूर होकर एलजी की स्वीकृति के बाद आए। उन्होंने आगे कहा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। एलजी के पास से नहीं हो पा रहा था और गेस्ट टीचर्स का समय निकला जा रहा था इसलिए बुधवार को ये प्रस्ताव टेबल एजेंडा के रूप में रखा गया और पास कर दिया गया। इसका सीधा मतलब है कि ये प्रस्ताव परंपरागत तरीके से कैबिनेट में नहीं लाया गया। इसके तहत वित्त, शिक्षा, कानून, सर्विस आदि विभाग की मंजूरी के साथ उपराज्यपाल की मंजूरी ली जाती है।

बता दें कि इससे पहले भी दिल्ली सरकार के अध‌िकतर बिल विधानसभा से तो पास हुए, लेकिन एलजी या केंद्र सरकार ने उसको मंज़ूरी नहीं दी क्योंकि बताया गया कि प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ। बता दें ‌कि मौजूदा प्रस्ताव के मुताबिक-जिन गेस्ट टीचर्स ने CTET यानी कॉमन टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट पास किया है वही 15000 टीचर इसके तहत पक्के होंगे।

हालांकि मनीष सिसोदिया ने प्रक्रिया का पालन ना करने और प्रस्ताव पास करने पर अपना ही तर्क दिया। उन्होंने कहा- जैसे प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का फैसला किसी विभाग से मंजूरी लेकर नहीं किया था इसी तरह किसी भी प्रस्ताव को कैबिनेट में लाने का अधिकार मुख्यमंत्री या उनकी अनुमति से किसी मंत्री को है। सिसोदिया की इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्हें यह डर है कि बिल लाने पर उन पर सवाल उठ सकते हैं।

गेस्ट टीचर्स के हाथ आएगा केजरीवाल का ठुल्लू

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दिल्ली के सरकारी स्कूलों में तैनात 15 हजार गेस्ट टीचरों (अतिथि शिक्षकों) को नियमित करने के दिल्ली सरकार के कैबिनेट के फैसले के बाद विवाद और राजनीति दोनों शुरू हो गई है। कांग्रेस के साथ दिल्ली के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने भी दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। करावल नगर से विधायक और AAP के बागी नेता कपिल मिश्रा ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से कुछ सवाल पूछ हैं।

1. क्या 5 अक्टूबर से पक्के हो जाएंगे दिल्ली के सभी गेस्ट टीचर्स?

2. क्या केजरीवाल बता सकते हैं कितनी तारीख से पक्के होंगे सभी गेस्ट टीचर्स?

3.विधानसभा में गलत बिल लाकर मामले को जनलोकपाल व स्वराज की तरह हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश है ये।

किया कटाक्ष

1. LG और केंद्र पर इल्जाम लगाने की राजनीति की जाएगी।

2. गेस्ट टीचर्स के हाथ आएगा, केजरीवाल का ठुल्लू।

3. गेस्ट टीचर्स के साथ धोखा कर रहें है अरविंद केजरीवाल।

4. ऐसा बिल लाने की तैयारी है, जिससे कभी भी पक्के न हो सकें हजारों गेस्ट टीचर्स।

5. एक बार गलत बिल विधानसभा में आ गया तो हमेशा के लिए रुक जाएगी परमानेंट करने की प्रक्रिया।

6. क्या केजरीवाल में हिम्मत है कि इस बिल को विधानसभा में रखने से पहले सार्वजनिक कर दें?

7. जैसे जनलोकपाल और स्वराज जैसे कानून हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिये गए वैसे ही गेस्ट टीचर्स के साथ धोखा देने की तैयारी

8. बिल के लिए वैसे ही नियमों का उल्लंघन किया गया है जैसे जनलोकपाल और स्वराज के कानून में किया गया, यानी जानबूझकर मुद्दे से पल्ला झाड़ने की कोशिश।

9.पक्के हुए गेस्ट टीचर्स के लिए बजट प्रोविजन कहां है?

10. केजरीवाल फिर एक बार केंद्र और LG को जिम्मेदार बता कर गेस्ट टीचर्स को हमेशा के लिए उलझाने की तैयारी में हैं।

11. यदि नहीं, तो इसका मतलब आपकी नियत में खराबी है। आप केवल गेस्ट टीचर्स को फुटबॉल बना रहे हैं।

12. सभी गेस्ट टीचर्स को पक्का करने का वादा आपने किया था। अब उन्हें आरोप प्रत्यारोप में उलझाने का खेल।

13. इन गेस्ट टीचर्स ने बड़ी उम्मीदों के साथ वोट दिया था। इनकी उम्मीदों और सपनों के साथ ऐसे मत खेलिए।

केजरीवाल का बिल हवा-हवाईः BJP

दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि केजरीवाल सरकार कैबिनेट का गेस्ट टीचर्स को नियमित करने का निर्णय हवा-हवाई है. बिल को कैबिनेट में स्वीकृति देने से पूर्व विभागीय, वित्तीय और विधि विभागों की अनिवार्य स्वीकृति नहीं ली गई. यह किसी ठोस आधार पर लिया गया निर्णय नहीं है. यह केवल वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है. कैबिनेट में स्वीकृत बिल के लिए आवश्यक प्रक्रिया ही नहीं अपनाई गई. इसके लिए जरूरी तैयारी भी नहीं की गई. संबंधित विभागों से बिल की स्वीकृति नहीं ली गई और इसे आनन-फानन में कैबिनेट में प्रस्तुत कर पास कर दिया गया. ऐसे आधे-अधूरे बिल को विधानसभा में पारित करने से कोई समाधान नहीं निकलता दिख रहा है.

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बीजेपी नेता विजेंद्र गुप्ता ने केजरीवाल सरकार से मांग की कि वे गेस्ट टीचर्स को नियमित करने के लिए तर्कसंगत और न्यायसंगत रास्ता अपनाए. आज लिया गया कैबिनेट निर्णय आम आदमी पार्टी की बौखलाहट को छिपाने का विफल प्रयास मात्र है. बिल लाने से पहले न तो संबंधित विभाग को विश्वास में लिया गया और न ही वित्तीय विभाग को. बिल लाने के लिए औपचारिक प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया गया. अपने ढाई वर्ष के कार्यकाल में सरकार गेस्ट टीचर्स को नियमित करने के नाम पर अध्यापकों की भावनाओं से खेला और उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया. आज का कैबिनेट निर्णय भी इसी कड़ी में लिये जाने वाला कदम है.

बीजेपी विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि अगस्त में हुए विधानसभा के सत्र में सरकार ने उनके अनुभव को वेटेज देने की घोषणा की थी, परन्तु अब अचानक उनको नियमित करने की बात मानो आसमान से टपक गई हो. अध्यापकों के नियमित करने के लिए अभी तक कोई कानूनी ढांचा तैयार नहीं किया गया है. कैबिनेट द्वारा पारित बिल ठोस आधार पर प्रस्तावित न होकर कच्चा-पक्का है और इसमें इतना दम नहीं कि वह न्यायपालिका और कानूनी प्रक्रिया पर खरा उतर सके. यह लोगों को गुमराह करने के लिए राजनीतिक दांव-पेच है.

गुप्ता ने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि सरकार के राजनीतिक रवैये के कारण अध्यापकों की भर्ती का मामला उलझता जा रहा है. इसके साथ ही शिक्षा के स्तर पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. सरकार बड़ी संख्या में अध्यापकों की कमी दूर करने में विफल रही है. आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि वे अनुबंध के आधार पर काम करने वाले सभी कर्मचारियों को नियमित करेगी, परन्तु ढाई वर्ष का कार्यकाल बीत जाने पर भी अभी तक एक भी व्यक्ति को नियमित नहीं किया गया. गेस्ट टीचर्स भी अभी तक सरकार के राजनीतिक दाव-पेच में फंसे है और सरकार उन्हें नियमित करने के लिए कोई ठोस कदम उठाने में विफल रही है.

 


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