कोर्ट की लड़ाई सड़कों पर क्यों

By: Devendra Gautam
4/2/2018 7:58:29 PM
Ranchi

 

देवेंद्र गौतम

एससी एसटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ भारत बंद कमोबेश असरदार रहा। देश के कई इलोकों में हिंसक झड़पें हुईं। 8 लोग मारे गए। सैकड़ों जख्मी हुए। बहरहाल इस कानून के जरिए संरक्षित समुदाय का विरोध दर्ज हो गया। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस एक्ट का जितना उपयोग होता है उतना दुरुपयोग भी होता रहा है। कई दृष्टांत इसकी गवाही देते हैं। व्यक्तिगत दुश्मनी साधने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है इस कानून को मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है कि । इससे संरक्षित समुदायों को इस बात को लेकर सतर्क रहना चाहिए कि उनके बीच का कोई व्यक्ति किसी को फंसाने के लिए अनावश्यक रूप से इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल न करे। किसी कानून का जब दुरुपयोग होने लगता है तो उसकी प्रासंगिकता पर सवालिया निशान लगने लगते हैं। उसमें संशोधन की मांग होने लगती है। किसी ने इस सवाल पर जनहित याचिका दायर की। कोर्ट इसकी दलीलों से सहमत हुआ और उसने संशोधन के आदेश जारी कर दिए। आज जो संगठन सड़कों पर हंगामा कर रहे हैं उन्हें सुनवाई के दौरान ही विरोधी पक्ष की दलीलों की काट पेश करनी चाहिए थी। इसमें वे चूक गए।

इस संशोधन के खिलाफ आक्रोश स्वाभाविक था। लेकिन किसी भी लड़ाई में जोश के साथ होश भी जरूरी होता है। हर लड़ाई का अपना मैदान होता है। अपने हथियार होते हैं। गलत मैदान में गलत हथियारों से लड़ाई लड़ी तो जा सकती है लेकिन समें जीत मुश्किल होती है। यह कानूनी लड़ाई है जिसे सिर्फ अदालत में लड़ा जा सकता है। बंद, धरना और प्रदर्शन राजनीतिक आंदोलन के हथियार हैं। इनका प्रयोग सरकार की नीतियों के खिलाफ किया जाता है। न्यायपालिका को सरकार के रूप में नहीं देख जा सकता। न्यायपालिका तकनीकी रूप से सरकार के निर्देशों पर नहीं चलती। सड़क पर हंगामा करने से आखिर सुप्रीम कोर्ट की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हां यदि देश के विभिन्न इलाकों में फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं दर्ज हों तो न्याय की कुर्सी जरूर हिल पड़ेगी। नियमतः इस फैसले के खिलाफ अपनी भावनाएं कोर्ट में दर्ज करना चाहिए। भारत बंद के जरिए एक निरर्थक और दिशाहीन विरोध जाहिर किया गया। बंद समर्थकों से यदि पूछा जाए कि रेल रोककर, दुकाने बंद कराकर, पत्थरबाजी करके, वाहनों में आग लगाकर आप किसे क्या संदेश देना चाहते हैं। किसके खिलाफ विरोध दर्ज कराना चाहते थे तो संभवतः उनके पास कोई जवाब नहीं होगा। केंद्र सरकार तो पहले ही पुनर्विचार याचिका दायर करने की घोषणा कर चुकी है। जनता की चुनी ही सरकार और कर ही क्या सकती है।


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