किसान आंदोलन का शंखनाद

By: Devendra Gautam
5/25/2018 11:55:56 PM
Ranchi

 

-अभिमन्यु कोहाड़

एक जून से देशव्यापी गांव बंद आंदोलन

 

नई दिल्ली। पिछले 20 साल में देश में लगभग 5 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

"किसान विरोधी" व्यवस्था से परेशान हो कर देश के किसान अब निर्णायक आंदोलन का मूड बना चुके हैं। राष्ट्रीय किसान महासंघ के आह्वान पर देशभर के किसान 1 से 10 जून तक गाँव बंद आंदोलन कर रहे हैं। इस आंदोलन के तहत 10 दिन तक किसान अपना उत्पाद यानि फल, दूध, अनाज, सब्जी आदि शहर में नहीं भेजेंगे। किसान खुद भी शहर नहीं जाएंगे व न ही शहर से कोई सामान खरीदेंगे। पिछले साल जब मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र में यह आंदोलन हुआ था तो दो राज्यों की सरकारें हिल गयी थी। इस साल यह आंदोलन अधिक व्यापक स्तर पर आयोजित किया जा रहा है।

लेकिन सवाल यह है कि आखिर किसान किन मांगों को लेकर यह आंदोलन कर रहे हैं व क्या किसानों की मांग सही है? बीजेपी की सरकार दावा कर रही है कि उसने किसानों का अनेक राज्यों में कर्ज माफ किया है व लागत मूल्य में 50 प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात भी स्वीकार कर ली है। इन दावों में कितनी सच्चाई है? यह एक बड़ा सवाल है।

किसानों का यह आंदोलन मुख्य तौर पर 4 मांगों को लेकर है। किसानों की पहली मांग है कर्ज़ मुक्ति व दूसरी मांग है कि किसानों को C2 लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत जोड़कर लाभकारी मूल्य दिया जाए, किसान नेता जोर देकर इस बात को कह रहे हैं कि उन्हें कर्ज़ मुक्ति चाहिए, कर्ज़ माफी नहीं क्योंकि माफी अपराधी को दी जाती है। किसान तो अन्नदाता है, कोई अपराधी नहीं।

कर्ज़ मुक्ति की मांग पर कुछ सरकारी बुद्धिजीवी व शहरवासी कहते हैं कि जब किसान ने कर्ज़ लिया है तो वो लौटा क्यों नहीं रहा है? लेकिन यह सवाल करने से पहले सरकारी बुद्धिजीवियों को अपनी सरकारों से यह सवाल करना चाहिए कि क्या सरकारों ने अपने वादों व अपने द्वारा बनाये हुए आयोगों की सिफारिशों को पूरा किया है? 2005-06 में स्वामीनाथन आयोग ने किसानों को लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की सिफारिश की लेकिन उस रिपोर्ट को 12 साल बीत चुके हैं व कांग्रेस और बीजेपी दोनों की सरकारें सत्ता में रह चुकी हैं लेकिन स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को अब तक लागू नहीं किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले किसानों से यह वादा किया था कि उनकी सरकार बनते ही वे किसानों को लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम समर्थित मूल्य देंगे। लेकिन पहले 4 साल में बीजेपी सरकार ने इस मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं लिया। अब 2018 में इस मुद्दे पर बात भी की तो A2+FL लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात कह रहे हैं जबकि किसानों की मांग है C2 लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाए।

अब अगर सरकारों ने अपने वादों के अनुसार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया होता तो किसानों के ऊपर कोई कर्ज़ नहीं बनता, आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं। 2016-17 की कमीशन फ़ॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट्स एंड प्राइस के अनुसार अगर स्वामीनाथन रिपोर्ट व मोदी जी के वादे के अनुसार किसानों को समर्थन मूल्य मिलता तो गेहूं पर किसानों को 119 रुपए प्रति क्विंटल अधिक मिलते। 2016-17 में भारत में गेहूं की पैदावार 94.56 मिलियन टन यानि 94.56 करोड़ क्विंटल थी। अब हर क्विंटल पर किसान को 119 रुपए अधिक मिलते तो 1 साल में सिर्फ गेहूं की फसल पर किसानों को कुल 11252 करोड़ रुपए अधिक मिलते। इसी तरह कपास की फसल पर किसान को 1720 रुपए प्रति क्विंटल अधिक मिलने चाहिए थे, बाजरे पर 537 रुपए प्रति क्विंटल अधिक, धान पर 597 रुपए प्रति क्विंटल अधिक, चने पर 653 रुपए प्रति क्विंटल अधिक मिलने चाहिए थे लेकिन सरकारों ने किसानों को अपने वादों के अनुसार उचित दाम नहीं दिए। अब अगर यूपीए व एनडीए की सरकार अपने वादों अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य देती तो किसानों के ऊपर कोई कर्ज़ नहीं बनता है। इस समय एग्रो इंडस्ट्री के अलावा किसानों पर लगभग 4.50 लाख करोड़ का कर्ज है। अगर सरकारें वादाखिलाफी नहीं करती तो किसानों के ऊपर इस समय कोई कर्ज़ नहीं होता।

किसानों की तीसरी व चौथी मांगें हैं किसानों की सुनिश्चित आय व दूध और सब्जी का MSP निर्धारित हो। महाराष्ट्र के कुछ जिलों में किसानों को दूध 17 रुपए प्रति लीटर बेचना पड़ता है, जबकि उस पर लागत लगभग 30 रुपए प्रति लीटर है। इसी तरह सब्ज़ियों के उचित दाम भी किसानों को नहीं मिलते हैं और किसानों को विवश हो कर कई बार अपनी सब्ज़ियां जानवरों को खेत में ही खिलानी पड़ती हैं। सरकार की भावान्तर योजना, बीमा योजना पूरी तरह विफल हो चुकी हैं।

कई बार बाढ़ व ओलावर्ष्टि में किसानों की फसल बर्बाद हो जाती हैं, ऐसी स्थिति में किसान भुखमरी के कगार पर पहुंच जाता है इसलिए किसानों की यह मांग है कि सरकार किसानों की एक न्यूनतम य

आय सुनिश्चित करे जिस से वह अपना जीवनयापन कर सके।

 

किसान नेताओं द्वारा पूरे देश के किसानों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि किसान अपने फल, सब्ज़ी, अनाज व दूध को सड़कों पर ना फेंकें बल्कि गरीब बस्तियों में बाँट दें। पूरा आंदोलन अहिंसक व शांतिपूर्ण रहेगा और किसानों को सख्त हिदायत दी गयी है कि ऐसे शरारती तत्वों से सावधान रहें जो आंदोलन में घुसकर हिंसा करते हैं।

किसान नेताओं ने देश के अन्य सामाजिक संगठनों से अपील की गई है कि वे अपने अपने जिलों में इस कार्यक्रम को आयोजित करें और देश के अन्नदाता का सहयोग करें। शहर के आम नागरिकों को परेशान करना किसानों का मकसद नहीं है इसलिए शहर के आसपास गाँव में केंद्र बिंदु बनाये जाएंगे जहां से शहरवासी C2+50 प्रतिशत के फार्मूले के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सिर्फ पारिवारिक जरूरतों हेतु फल, दूध व सब्ज़ी खरीद सकते हैं।

राष्ट्रीय किसान महासंघ द्वारा 6 जून को देशभर में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया जाएगा जिसमें पिछले साल मंदसौर में शहीद हुए किसानों को श्रद्धांजलि दी जाएगी। 10 जून को दोपहर 2 बजे तक किसानों द्वारा देशव्यापी भारत बन्द का आयोजन किया जाएगा।


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