हर विपदा दूर करेगी तिल संकटा चतुर्थी

By: Dilip Kumar
1/5/2018 1:34:46 AM
नई दिल्ली

तीर्थराज प्रयाग में चल रहे माघ स्नान का सबसे पहला महत्वपूर्ण पर्व सकट चौथ 5 जनवरी को है। वक्रतुण्डी चतुर्थी, माघी चौथ अथवा तिलकुटा चौथ भी इसी को कहते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में माताएं इसे बड़े जोर-शोर से मनाती हैं। शुभता के प्रतीक, विवेकमय बनाने वाले गणेश जी का पूजन किए बिना कोई भी देवी-देवता, त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदिशक्ति, परमपिता परमेश्वर की भक्ति-शक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। इनकी पूजा मात्र से ही परमपिता परमेश्वर प्रसन्न हो उठते हैं। यह अपनी भक्ति उन्हीं को प्रदान करते हैं, जो माता-पिता और सास-ससुर की निश्छल सेवा करते हैं।

इस मौके पर विशेष रूप से भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाएगी और चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाएगा। चतुर्थी तिथि इस बार गुरुवार रात दो बजे से ही शुरू होगी। लेकिन इसका मान शुक्रवार सुबह से मान्य होगा। आचार्य पं.दयाशंकर शुक्ल के अनुसार पांच जनवरी की रात 9.03 बजे चन्द्र का उदय होगा। इस पावन मौके पर व्रती मताएं चन्द्रमा को अर्घ्य देकर बेटे की लंबी उम्र की कामना करेंगी। इस चतुर्थी को माघी चतुर्थी या तिल चौथ भी कहा जाता है। बारह माह के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। भगवान श्रीगणेश की आराधना सुख-सौभाग्य प्रदान करने वाली है। व्रत से घर-परिवार में आने वाली विपदाएं दूर होती हैं। रुके मांगलिक कार्य भी संपन्न होते हैं। गणेश कथा सुनने व पढ़ने का विशेष महत्व है।

गणेश चतुर्थी के दिन विघ्न हर्ता की पूजा-अर्चना और व्रत करने से समस्त संकट दूर होते हैं। इस दिन रात्रि के समय चंद्र उदय होने के बाद चन्द्र को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करें। संकष्टी चतुर्थी के दिन महिलाएं सुख-सौभाग्य, संतान की समृद्धि और सर्वत्र कल्याण की इच्छा से प्रेरित होकर व्रत रखती हैं। पद्म पुराण के अनुसार इस व्रत को स्वयं भगवान गणेश ने मां पार्वती को बताया था। वैसे तो हर महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी गणेश चतुर्थी कहलाती है। लेकिन माघ मास की चतुर्थी संकष्टी चौथ कहलाती है। व्रत से बुद्धि और ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है।

जानिए व्रत की कथा

आचार्य पं. सच्चिदानन्द शुक्ल के अनुसार पौराणिक गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिर गए। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास पहुंचे। देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेश से पूछा कि- ‘तुममें से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है’। तब कार्तिकेय व गणेश दोनों ने ही स्वयं को इस के लिए सक्षम बताया। भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा-तुम में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा, वही देवताओं की मदद करने जाएगा। कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए।

गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह अपने वाहन चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा कैसे करेंगे। गणेश अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का कारण पूछा। तब गणेश ने कहा-माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं। यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके तीनों ताप, यानी ‘दैहिक ताप’, ‘दैविक ताप’ व ‘भौतिक ताप’ दूर होंगे।


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