निर्जला एकादशी व्रत करने वाले मनुष्य को मिलता है 24 एकादशियों का पुण्य

By: Dilip Kumar
6/22/2018 3:21:21 PM
नई दिल्ली

निर्जला एकादशी ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष शनिवार 23 जून 2018 को मनाई जाएगी। हर साल 24 एकादशी होता है, लेकिन जिस वर्ष पुरुषोत्तम मास यानि मलमास पड़ता है उस साल 26 एकादशी होता है। इस वर्ष पुरुषोत्तम मास होने के वजह से 26 एकादशी होंगी। इन 26 एकादशियों में निर्जला एकादशी विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसे पाण्डव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। निर्जला एकादशी व्रत एक दिन पूर्व से यानि दशमी तिथि के दिन से ही नियमों का पालन करना चाहिए। इस व्रत में पानी पीना वर्जित है इसिलिये इसे निर्जला एकादशी कहते हैं।

मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से समूची एकादशियों के व्रतों के फल की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों को ही करना चाहिए। पौराणिक मान्यता है कि भोजन संयम न रखने वाले पांच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन कर सुफल पाए थे। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी पड़ा। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। कुछ व्रती इस दिन एक भुक्त व्रत भी रखते हैं यानि सायं को दान-दर्शन के बाद फलाहार और दूध का सेवन करते हैं। एकादशी तिथि 23 जून 2018 को 03 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगी जोकि 24 जून 2018 को 03 बजकर 52 मिनट तक प्रभावी रहेगी।

पूजा विधि

एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल और भोजन का त्याग किया जाता है। इसके बाद दान, पुण्य आदि कर इस व्रत का विधान पूर्ण होता है। इस दिन सर्वप्रथम भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें। ओम नमो भगवते वासुदेवायः मंत्र का जाप करें। इस दिन व्रत करने वालों को चाहिए कि वह जल से कलश भरें व सफेद वस्त्र को उस पर रखें और उस पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें। इस दिन कलश और गौ दान का विशेष महत्व है।

व्रत विधान

इस दिन पानी नहीं पिया जाता इसलिए यह व्रत अत्यधिक श्रम साध्य होने के साथ−साथ कष्ट एवं संयम साध्य भी है। इस दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप में भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व है। इस एकादशी का व्रत करके यथासंभव अन्न, वस्त्र, छतरी, जूता, पंखी तथा फल आदि का दान करना चाहिए। इस दिन जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल लाभ प्राप्त हो जाता है।

 निर्जला एकादशी व्रत कथा

एक दिन महर्षि व्यास ने पांडवों को एकादशी के व्रत का विधान तथा फल बताया। इस दिन जब वे भोजन करने के दोषों की चर्चा करने लगे तो भीमसेन ने अपनी आपत्ति प्रकट करते हुए कहा, ''पितामह! एकादशी का व्रत करते हुए समूचा पांडव परिवार इस दिन अन्न जल न ग्रहण करे, आपके इस आदेश का पालन मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं तो बिना खाए रह ही नहीं सकता। अतः चौबीस एकादशियों पर निराहार रहने की कष्ट साधना से बचने के लिए मुझे कोई एक ऐसा व्रत बताइए जिसे करने पर मुझे विशेष असुविधा न हो और वह फल भी मिल जाए जो अन्य लोगों को चौबीस एकादशी व्रत करने पर मिलेगा।''

महर्षि व्यास जानते थे कि भीमसेन के उदर में वृक नामक अग्नि है। इसीलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भी उनकी भूख शांत नहीं होती। अतः भीमसेन के इस प्रकार के भाव को समझ महर्षि व्यास ने आदेश दिया, ''प्रिय भीम! तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को ही मात्र एक व्रत किया करो। इस व्रत में स्नान आचमन के समय पानी पीने का दोष नहीं होता। इस दिन अन्न न खाकर, जितने पानी में एक माशा जवन की स्वर्ण मुद्रा डूब जाए, ग्रहण करो। इस प्रकार यह व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाएगा तथा पूर्ण एकादशियों के पुण्य का लाभ भी मिलेगा।'' क्योंकि भीम मात्र एक एकादशी का व्रत करने के लिए महर्षि के सामने प्रतिज्ञा कर चुके थे, इसलिए इस व्रत को करने लगे। इसी कारण इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।


comments