यूपी में जातीय गठबंधन का तय होगा भविष्य

By: Dilip Kumar
5/21/2019 4:49:49 PM
नई दिल्ली

सबसे बड़ी परीक्षा सपा- बसपा गठबंधन की है जिसे चुनाव से पहले तक अजेय समझा गया और आपसी समन्वय से दोनों दलों के बड़े नेताओं ने भाजपा के सामने एक मजबूत दीवार भी खड़ी की। हालांकि, भाजपा और कांग्रेस ने भी अपनी मजबूत किलेबंदी के लिए अन्य दलों का सहारा लेने में कोई चूक नहीं की। 

प्रदेश में लोकसभा की सर्वाधिक 80 सीटें होने की वजह से सभी राजनीतिक दलों की निगाहें यहां एक-एक सीट पर थीं। सपा-बसपा का गठबंधन होने के बाद दोनों दलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती इसे निचले स्तर पर ले जाने की थी। इसलिए, चुनाव की घोषणा से पहले ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और मायावती ने इसकी जमीन तैयार करनी शुरू कर दी।

इसके लिए बूथ स्तर पर समन्वय कमेटियां तैयार की गईं। चूंकि दोनों दलों में लगभग ढाई दशकों से खुली दुश्मनी थी, इसलिए पार्टी के नेताओं को सार्वजनिक मंचों पर सावधानी पूर्वक बयान देने के ही निर्देश दिए गए। इसका परिणाम यह हुआ कि चुनाव आते-आते यादव और दलितों में काफी हद तक समन्वय बनाने में इन्हें सफलता मिली और पूर्वांचल की कई सीटों पर इसका असर भी देखने को मिल   सकता है।

उत्तर प्रदेश के जो भी नतीजे होंगे उससे इस सवाल का जवाब जरूर मिलेगा कि जातीय राजनीति किस दिशा में जा रही है और क्या अब उत्तर प्रदेश सरीखे राज्य में जाति कोई फैक्टर नहीं रह गया है। यह सवाल सपा और बसपा के प्रदर्शन के आकलन के आधार पर अपना उत्तर खुद देगा। इसीलिए तो इस राज्य को सबसे अधिक अहम माना जाता है।

 


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