मां सरस्वती के पूजन पर अक्षर ज्ञान सिखाने से बच्चे बनेंगे विद्वान

By: Dilip Kumar
1/18/2018 3:49:11 PM
नई दिल्ली

बच्चे ढाई-तीन साल के हो रहे हैं और उन्हें पहली बार अक्षर ज्ञान देना हो तो इसके लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त ज्ञान की देवी मां सरस्वती के पूजन का दिन बसंत पंचमी है। इस बार बसंत पंचमी 22 जनवरी को पड़ रही है। ऐसी मान्यता है कि यदि बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा करके बच्चों को अक्षर ज्ञान सिखाया जाए तो आगे चलकर बच्चे विद्वान बनेंगे।

ज्योतिषी डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार माघ शुक्ल की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार इस दिन स्वर की उत्पत्ति हुई थी। स्वर व ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा करने से ज्ञान में बढ़ोतरी होती है। छोटे बच्चों को इस दिन अक्षर ज्ञान अवश्य करवाना चाहिए।

स्कूलों में होगी मां सरस्वती की पूजा

धन की प्राप्ति के लिए जिस तरह मां महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान है और सर्व सिद्धि, मंगलकारी कार्यों के लिए विघ्नहर्ता श्रीगणेश को पूजा जाता है। इसी तरह ज्ञान की प्राप्ति के लिए मां सरस्वती की पूजा का महत्व है। इस दिन स्कूलों और संगीत विद्यालयों में मां सरस्वती की विशेष आराधना की जाएगी।

वेद शास्त्रों का दान करें

ऐसा माना जाता है कि बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करके वेद शास्त्रों का दान करना चाहिए। इससे मां सरस्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

सरस्वती महामंत्र का जाप फलदायी

सरस्वती महामंत्र 'श्री ह्वी सरस्वत्यै स्वाहा' अष्टाक्षर मंत्र से देवी का पूजन व स्मरण करना चाहिए। जो विद्यार्थी संगीत की शिक्षा ले रहे हैं वे संगीत के सात सुरों 'सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि' का अवश्य अभ्यास करें।

दूध पीते बच्चे को पहला अन्न खिलाएं

ज्योतिषी डॉ.होस्केरे के अनुसार जो बच्चे पूरी तरह से मां के दूध पर निर्भर होते हैं और अनाज खाने योग्य हो रहे हैं। ऐसे बच्चों के लिए बसंत पंचमी पर 'अन्नप्रासन संस्कार' करना बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है। माताएं अपने हाथों से खीर बनाकर मां सरस्वती को भोग लगाएं और अपने बच्चे को नए वस्त्र पहनाकर, चौकी पर बिठाकर, चांदी के चम्मच से खीर खिलाएं। मां के अलावा यह परंपरा पिता, दादा, दादी , भाई-बहन भी निभा सकते हैं।

बच्चे की जीभ पर 'ऊँ' लिखें

सनातन संस्कृति के अनुरूप पहले बच्चों को चांदी अथवा अनार की कलम को शहद में डुबोकर बच्चे की जीभ पर 'ऊँ' अथवा 'ऐं' लिखा जाता था। आज भी कई परिवारों में इस परंपरा का पालन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि बच्चे की जीभ पर 'ऊँ' लिखने से बच्चे विद्वान बनते हैं।

 


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