यहाँ एक साथ दो शिवलिंग की पूजा होती है, रोजाना दूध पीने आते हैं नागराज

By: Dilip Kumar
6/12/2018 3:08:20 PM
नई दिल्ली

आज हम आपको झारखंड राज्य के रामगढ़ में स्थित अद्भुत मंदिर में ले चलते हैं, यहाँ एक साथ दो शिवलिंग की पूजा होती है। नागराज भी रोजाना दूध पीने आते हैं।  माना जाता है कि एक शिवलिंग स्थापना काल से ही मंदिर में मौजूद है और दूसरा बाद में स्थापित किया गया। यहां पूरे सावन मास में जलाभिषेक करने श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं। शिवरात्रि के दिन भव्य पूजा तथा जागरण किया जाता है। इस समय यहां दो दिनों का मेला लगता है।

पुजारी सौमित्र चटर्जी बताते हैं कि भोले बाबा की सच्ची श्रद्धा से पूजा करने पर मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस शिवलिंग में इतनी शक्ति है कि अगर इसका जल कान में डाला जाए तो कान का बहना बंद हो जाता है। माना जाता है कि मंदिर की गुफा में काला नाग का निवास स्थान है, जो मिट्टी के प्याले में दूध-लावा और बताशा ग्रहण करने आता है। कई बार स्थानीय लोगों ने इसे देखा है।  भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा राष्ट्रीय धरोहर घोषित किए गए कैथा प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास लगभग 350 साल पुराना है। कहा जाता है कि रामगढ़ राज परिवार के दलेर सिंह ने इस गुफानुमा मंदिर को बनवाया था।

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रामगढ़ राज परिवार के दलेर सिंह बहुत बड़े शिवभक्त थे। दलेर सिंह का एक किला रामगढ़ में भी था, जो अभी राजागढ़ के रूप में माना जाता है। शिवभक्ति में हमेशा लीन रहने वाले दलेर सिंह ने ही कैथा में इस गुफानुमा शिव मंदिर का निर्माण कराया था। कैथा में शिव मंदिर निर्माण के बाद उन्होंने पांडुलिपि में शिव महिमा पर एक पुस्तक भी लिखी थी। इसमें इस शिव मंदिर का जिक्र भी है। कहा जाता है कि कई कारणों से दलेर सिंह की पुस्तक प्रकाशित नहीं हो सकी थी, लेकिन बनारस के किसी संग्रहालय में आज भी पुस्तक सुरक्षित है।

ऐसा कहा जाता है कि 1670-71 के दशक में बने इस मंदिर की बनावट में स्थापत्य की अदभुत कला है। इस दो मंजिले मंदिर के बेलनकार गुंबद व उस काल के लखौरी ईंटों का प्रयोग व मंदिर का निर्माण अपने आप में अद्भुत कला है। मंदिर के पिछले हिस्से के एक कोने की दीवार में नीचे से ऊपर तक दरार पड़कर फट जाने के बाद भी मंदिर अभी तक सुरक्षित है। इससे इसकी मजबूती का सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है।

मंदिर की बनावट को बारीकी से देखने से लगता है कि मंदिर के ऊपरी भाग में शिव मंदिर तो नीचे गुफानुमा फौजी पोस्ट था। मंदिर के नीचे भाग के चारो ओर छोड़े गए छोटे खिड़कीनुमा दीवार से तैनात राजा के सिपाही तीर-धनुष व अन्य हथियार के साथ तैनात रहते थे। कैथा मंदिर के निचले भाग से राजागढ़ दामोदर नदी के किनारे करीब तीन किमी तक सुरंग बनी थी। इसी सुरंग से होकर रामगढ़ राजा व उनका परिवार मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आता-जाता था।

सावन भर व प्रत्येक सोमवार को मंदिर में लगती है श्रद्धालुओं की भीड़

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कैथा प्राचीन शिव मंदिर में पूरे सावन भर भक्तों की भीड़ जलाभिषेक के लिए लगती है। प्रत्येक सोमवार को भी श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं। स्थानीय कुछ शिव भक्त युवकों द्वारा 12 महीने आपसी सहयोग व चंदा आदि कर मंदिर व पूरे परिसर की रखरखाव की जाती है। शहर के बंगाली टोला निवासी सोमिर चटर्जी मंदिर में पूजा-अनुष्ठान करते हैं। प्राचीन शिव मंदिर में सच्चे मन व भक्ति से जो भी मांगा जाता है, भोलेनाथ उनकी मनोकामना को जरूर पूरा करते हैं।

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