दुर्गा अष्टमी के दिन होगा कन्या पूजन

By: Dilip Kumar
10/16/2018 9:26:20 PM
नई दिल्ली

बुधवार  को दुर्गा अष्टमी है. इस दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा होती है. महागौरी का वर्ण पूर्णतः गौर है. मां महागौरी के गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है. इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है. ‘अष्टवर्षा भवेद् गौरी’ इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं. महागौरी की चार भुजाएंं हैं और इनका वाहन वृषभ है. इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है. ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा हैं. इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है. नवरात्रि के आठवें दिन यानी अष्टमी के दिन कन्या पूजन का विधान है. हालांकि देश के कुछ हिस्सों में नवमी के दिन भी कन्या पूजन होता है. नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के 9 स्वरूपों की पूजा होती है और कन्या पूजन में इन्ही नौ रूपों की पूजा होती है.

नवरात्रि की अष्‍टमी तिथि: 17 अक्‍टूबर, बुधवार को

अष्‍टमी तिथि प्रारंभ: 16 अक्‍टूबर 2018 की सुबह 10 बजकर 16 मिनट से

अष्‍टमी तिथ समाप्‍त: 17 अक्‍टूबर 2018 की दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक.

कन्‍या पूजन का शुभ मुहूर्त

17 अक्‍टूबर 2018 को कन्‍या पूजन के दो शुभ मुहूर्त हैं: सुबह 6 बजकर 28 मिनट से 9 बजकर 20 मिनट तक.
सुबह 10 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक.

कन्या पूजन विधि: दुर्गा अष्टमी के दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा की जाती है. इसलिए सुबह उठकर स्नान कर सबसे पहले गणपति और मां महागौरी की पूजा करें. फिर कन्याओं के लिए भोजन बनाएं. भोजन में हलवा और चने जरूर बनाएं. क्योंकि मां को यह भोग अति प्रिय है.कन्या पूजन के लिए हमेशा कन्याओं को एक दिन पहले ही यानी सप्तमी को ही आमंत्रण दे आएं. साथ में बटुक भैरव के रूप में एक बालक को भी जरूर आमंत्रित करें.

आप कंजक पूजा में 2 से 10 साल तक कि कन्याओं को आमंत्रित कर सकते हैं. अष्टमी के दिन शुभ मुहूर्त में कन्याओं और बटुक भैैैैरव के रूप में बालक को आसन पर बिठाएं. ध्यान रहे कि कन्याएं मां दुर्गा का रूप होती हैं, ऐसे में उनका स्वागत जयकारे के साथ करें और घर बिल्कुल स्वच्छ रखें. जब कन्याएं आसन ग्रहण कर लें तो एक-एक कर सभी कन्याओं का पैर धोएं और रोली, कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं. उनकी कलाई पर मौली बाधें, माला चढ़ाएं और उनकी आरती करें. इसके बाद सभी कन्याओं और बालक को भोग लगाएं. उन्हें चना, हलवा और पूरी का प्रसाद खिलाएं और उन्हें भेंट दें. पैर छूकर कन्याओं से आशीर्वाद लें.


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