By: Devendra Gautam
4/6/2018 1:10:33 PM
Ranchi

तीन शताब्दियों तक जीवित रहे चमत्कारी संत तैलंग स्वामी

समरेन्द्र कुमार

संत-महात्माओं की सूची में तैलंग स्वामी का सम्मानिक स्थान है। वे 280 वर्षों तक जीवित रहे थे और अपनी दैवी शक्ति से लोगो को हैरान करते रहे हैं। उन्हें शिव का साक्षात अवतार माना जाता था। तैलंग स्वामी का जन्म दक्षिण भारत के विजियाना ग्राम के सम्पन्न ब्राह्मण परिवार में संवत 1664 के पौष माह में हुआ था। इनके माता-पिता भगवान शिव के परम भक्त थे। शिव के भक्त होने के कारण अपने बालक का नाम शिव राम रखा बाद में यही बालक तैलंग स्वामी के नाम से प्रसिद्ध हुए। ये बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि तथा आध्यात्म में काफी रुचि रखने वाले बालक थे। इन्होंने अविवाहित जीवन व्यतीत किया।

इनके 48 वर्ष की उम्र में पहले पिता फिर माता की मृत्यु हो गई। माता की अन्त्येष्टि-क्रिया करके वे घर नहीं लौटे और उनकी चिताभूमि पर ही बैठ गए। बाद में उसी स्थान पर कुटी बनाई गई। 20 वर्षों तक उस स्थान पर कठोर साधना करने के बाद महापुरुषों की खोज में निकले। सौभाग्य वश उन्हें उस दौर के मशहूर संत स्वामी भगीरथ का दर्शन हुआ। उन्होंने पुष्कर क्षेत्र में स्वामी भगीरथ से दीक्षा ली । दो वर्ष बाद इनके गुरू भी इस लोक से चल बसे। स्वामी तैलंग नेपाल, मान सरोवर, नर्मदातीर, प्रयाग, रामेश्वरम इत्यादि जगहों में कठोर साधना करने के पश्चात् काशी पहुंचे। वे सदा दिगम्बर वेश में रहा करते थे। ठंड, गर्म का कोई प्रभाव इनपर नहीं होता था। मान सम्मान, ख्याति, प्रसिद्धि से बहुत दूर रहते थे। जल पर पद्मासन लगाना, गंगाजी में तीन-तीन दिन तक लगातार डूबे रहना, समाधि लगाकर दूर का समाचार को जान लेना, आकाश में निराधार स्थित रहना इत्यादि इनके लिये बहुत साधारण सी बात थी।

संत तैलंग के चमत्कार की कई कहानियां प्रचलित हैं। प्रयाग में एक बार अपने अनुयायियों से भरी नाव में यात्रा कर रहे थे। आंधी-तूफान के कारण नाव गंगा में डूब गई। तैलंग स्वामी ने उसे पुन: सुरक्षित बाहर निकाल लिया। नंगा रहने के कारण काशी में एक अंग्रेज अफसर ने इनको हवालात में बन्द कर दिया। सुबह देखा गया कि संत तैलंग हंसते हुये बाहर टहल रहे हैं। उनसे पूछने पर कहा कि ताला बंद कर देने से किसी की आत्मा को बांधा नहीं जा सकता। यदि ऐसा होता तो मृत्युकाल में हवालात में बंद कर देने से मनुष्य मौत के मुख से बच जाता।

इनका दृढ़ विश्वास था कि ईश्वर इस मानव शरीर बनाकर स्वयं इसमें विराजते हैं। हरेक मानव के अन्दर ईश्वर विराजमान हैं। मनुष्य जितना समय भौतिक सुख प्राप्त करने के लिये व्यतीत करता है उसका शतांश भी यदि ईश्वर की अराधना में समय व्यतीत करें तो उसे संसार में कुछ भी पाना असंभव नहीं रहेंगा। ईश्वर को प्राप्त करने के लिये साधना एवं अच्छा कर्म करना चाहिये। गुरू के दिखलायें मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। संसार में भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ वस्तु है और ईश्वर को प्राप्त करने का यही मार्ग है।

चमत्कारी संत तैलंग स्वामी 280 वर्ष की अवस्था में वि0 संवत् 1944 की पौष शुक्ला 1 को ब्रह्मलीन हो गयें।


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