दिलचस्प रहे झारखंड में उपचुनाव के दिलचस्प नतीजे

By: Devendra Gautam
6/3/2018 7:02:46 PM
Ranchi

 

 

देवेंद्र गौतम

 

रांची। सिल्ली और गोमिया विधानसभा क्षेत्रों में वोटों का प्रतिशत बढ़ने पर भी आजसू को पराजय का सामना करना पड़ा जबकि वोट घटने पर भी झामुमो ने जीत का परचम लहराया। यह इस बात की अलामत है कि आमजन के बीच आजसू की स्वीकार्यता तो बढ़ी लेकिन भाजपा के साथ खड़े होने के कारण उसे नुकसान उठाना पड़ा। विपक्षी दलों की एकजुटता के कारण उनके वोटों का बिखराव नहीं हुआ। मतदाताओं के अंदर भाजपा के प्रति आक्रोश था। आजसू एनडीए का घटक दल है। इस कारण उसे ज्यादा वोट मिलने पर भी जीत का सेहरा हासिल नहीं हो सका। विपक्षी दल एकजुट थे। समीकरण एनडीए के खिलाफ था। राज्य सरकार की स्थानीय नीति और सीएनटी तथा एसपीटी में संशोधन की कोशिशों की वज़ह से नाराज़ लोगों ने भाजपा को तो हराया ही, आजसू को भी एनडीए में होने की कीमत चुकानी पड़ी। इसी का नतीजा है कि सिल्ली में 11.5 प्रतिशत वोट वृद्धि और गोमिया में 35 प्रतिशत वोट बढ़ने के बाद भी आजसू ने दोनों सीटें गंवा दी। इस पराजय से आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो बौखला गए हैं और गठबंधन पर पुनर्विचार की बात कह रहे हैं। उन्हें चुनावी नतीजों की समीक्षा करनी चाहिए और ठंढे दिमाग से कोई फैसला लेना चाहिए। चुनाव में हार-जीत के बहुत से कारण होते हैं।

सिल्ली की बात करें तो 2014 में महागठबंधन उम्मीदवार को 87000 वोट मिले थे जबकि आजसू को मात्र 50000 मत मिले थे। 2018 में आजसू के वोट बढ़कर 63500 तक पहुँच गए जबकि महागठबंधन उम्मीदवार के वोट घटकर 77000 पर आ गए। इसी तरह गोमिया में 2009 में आजसू को 24000 वोट मिले थे जबकि 2018 में उसे 59000 वोट मिले। भाजपा को 2014 में मिले थे 56000 वोट, इसबार 2018 में मिले 41000 वोट। यानी भाजपा के वोट घटे जबकि आजसू के बढ़े। 2014 में झामुमो को गोमिया में मिले थे 94000 वोट जबकि 2018 में मिले मात्र 61000। इस तरह स्पष्ट है कि केवल आजसू के वोट बढे।  जबकि भाजपा और झामुमो के वोट घटे हैं। राजनीति में जीत हार को लोकप्रियता का पैमाना नहीं माना जा सकता।

आजसू का बढ़ता वोट बैंक पिछड़ों में इस पार्टी की बढती स्वीकार्यता को दिखाता है। स्थानीय नीति की विसंगतियों पर आजसू ने सड़क से सदन तक विरोध किया था और इसे झारखण्ड के स्थानीय लोगों के लिए आत्मघाती कदम बताया था। इतने के बाद भी सिल्ली में भाजपा नेताओं ने सुदेश महतो की राह में रोड़े अटकाए, गठबंधन धर्म के खिलाफ उन्हें हराने में उर्जा लगाते रहे। फिर भी आजसू के वोट बैंक में इजाफा हुआ।

इन दोनों उप चुनावों के नतीजे झारखण्ड की गठबंधन राजनीति को आनेवाले दिनों में गहरे प्रभावित करेंगे। भाजपा और आजसू के बीच की दूरी बढ़ रही है। सुदेश महतो ने गठबंधन पर पुनर्विचार करने को कहा है तो भाजपा नेता सीपी सिंह ने भी आजसू पर निशाना साधा है। झामुमो अभी अपनी जीत के जश्न में सभी गैर गठबंधन दलों को ख़त्म होने का सर्टिफिकेट बाँट रहा है। जीत के उत्साह में झामुमो विपक्षी गठबंधन के लिए समस्या खड़ी कर सकता है। उसके संयम बरतने पर ही 2019 के चुनाव में विपक्षी गठबंधन का झारखंड में बेहतर प्रदर्शन हो सकता है।


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