रुझान: कर्नाटक में पीएम मोदी का जादू चला

By: Dilip Kumar
5/15/2018 2:13:31 PM
नई दिल्ली

कर्नाटक में जैसे-जैसे मतगणना आगे बढ़ रही है, चुनावी तस्वीर साफ होती दिख रही है। 222 सीटों के आए रुझानों में बीजेपी 108 सीटों पर आगे चल रही है। इससे पहले वह बहुमत के आंकड़े 112 को पार करते हुए 116 तक पहुंच गई थी, लेकिन फिर पिछड़ गई और अब बहुमत को लेकर पेंच फंसता दिख रहा है। रुझानों में बीजेपी का शतक लगते ही बेंगलुरु से लेकर दिल्ली तक पार्टी कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। चुनाव आयोग के मुताबिक कांग्रेस 74 और JD(S)+ 39 सीटों पर आगे चल रहे हैं। दो सीटों पर अन्य आगे चल रहे हैं।

रुझान नतीजों में तब्दील होते हैं तो यह सीधे तौर पर कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए बड़ा झटका है। उनकी रणनीति एक बार फिर फेल हो जाएगी और कांग्रेस पार्टी मात्र पंजाब, पुडुचेरी और मिजोरम में सिकुड़ कर रह जाएगी। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया चामुंडेश्वरी सीट से चुनाव हार गए हैं। हालांकि उनके बेटे यतींद्र वरुणा क्षेत्र से जीत गए हैं। रुझान देख सिद्धारमैया और कांग्रेस नेताओं के बीच मुख्यमंत्री आवास पर बैठक हो रही है।

अगर बीजेपी को बहुमत मिलता है तो यह 2019 लोक सभा चुनाव से पहले माने जा रहे इस सेमीफाइनल में उसकी बड़ी जीत मानी जाएगी। इससे आगे की दिशा भी तय होगी और बीजेपी के पक्ष में माहौल तैयार होगा। बीजेपी के पक्ष में आए नतीजों से साफ हो जाएगा कि पीएम मोदी का जादू बरकरार है और उनके ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार का बड़ा असर हुआ है। आपको बता दें कि पोल्स में त्रिशंकु विधानसभा की संभावना जताई गई थी और बीजेपी व कांग्रेस में कड़ी टक्कर देखी जा रही थी।

अगर बहुमत में कुछ सीटें कम पड़ती हैं तो सरकार बनाने के लिए बीजेपी को पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी JD(S) का समर्थन हासिल करना पड़ सकता है। हालांकि 2-4 सीटों की कमी पर निर्दलीयों का भी समर्थन हासिल कर सरकार बनाने की पहल की जा सकती है। शुरुआती रुझानों को देख कांग्रेस ने कहा है कि सभी विकल्प खुले हुए हैं।

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि कर्नाटक पार्टी के लिए दूसरी बार दक्षिण में कदम रखने का द्वार होगा। कर्नाटक में बीजेपी को सिर्फ एक बार 2008 से 2013 तक सत्ता में रहने का मौका मिला था, लेकिन पार्टी का कार्यकाल अंदरुनी कलह और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा रहा। महज पांच वर्षों में पार्टी की ओर से तीन मुख्यमंत्री बनाए गए, जिनमें से एक फिलहाल पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा हैं, भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल भी जा चुके हैं। 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने 122 सीटें जीती थीं। बीजेपी और जेडीएस को 40-40 सीटें मिली थीं।

फेल हुआ कांग्रेस का लिंगायत कार्ड

कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित कर एक बड़ी चाल चली थी, लेकिन अफसोस वह सफल न हो सकी। विशेषज्ञ चुनावों से पहले कहते नजर आ रहे थे कि अब तक भाजपा के समर्थन कहे जाने वाले लिंगायतों का वोट यदि कांग्रेस की ओर शिफ्ट होता है तो वह दोबारा सत्ता में आ सकती है, लेकिन अब जो चुनाव के नतीजे आ रहे हैं  उन्होंने सारी भविष्यवाणियों को गलत करार दे दिया है। हैरानी वाली बात यह है कि खासतौर पर लिंगायतों के प्रभाव वाले क्षेत्र में भाजपा को बड़ी कामयाबी मिलती दिखाई दे रही है। यहां भाजपा 37 सीटों पर जीत दर्ज करती दिख रही है, जबकि इस क्षेत्र में कांग्रेस को सिर्फ 18 और जेडीएस को 8 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है। 2 सीटें अन्य के खाते में जाती दिख रही है।

लिंगायतों में कांग्रेस के सेंध न लगा पाने की बड़ी वजह यह रही कि आम लिंगायत लोगों को लगता था कि इससे उन्हें सीधे तौर पर कोई फायदा नहीं होगा। कर्नाटक की राजनीति के जानकारों के मुताबिक अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने का फायदा सीधे तौर पर लिंगायत समुदाय से जुड़े ट्रस्टों को होता। इससे उन्हें अपने संस्थानों के संचालन में काफी हद तक स्वायत्ता मिल सकती थी, लेकिन आम लोग इसे बड़े फायदे के तौर पर नहीं देख रहे थे। वहीं एक दिलचस्प आंकड़े मुताबिक परंपरागत रूप से कांग्रेस के समर्थक कहे जाने वाले मुस्लिम समुदाय के प्रभाव वाले इलाकों में भी भाजपा का खूब जादू चला है। बताया जा रहा है कि मुस्लिम बहुल 10 सीटों पर भाजपा आगे चल रही है, जबकि कांग्रेस 8 और जेडीएस 7 सीटों पर बढत बनाए हुए है।

चामुंडेश्वरी से हारे सिद्धारमैया, मुश्किल से बची बादामी सीट

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना जारी है।  दोपहर 1.45 बजे तक आये रुझानों में बीजेपी 64 सीटें जीत चुकी है और 41 सीटों पर आगे चल रही है वहीं कांग्रेस ने अब तक 33 सीटें जीती हैं और 44 सीटों पर आगे चल रही है। जेडीएस ने 14 सीटें जीतकर 23 सीटों पर बढ़त बनाई हुई है। 

हालांकि कांग्रेस नेता बीच-बीच में अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन शुरूआती रूझानों ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा दिया है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि कुछ समय में शुरुआती रूझान पलटेंगे और उनकी सरकार बनेगी, हालांकि ऐसा होना मुश्किल नजर आ रहा है। कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत ने कहा है 'हमे उम्मीद है कि हमारी जीत होगी लेकिन पार्टी ने सारे विकल्प खुले रखे हैं।'

 

जेडीएस-बसपा का साथ न लेना कांग्रेस को महंगा पड़ा

कर्नाटक विधानसभा चुनाव की लड़ाई में कांग्रेस का आतिआत्मविश्वास उसे ले डूबा. कर्नाटक में कांग्रेस के सीएम पद के उम्मीदवार सिद्धारमैया पर हद से ज्यादा भरोसा करना नुकसानदायक साबित हुआ. सिद्धारमैया के चलते ही राज्य में जेडीएस और बसपा के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान में नहीं उतरी. जबकि कई विपक्षी दल के नेता कांग्रेस को जेडीएस के साथ गठबंधन करने की सलाह देते रहे, लेकिन पार्टी आलाकमान ने सिर्फ सिद्धारैमया की सुनी. इसी का नतीजा है कि कर्नाटक में अकले चलना कांग्रेस को महंगा पड़ा.

कर्नाटक में कांग्रेस अपने दम पर चुनावी मैदान में उतरी थी. राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे. जबकि जेडीएस और बसपा ने गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरे. वहीं बीजेपी अपने पुराने नेताओं को साथ लाकर चुनाव लड़ रही थी. बीएस येदियुरप्पा और श्रीरामुलू से लेकर रेड्डी बंधु तक बीजेपी खेमे में साथ खड़े थे. इसी का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा है.

 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि कांग्रेस अगर जेडीएस के साथ गठबंधन करती तो चुनावी नतीजे दूसरे होते. बता दें कि विधानसभा चुनाव से पहले भी ममता बनर्जी ने दोनों को गठबंधन करने की सलाह दी थी. लेकिन इस बार कांग्रेस राजी नहीं हुई. कर्नाटक में कांग्रेस को जेडीएस और बसपा के साथ गठबंधन न करना मंहगा पड़ा है. कर्नाटक में 19 फीसदी दलित मतदाता हैं. जबकि जेडीएस का मूल वोटबैंक वोक्कालिगा समुदाय कुल मतदाताओं का करीब 13 फीसदी है. जेडीएस नेता देवगौड़ा इसी समुदाय से आते हैं. कांग्रेस का जेडीएस के साथ गठबंधन न करने के चलते इन दोनों वोटबैंकों में बिखराव हुआ, जबकि वहीं बीजेपी का मूल वोटबैंक एकमुश्त रहा, जिसमें किसी तरह की कोई सेंधमारी नहीं हो सकी. 

कांग्रेस, जेडीएस और बसपा मिलकर एक साथ कर्नाटक में चुनावी रण में उतरते तो नतीजे कुछ और होते. इस बात को इस उदाहारण से समझ सकते हैं कि बसपा से गठबंधन का फायदा कुमारस्वामी की पार्टी जेडीएस को मिला. जेडीएस को उम्मीदों से ज्यादा सीटों की बढ़त इस बात का संकेत हैं कि दलित वोट कांग्रेस को नहीं मिले हैं. जेडीएस के साथ गया है. इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस ने गठबंधन न करके बड़ी भूल कर दी है. कर्नाटक में कांग्रेस उम्मीदवार कई सीटों पर बहुत कम वोटों से पीछे रहे.

कर्नाटक में भले ही कांग्रेस सिद्धारमैया की जिद के आगे जेडीएस के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ी हो. जबकि बाकी राज्यों में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के फैसले रहे होंगे. कांग्रेस की हार के लिए कहीं न कहीं चुनावी प्रबंधन और समीकरण को सेट न करने की भूल लगातार पार्टी को झेलनी पड़ रहा है. कांग्रेस ने जेडीएस पर आरोप लगाया कि वह बीजेपी की बी टीम के तौर पर चुनावी मैदान में है. इसकी वजह यह है कि कई सीटों पर दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे के प्रत्याशियों के खिलाफ हल्के उम्मीदवार उतारे. कांग्रेस इस तरह के चुनावी समीकरण सेट नहीं कर सकी.

कांग्रेस ने ऐसी ही गलती त्रिपुरा में दोहराई थी. वहां लेफ्ट के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतर सकती थी. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी. ऐसा ही फैसला यूपी के उपचुनाव में भी पार्टी ने किया और इसका हश्र क्या हुआ है, वह सबके सामने है. कांग्रेस एकला चलो की राह पर चलती रही तो फिर ऐसे ही एक के बाद एक राज्य उसके हाथों से निकलते जाएंगे. कांग्रेस को इसी एकला चलो की नीति के चलते पहले त्रिपुरा में हार झेलनी पड़ी और अब कर्नाटक में.

 

 

 


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