जन्मदिन विशेष: सुरशंकर जो जीवन भर रहे पंडित रविशंकर

By: Dilip Kumar
4/7/2018 2:00:48 PM
नई दिल्ली

सितार वादक और संगीतज्ञ रवि शंकर का आज 98वां जन्मदिन है. पंडित रविशंकर ने दुनिया में भारतीय शास्त्रीय संगीत को खास पहचान दिलाई है. संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए साल 1999 में भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न और 1981 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया. तीन बार ग्रैमी पुरस्कार मिला. इसके अलावा 1986 से 1992 के दौरान राज्यसभा के सदस्य भी रहे।

रवि शंकर का जन्म आज ही के दिन साल 1920 को बनारस में हुआ था. रविशंकर अपने बड़े भाई उदयशंकर की तरह डांस के क्षेत्र में कामयाबी पाने की ख्वाहिश रखते थे. लेकिन 18 साल की उम्र में डांस छोड़कर सितार सीखने लगे. साल 1949 से 1956 तक उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में बतौर संगीत निर्देशक भी काम कियामुस्कुराता चेहरा, सितार के तारों पर बिजली की तरह रक्स करती उंगलियां और मंत्रमुग्ध होते हजारों मन. पंडित रविशंकर के सितार में वो तासीर थी कि सितार के सम्मान में पूरे विश्व ने खड़े होकर तालियां बजाईं. विश्वविख्यात गिटारिस्ट जॉर्ज हैरिसन कहा करते थे- पंडित रविशंकर विश्व संगीत के पितामह हैं।

दुनिया में भारत के बाहर आज भी अनगिनत लोग हैं जो भारत को पंडित रविशंकर की वजह से जानते हैं. पंडित रविशंकर को दुनिया को अलविदा कहे 5 साल से अधिक बीत चुके हैं. 11 दिसंबर, 2012 को अमेरिका में उनका निधन हो गया था. ये अलग बात है कि पंडित रविशंकर का संगीत, उनके सितार की धुन सदियों सदियों तक जीवित रहेगी।पंडित रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल, 1920 को बनारस में हुआ था. बनारस से उनका गहरा रिश्ता था. वो यहीं पले-बढ़े. ये दिलचस्प बात है कि पंडित रविशंकर का बचपन एक डांसर की तरह बीता. हुआ यूं कि पंडित रविशंकर के भाई पंडित उदयशंकर महान नृतक थे. भारतीय नृत्य को उन्होंने विदेशों में जो पहचान दिलाई वो अकल्पनीय है. करीब दस साल की उम्र से पंडित रविशंकर अपने भाई के नृत्य समूह का हिस्सा थे और दुनिया भर में खास तौर पर यूरोप और अमेरिका में नृत्य के कार्यक्रम किया करते थे. 1930 का दशक जब अपने आधे सफर को तय कर चुका था तब पंडित रविशंकर के जीवन में सितार आया और सितार के साथ साथ बतौर गुरू महान कलाकार उस्ताद अलाउद्दीन खान आए।

पंडित रविशंकर के इस प्रेमी स्वभाव को लेकर एक बड़ा शानदार किस्सा है. 1990 की बात है. पंडित जी के 70वें जन्मदिन का मौका था. दिल्ली में एक भव्य कार्यक्रम रखा गया. तय हुआ कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पंडित रविशंकर को सम्मानित करेंगे. बिस्मिल्लाह खान उम्र में पंडित रविशंकर से कोई 6-7 साल बड़े थे. दोनों बनारसी थे. बिस्मिल्लाह खान भी पूरी दुनिया में शहनाई का डंका बजा चुके थे. उन्हें अधिकार था कि वो कुछ भी बोल सकते हैं.खान साहब ने मौके पर चौका मारा, पंडित रविशंकर के सम्मान के बाद बोले-पंडित रविशंकर ने संगीत की बड़ी सेवा की है. मैं खुदा से दुआ करता हूं मेरी बाकी बची उम्र उन्हें लग जाए. ये बात सुनकर हॉल में तालियां की गूंज भर गई. खान साहब चुप रहे, कुछ सेकंड बाद जब तालियों का दौर थमा तो दोबारा बोले- लेकिन एक बात बताना चाहता हूं. मेरी बाकी बची उम्र अब शादी करने लायक नहीं है. लोग हसंते-हसंते पेट पकड़ गए. पंडित रविशंकर अपनी जगह से उठकर आए और उन्होंने बड़े भाई सरीखे उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के हाथों को चूम लिया।

पंडित रविशंकर ने तमाम नई रागों को तैयार किया. इसमें राग मोहनकौंस का किस्सा जानना जरूरी है. पंडित रविशंकर ने ये राग महात्मा गांधी की हत्या के बाद बनाया. नए राग को उन्होंने गांधी जी को समर्पित किया. बाद में ये राग महात्मा गांधी पर बनी फिल्म में भी इस्तेमाल हुआ. पंडित रविशंकर ने महान निर्देशक सत्यजीत रे के लिए भी काम किया. इस बात में कोई दोराय ही नहीं कि वो अलग ही मिट्टी के बने थे. संगीत के संत की तरह।

 


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