अंतरराष्ट्रीय कला मेला

By: Dilip Kumar
2/14/2018 2:01:48 PM
नई दिल्ली

दिल्ली की कला गतिविधियों से हमेशा सैंकड़ों आर्ट गैलरियों की चर्चा व खरीद फरोख्त का केंद्र रहती है। जो साज- सज्जा तक ही दीवारों के रंग की मैचिंग भर सीमित रही है। लेकिन कला व्यवसाय के इतर भी कला की एक ऐसी दुनियां भी मौजूद है । जो समाज को मानवीय  की और आकर्षित करती है। इस तरहकी कलाकृतियाँ अखबारों और बुद्धिजीवियों की हमेशा सुर्खियों में रहती रही है।ऐसी ही एक पहल ललित कला अकादमी ने पहली अंतरराष्ट्रीय कला मेला की शुरूआत करके की है। जिसका उद्घाटन महामहिम उपराष्ट्रपति के करकलमों द्वारा 4 फरवरी 2018 को हुआ। इस अवसर पर ललित कला अकादमी के एडमिनिस्ट्रेटर सी.एस. कृषणा सेट्टी भी मौजूद थे। जिनकी देख रेख में  इस कला मेले में 325 स्टॉल में एक हज़ार से भी ज़्यादा कलाकारों ने हिस्सा लिया है और हज़ारों पेंटिंग, मूर्तिशिल्प, टेराकोटा के कलात्मक वर्तन, फोटोग्राफी और ग्राफिक्स आदि विभिन्न कला विधाओं की कलाकृतियाँ प्रदर्शित हुई है। जो कला विद्यार्थियों से लेकर नामचिन कलाकारों ने इसमें हिस्सा लिया है और साथ ही साथ अनेक देशों से भी विदेशी कलाकारों ने शिरकत की है। इस बारे में सुप्रसिद्ध मूर्तिकार हीरालाल राजस्थानी से बात हुई। उन्होंने कहा कि यह कला और कलाकारों के लिए बहुत ही उत्साह जनक सराहनीय कदम है।

इस मौके पर यह भी याद करना सहज होगा कि पिछले कुछ सालों में जहां असहिष्णुता बड़ी है वहीं कलाकारों द्वारा गौतम बुद्ध की छवि को कलाकारों ने सबसे ज़्यादा रचा है।जो यह साबित करता है कि आज भी गौतम बुद्ध की विचारधारा मानवता के लिए प्रासांगिक बनी हुई है। उन्होंने आगे कहा कि इसके प्रचार प्रसार के भी प्रयास व्यापक स्तर पर होने आवश्यक थे।जिसकी ज़रूरत कला और कलाकार दोनों के लिए महत्वपूर्ण साबित होती। वहीं कलाकृतियों के खासतौर पर मूर्तिशिल्प के लिए रख रखाव का इंतजाम भी पुख़्ता होने चाहिए थे।जबकि हर स्टॉल का खर्चा तीस हज़ार रुपये कलाकारों से हिस्सा लेने के लिए लिये गए हैं। इस प्रक्रिया में वे कलाकार शामिल होने से वंचित रह गए जो पैसा देने में असमर्थ रहे। वैसे तो साहित्य कला परिषद ने भी यहाँ अपने स्तर पर कई कलाकारों की कलाकृतियों को प्रदर्शित करने के लिए दो स्टॉल में लिये हैं लेकिन किस आधार पर कलाकारों का चयन किया गया है यह किसी को नही पता।यह कलाकारों में भेद की नीति को उजागर करता है।इस ओर प्रशासन को ध्यान देने की ज़रूरत है।

यहां मेले में सर्वाधिक बुध प्रतिमाएं व चित्र देखने को मिले हैं। जो मानसिक रुप से हमें राहत देती है। जिसमें दिल्ली तिहाड़ जेल के कैदियों की कला कृतियाँ भी प्रमुखता से शामिल हुई हैं। वहीं उन्होंने अपने मूर्तिशिल्प के बारे में कहा कि " मैं अपने द्वारा बनाये गए पोर्ट्रेट में मानवीय संवेदनाओं जिसमें मानवीय अनुभव, आम वंचित आदमी के दुःख, दर्द, पीड़ा व संघर्ष को प्रमुखता देता हूँ क्योंकि मैं मानता हूं कि चेहरा सबसे ज़्यादा व्यक्ति की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में उसकी मुख्य पहचान भी है। 'द सिम्बल ऑफ कनॉट प्लेस' उनके द्वारा बनाया गया सबसे चर्चित पोर्ट्रेट है। ऐसे ही उनका एक मूर्तिशिल्प ह्यूमैनिटी है। जिसे दाढ़ी के रूप में मुस्लिम दिखाया है और सर पर शिखा दिखाकर हिन्दू दिखाया गया है। जो मानव को प्रतीकों में फसा हुआ दिखाया गया है। वे इन धार्मिक और जातीय प्रतीकों से बाहर आने की बात समाज से करते हैं। यह कृति आप 147 न. स्टॉल पर देख सकते हैं।

इस कला मेले में ताजमहल की पेंटिंग जो पवन वर्मा द्वारा बनाई गई है आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। भू दृश्यों के चित्रों में राजेश शर्मा, सुष्मिता, गौरव दहिया, वेंडी जेश, अशोक सिंह तथा शांति और मानवता का संदेश देती कलाकृतियों में मधुसूदन, मांगेराम शर्मा, रगुवीर अकेला, विजेंद्र शर्मा, शोभा ब्रूटा, कमलजीत कौर , मिलन, अबुल कलाम आजाद वही व्यंगात्मक शैली में एम. साकिब ने ताज ढाबा नामक रेखांकन प्रदशित किया है।

मूर्तिशिल्पों में लतिका कट्ट का बनाया उनकी भतीजी नीता का पोर्ट्रेट दर्शनीय है। राजेश शर्मा, विपुल, शिवराज आदि के भी मूर्तिशिल्प आकर्षण के केंद्र में है। साथ ही हर दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृतियों के संगीत, नाट्य, नृत्य और कथा को मनोरंजन का हिस्सा बनाया गया है।दर्शकों को आत्मिक और बौद्धिक स्तर की संतुष्टि मिलना सहज ही बन रही है। कलाकृतियों की ख़रीदारी भी हो रही है।कुल मिलाकर यह प्रयास कला और कलाकारों दोनों के प्रोत्साहन के लिए ज़रूरी कदम मन जाना चाहिए।


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