धर्म परिवर्तित आदिवासियों का छिनेगा आरक्षण

By: Devendra Gautam
6/23/2018 4:27:33 PM
Ranchi

रांची। झारखंड सरकार धर्म परिवर्तन के बाद आदिवासियों को आरक्षण और शिड्यूल् ट्राइव को देय अन्य सुविधाओं से वंचित करने का निर्णय ले चुकी है। रघुवर दास सरकार ने इस संबंध में महाधिवक्ता का मंतव्य मांगा था। महाधिवक्ता अजीत कुमार ने सरकार के विचार को सही ठहराया है। उनका कहना है कि जो आदिवासी संस्कृति और परंपराओं से दूर हो चुके हैं वे आरक्षण के हकदार नहीं हो सकते। सरकार का मानना है कि आदिवासी धर्म परिवर्तन कर ईसाई अथवा इस्लाम विरादरी में शामिल हो जाते हैं। धर्म परिवर्तन के लिए मुल्लों और पादरियों द्वारा देय लाभ प्राप्त करते हैं और दूसरी तरफ आदिवासी के रूप में सरकारी प्रावधानों का भी लाभ उठाते हैं। इसके कारण धर्म परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है। केंद्रीय सरना समिति और उनकी सामाजिक संस्थाओं ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया है क्योंकि इससे उनका हक मारा जाता है। दूसरी तरफ ईसाई आदिवासियों के पैरोकारों ने इसका विरोध किया है। उनके मुताबिक धर्म परिवर्तन के बाद भी आदिवासी आदिवासी ही रहता है। झारखंड में आदिवासियों के धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया ब्रिटिश काल से ही चली आ रही है। मिश्नरियों ने उनके बीच शिक्षा का प्रसार किया। उनके सशक्तीकरण में अहम भूमिका निभाई। उनकी चेतना को उन्नत किया। लेकिन उनका राजनीतिक इस्तेमाल भी कम नहीं हुआ।

दूसरी तरफ यह भी सच है कि धर्म परिवर्तन के बाद आदिवासी परंपराओं के नाम पर सबसे ज्यादा हो-हल्ला भी नव दीक्षित ईसाइयों ने ही मचाया। ने आज खूंटी-खरसावां के जिन गांवों में पत्थलगड़ी के जरिए समानांतर सरकार चलाने की कोशिश की जा रही है उसमें मुख्य भूमिका ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों की ही है। सरना धर्म को मानने वाले इसे अपनी परंपरा का दुरुपयोग बता रहे हैं।


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