मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि

By: Dilip Kumar
8/5/2018 7:06:22 AM
नई दिल्ली

अर्थव्यवस्था को संतुलित ढंग से चलाने और राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने के मामले में मोदी सरकार का प्रदर्शन यूपीए से बेहतर रहा है। यूपीए के शासन में आसमान छूने वाले राजकोषीय घाटे और चालू खाते के घाटे को नियंत्रित करने में मोदी सरकार ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। महज कुछ ही वर्षो के भीतर सरकार ने सभी तरह के घाटे को नियंत्रित करने का काम किया है।

वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2011-12 में राजकोषीय घाटा देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.9 प्रतिशत हो गया था। मोदी सरकार इसे घटाकर चालू वित्त वर्ष में 3.3 प्रतिशत के स्तर पर लाने जा रही है। राजकोषीय घाटा सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियों और ऋण-भिन्न पूंजीगत प्राप्तियों तथा कुल व्यय के बीच का अंतर होता है।

यह अंतर इस बात का दर्शाता है कि सरकार को अपना खर्च चलाने के लिए कितनी राशि उधार लेनी पड़ेगी। अगर राजकोषीय घाटा अधिक होता है तो उससे सरकार को बाजार से अधिक उधार लेना पड़ता है जिसके चलते ब्याज दरें बढ़ जाती हैं, कर्ज महंगा हो जाती है और महंगाई भी काबू से बाहर हो जाती है। यही वजह है कि जब यूपीए सरकार के कार्यकाल में राजकोषीय घाटे का स्तर काफी अधिक था, उस समय महंगाई दर भी काफी अधिक थी। उस समय खुदरा महंगाई दर दहाई के अंक में थी।

मोदी सरकार ने राजकोषीय घाटे को नीचे लाने के साथ-साथ महंगाई को भी नीचे लाने में सफलता हासिल की है। राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2017-18 में जीडीपी का 3.5 प्रतिशत रहने के बाद चालू वित्त वर्ष में 3.3 प्रतिशत के स्तर पर आने का अनुमान है। एनडीए सरकार ने यह घाटा ऐसे समय काबू किया जब सरकार ने एक जुलाई 2017 से देश में जीएसटी लागू किया है और इसके तहत सरकार को शुरुआती पांच वर्षो में राज्यों को होने वाली राजस्व क्षति की भरपाई करनी है। इस तथ्य के बावजूद एनडीए सरकार अपना राजकोषीय संतुलन बनाए रखने में कामयाब रही है।

एनडीए सरकार ने जहां घरेलू मोर्चे पर राजकोषीय घाटे को काबू रखा वहीं बाहरी मोर्चे पर चालू खाते के घाटे के प्रबंधन में भी शानदार प्रदर्शन किया है। यूपीए सरकार के कार्यकाल में वित्त वर्ष 2012-13 में चालू खाते का घाटा जीडीपी के 4.8 प्रतिशत था जो एक रिकार्ड था।
मोदी सरकार ने इसे घटाकर वित्त वर्ष 2016-17 में 0.7 प्रतिशत के स्तर पर लाने का काम किया। हालांकि पिछले साल अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ने के चलते चालू खाते का घाटा मामूली बढ़कर जीडीपी का 1.9 प्रतिशत हो गया है। चालू वित्त वर्ष में भी कच्चे तेल की कीमतों का असर पड़ने के चलते इसके 2.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

असल में चालू खाते के घाटे पर नियंत्रण इसलिए जरूरी है क्योंकि यह देश की भुगतान स्थिति को दर्शाता है। देश के भीतर आने वाली कुल विदेशी मुद्रा और देश से बाहर जाने वाली कुल विदेशी मुद्रा की स्थिति को दर्शाता है। अगर चालू खाते के घाटे का स्तर अधिक रहता है तो उससे भुगतान संतुलन की स्थिति डगमगा जाती है। नब्बे के दशक के शुरु में भुगतान संतुलन बिगड़ने पर तत्कालीन सरकार को देश का सोना गिरवी रखना पड़ा था।


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