झारखंड में मतवाले हाथियों का आतंक

By: Dilip Kumar
3/14/2018 2:14:58 AM
नई दिल्ली

देवेंद्र गौतम| झारखंड की राजधानी रांची से महज 50 किलोमीटर दूर तमाड़ थाना के बारलंगा गांव की घटना है। चैतना लोहरा की पत्नी 50 वर्षीय बाहमनी देवी ने देर शाम धान को उबाला और सूखने के लिए घर के बरामदे में पसार दिया। फिर घर के अंदर जाकर सो गईं। रात के 11.30 बजे घर के बाहर कुछ आहट सुनाई दी। वे अपना धान देखने के लिए बाहर निकलीं। तभी एक जंगली हाथी ने उन्हें सूंड़ में लपेटकर ऊपर उठाया और पटक दिया। उन्हें कई बार उठाया और पटक-पटक कर उन्हें मार डाला। शोरगुल सुनकर ग्रामीण इकट्ठा हुए और काफी मशक्कत के बाद हाथी को भगाने में सफल हुए। सुबह तक घटना की खबर चारो तरफ फैल गई। खबर पाकर वन विभाग के अधिकारियों के साथ सांसद प्रतिनिधि दिलीप सेठ घटनास्थल पर पहुंचे और पीड़ित परिवार को तत्काल 50 हजार रुपये बतौर मुआवजा दिया। मुआवजे की शेष राशि भी जल्द दिलाने का वादा किया।

यह कोई पहली घटना नहीं है। झारखंड के वन बहुल इलाकों में आए दिन वन्यपशुओं का हमला होता है। वन्यपशु भी ग्रामीणों के हमले का शिकार होते हैं। पिछले 26 फरवरी को मनोहरपुर में जंगली हाथियों ने 3 लोगों को कुचलकर मार डाला था।इस वर्ष अभी तक जंगली हाथियों ने 40 ग्रामीणों की जान ली है। 221 हेक्टेयर खेतों में लगी फसल नष्ट की है। 49 मकान तोड़ डाले हैं। अकेले सरायकेला में ऐसे मामलों के लिए आवंटित राशि खत्म हो जाने पर सरकार से 24 लाख रुपये अतिरिक्त मंगाने पड़े। पिछले दस वर्षों का आंकड़ा देखें तो इस अवधि में 400 लोग हाथियों के हमले में मारे जा चुके हैं। राज्यसभा सदस्य परिमल नाथवानी के सवाल पर वन एवं पर्यावरण मंत्री महेश शर्मा ने नवंबर 2017 तक हाथियों के हमले में 40 लोगों की मौत की पुष्टि की थी।

जंगली हाथियों को वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट (शिड्यूल-1) के तहत संरक्षित वन्यपशु का दर्जा दिया गया है। 1992 में भारत सरकार के वन-पमें 32 हाथी संरक्षित क्षेत्रर्यावरण मंत्रालय ने एशियाई हाथियों के संरक्षण के लिए वन बहुल राज्यों को वित्तीय व तकनीकी सहयोग की शुरुआत की थी। इसके तहत हाथी परियोजना की नींव रखी गई थी। देश के सात राज्यों में 32 हाथी संरक्षित क्षेत्र घोषित किए गए थे। ये 58 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले थे। झारखंड में दलमा पहाड़ पर हाथी परियोजना शुरू की गई थी। राज्य में कुल 371 हाथी हैं जिनके लिए 4530 वर्ग किलोमीटर भूमाग का प्रावधान किया गया है। नियमतः एक हाथी घूमने के लिए 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की जरूरत पड़ती है। उसे खाने के लिए 150 किलो भोजन और 150 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। हाथी संरक्षित क्षेत्र तो बनाए गए लेकिन उनके लिए संख्या के आधार पर आवश्यक क्षेत्र नहीं मिल पाया। जंगलों की कटाई के कारण उनके लिए पर्याप्त भोजन और जल की व्यवस्था नहीं हो सकी। पहाड़ों जंगलों के प्राकृतिक जलस्रोत वैसे ही गर्मियों में सूख जाते हैं। मजबूरन भोजन और पानी की तलाश में हाथी आसपास की मानव बस्तियों में प्रवेश करते हैं और फसल नष्ट करने के साथ मानव जीवन और उनके घरों को नुकसान पहुंचाते हैं। आदिवासी गावों में ज्यादातर घर मिट्टी और फूस के बने होते हैं जिन्हें हाथी आसानी से ध्वस्त कर डालते हैं।

खेतों में लगी फसल तो हाथियों को लुभाती ही है, ग्रामीण इलाकों में महुये की शराब की गंध उन्हें मतवाला और हिंसक बना देती है। आदिवासी इलाकों में घर-घर चावल और महुये की शराब चुलाई जाती है। इसकी गंध दूर-दूर तक फैली होती है। यह हाथियों को खींच लाती है। हाल में आदिवासी बहुल इलाकों में देशी शराब की दुकानें बंद करा दी गई थीं। नतीजतन महुये और चावल की शराब की मांग बढ़ गई और इसकी चुलाई ज्यादा मात्रा में की जाने लगी। इसके कारण हाथियों का आक्रमण भी बढ़ा। पहले हाथी प्रभावित गावों की संख्या 59 थी। अब बढ़कर 189 हो चुकी है।

पिछले वर्ष अगस्त माह में साहेबगंज में झारखंड-बिहार सीमा के पास एक पागल हाथी ने उत्पात मचा रखा था। उसने झारखंड के 11 और बिहार के चार लोगों को कुचलकर मार डाला था। वह अपने झुंड से बिछड़ा हुआ था और घात लगाकर हमला करता था। ग्रामीण उसपर काबू पाने में विफल हो रहे थे। मुख्य वन संरक्षक एलआर सिंह के बुलावे पर पश्चिम बंगाल से 12 सदस्यीय खोजी दल भी आया था लेकिन उस हाथी की शिनाख्त नहीं हो पाई थी। अंततः हैदराबाद से मशहूर शिकारी राफत अली खान को बुलाया गया। उन्होंने 30 मीटर की दूरी से हाथी पर बेहोशी की गोली दागी लेकिन लेकिन उसपर असर नहीं हुआ और वह हमलावर अंदाज में उनकी ओर दौड़ा। जब वह मात्र 10 मीटर की दूरी पर पहुंचा तो राफत अली खान ने उसके सिर पर दो गोलियां दागकर उसे मार डाला। लोगों ने राहत की सांस ली लेकिन वाइल्ड लाइफ बोर्ड के सदस्य डीएस श्रीवास्तव ने इस घटना पर विरोध जताया। निश्चित रूप से कुछ शिकारी हाथी दांत और हड्डियों के लालच में हाथियों का अवैध शिकार भी करते हैं। ऐसे लोग पकड़े भी जाते हैं। लेकिन कभी-कभी खासतौर पर पागल होने पर ऐसी स्थिति आती है कि मानव जीवन की रक्षा के लिए उसका वध करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने कुछ राज्यों में फसल को नुकसान पहुंचाने वाले वन्यजीवों को कुछ अवधि तक कृषि शत्रु करार देकर मार डालने की छूट की परिपाटी शुरू की थी। सके तहत पेशेवर शिकारियों के जरिए बिहार में नीलगायों का सामूहिक शिकार किया गया था। लेकिन यह समस्या का कोई स्थाई निदान नहीं हो सकता। सरकार को वन्यजीवों की बुनियादी आवश्यकता वनों में मुहैय्या कराने का प्रबंध करना चाहिए। संरक्षित वनों के बाहर वे नहीं निकल पाएं इसका इंतजाम करना चाहिए। अन्यथा मानव बस्तियों और वन्य जीवों की यह जंग अंतहीन समय तक चलती रहेगी। दोनों एक दूसरे के दुश्मन बनने रहेंगे।


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