महाविभूति स्थल का 19 वां स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया गया

By: Dilip Kumar
3/18/2018 11:46:24 AM
नई दिल्ली

रांची(समरेन्द्र कुमार)। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के गम्हरिया में स्थित अघोरेश्वर पीठ, वामदेव नगर, गम्हरिया आश्रम में महाविभूति स्थल का 19 वां स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया गया। 15-16 मार्च को आयोजित इस समारोह में देश के विभिन्न इलाकों से हजारों श्रद्धालु एकत्र हुए। इस मौके पर भजन कीर्तन और आध्यात्मिक कार्यक्रमों के अलावा अवधूत भगवान राम कुष्ठ आश्रम में दो दिवसीय निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न इलाकों से आए असाध्य रोगों से पीड़ित 1904 मरीजों की जांच की गई और आवश्यक दवाओं का निःशुल्क वितरण किया गया। पूरा आयोजन आश्रम के व्यवस्थापक श्रीकृष्ण कुमार उर्फ टप्पू जी और वैद्य समीर सहाय की देखरेख में संपन्न हुआ।

 इस मौके पर सेवा प्रदान करने के लिए विभिन्न शहरों से विशेषज्ञ चिकित्सक पहुंचे थे। उनमें एलौपैथ, होम्योपैथ, आयुर्वेद आदि सभी पद्धतियों के लोग शामिल थे। दंतरोग की चिकित्सा के लिए डाक्टर एसपी सिंह, डा. विनय कुमार गुप्ता और इलाहाबाद से पधारे डा. वैभव थे तो ह्रदय रोग की चिकित्सा के लिए डा. रंजन नारायण उपस्थित थे। चर्मरोग के विशेषज्ञ डा.कुशल वाराणसी से आए थे। नेत्ररोग की चिकित्सा के लिए डा. बीएन राय बिहार के डिहरी आन सोन से आए थे। शिशु रोग के विशेषज्ञों में इलाहाबाद से डा. यूपी सिंह और वाराणसी से डा. हरिशंकर सिंह सेवा देने पहुंचे थे।

स्त्री रोगों के ले जशपुर की डा. सरस्वती नाग, नसों से संबंधित रोगों के लिए धनबाद के वैद्य श्री डागा पहुंचे थे। फिजिशियनों में डा. रंजन नारायण, डा. सुधीर सिंह, डा. एचडी सिंहरांची के डा. एसएन सिन्हा एवं डा. अशोक,  भटगांव अम्बिकापुर के डा. एस त्रिगुणायक, मुंबई के डा. अभिमन्यु सिंह, डा. संजय सिंह, डा. एचडी सिंह, उत्तराखंड से डा. आरके सिंह आए थे। होम्योपैथिक चिकित्सकों में वाराणसी से डा. अनिल सिंह, डा. केके सिंह, इलाहाबाद से डा. आशीष सिंह, डाल्टेंनगंज से डा. उपेंद्र आयुर्वेदिक चिकित्सकों में पड़ाव,वाराणसी से वैद्य नोनू देवी आई थीं।

इस मौके पर दूर दराज के इलाकों से असाध्य रोगों से पीड़ित ऐसे रोगी जिन्हें सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती आए और शिविर में इलाज की सुविधा प्राप्त की। उल्लेख्य है कि अवधूत भगवान राम ऐसे संत थे जिन्होंने अधोर साधना को श्मसान की वीभत्स क्रियाओं की जगह समाजोन्मुख किया और साधना का प्रयोजन समाजसेवा बनाया।


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