'ब्रह्मा विधायिका, विष्णु कार्यपालिका और शिव न्यायपालिका हैं'

By: Dilip Kumar
7/25/2018 7:32:07 PM
नई दिल्ली

केरल के सबरीमाला मंदिर मे 10 से 50 साल की महिलाओं पर रोक मामले में बुधवार को भी सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई हुई. सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में सुनवाई के दौरान नायर सर्विस सोसायटी की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील के परासरण ने हिंदू धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि ब्रह्मा विधायिका, विष्णु कार्यपालिका, शिव न्यायपालिका और अर्धनारीश्वर हैं, तभी उनका यह स्वरूप अनुच्छेद 14 जैसा है यानी सबको बराबर का अधिकार.

परासरण ने कहा कि केरल में 90 फीसदी से ज्यादा आबादी शिक्षित है. महिलाएं भी पढ़ी लिखी हैं और केरल का समाज मातृ प्रधान है. हिंदू धर्म को सबसे ज्यादा सहिष्णु बताते हुए उन्होंने कहा कि हिंदू नियम, कायदे और परंपराएं भेदभाव नहीं करती. सती प्रथा का हिंदू धर्म और आस्था में कोई आधार नहीं रहा है.

परासरण ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मेरे ऊपर दो दायित्व हैं. पहला कोर्ट में मौजूद मी लॉर्ड के आगे अपना पक्ष रखना और दूसरा उस लॉर्ड के आगे जो हम सब से ऊपर हैं. उन्होंने कहा, 'मेरा मानना है कि सबरीमाला मंदिर में 60 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को ही एंट्री मिले. भगवान अय्यपा स्वामी की मान्यता ब्रह्मचारी के रूप में है.' परासरण ने यह भी कहा कि अगर कोर्ट सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज को सुन रहा है तो उनकी बात भी सुननी चाहिए जो परंपरा को जीवित रखने के लिए आवाज उठा रहे हैं.

वरिष्ठ वकील परासरण ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में जो दर्शन के लिए आ रहे हैं, वे युवा महिलाओं के साथ न आएं. बुजुर्ग महिलाएं और बच्चे अपवाद हैं. इसका मतलब है कि आप केवल ब्रह्मचर्य का पालन ही न करें बल्कि देखें भी. 12वीं सदी में बना यह मंदिर पथानामथिट्टा जिले में स्थित है और भगवान अयप्पा को समर्पित है. सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को भी सुनवाई जारी रहेगी. मंगलवार को सुनवाई के दौरान दोवासम बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में उन मंदिरों की सूची दी थी, जहां पुरुष या स्त्री के प्रवेश पर है रोक है. दिल्ली के निज़ामुद्दीन दरगाह का भी उदाहरण दिया जहां महिलाओं के मुख्य स्थान जाने पर रोक है.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने त्रावणकोर देवासम बोर्ड से पूछा था कि आप साबित करें कि ये पाबन्दी धार्मिक विश्वास का अभिन्न हिस्सा है. कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ माहवारी की वजह से महिलाएं मलिन हो जाती हैं. लिहाजा महिलाओं के मंदिर में दाखिले पर ही पाबन्दी लगा देना उनके संवैधानिक अधिकारों और गरिमा के खिलाफ है.

कोर्ट ने बोर्ड को आड़े हाथों लेते हुए पूछा था कि केरल हाईकोर्ट में तो ये कहा था कि सबरीमाला के देव अय्यप्पा के मंदिर में सालाना उत्सव के शुरुआती पांच दिन महिलाओं के दाखिल होने की छूट है. यानी कोई पाबन्दी नहीं. तो अब यहां विरोधाभासी बयान क्यों दिया जा रहा है? मस्जिदों में भी तो महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है. तो सिर्फ एक जनहित याचिका के आधार पर बिना किसी ठोस दलील के सिर्फ मन्दिर मामले पर ही सुनवाई क्यों? समता के अधिकार का उल्लंघन का मामला तो फिर वहां भी बनता है.

त्रावणकोर देवासम बोर्ड के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की इस दलील के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में सुने जा रहे सबरीमाला के अय्यप्पा स्वामी के मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के मामले में एक नया मोड़ आ गया है. त्रावणकोर देवासम बोर्ड बोर्ड की तरफ से कहा गया था कि आप माहवारी वाली महिलाओं को तो छोड़ दीजिए, मस्जिद में भी तो महिलाओं को जाने की इजाजत नहीं दी गई है. बोर्ड की तरफ से कहा गया था कि सबरीमाला में दशकों से ये परंपरा चल रही है. बोर्ड ने कहा था कि केवल जनहित याचिका के आधार पर हिन्दू धर्म को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है.

क्‍या है मामला

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकतीं हैं. यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं. इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे. सबरीमाला मंदिर में हर साल नवम्बर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं, बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है. भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज़्यादा भक्त पहुंचते हैं.



comments