चंद्रयान-2: चंद्रमा पर पहुंचने वाला चौथा देश बनेगा भारत

By: Dilip Kumar
7/13/2019 11:48:57 PM
नई दिल्ली

अंतरिक्ष क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय होड़ सोमवार को उस समय और तेज हो जाएगी, जब भारत अपने कम-खर्च वाले मिशन को लॉन्च करेगा और दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा, जिन्होंने चंद्रमा पर खोजी यान उतारा है। किसी मानव के पहली बार चांद पर उतरने की 50वीं वर्षगांठ से सिर्फ पांच दिन पहले 'चंद्रयान 2' पूरे दशक तक की गईं तैयारियों के बाद आंध्र प्रदेश से सटे एक द्वीप से उड़ान भरेगा। इस मिशन से यह भी सामने आएगा कि अपोलो 11 मिशन के जरिए नील आर्मस्ट्रॉन्ग द्वारा मानव सभ्यता के लिए उठाए गए अहम कदम के बाद से अंतरिक्ष विज्ञान कितना आगे निकल चुका है।

भारत ने 3,84,400 किलोमीटर (2,40,000 मील) की यात्रा के लिए 'चंद्रयान 2' को तैयार करने में 960 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, और यह सतीश धवन स्पेस सेंटर से सोमवार को उड़ान भर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर 6 या 7 सितंबर को उतरेगा। इस मिशन से पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा के रहस्यों को जानने में न सिर्फ भारत को मदद मिली बल्कि दुनिया के वैज्ञानिकों के ज्ञान में भी विस्तार हुआ।

उल्लेखनीय है कि प्रक्षेपण के सिर्फ आठ महीनों में ही चंद्रयान-1 ने मिशन के सभी लक्ष्यों और उद्देश्यों को हासिल कर लिया था। आज भी इस मिशन से जुटाए आंकड़ों का अध्ययन दुनिया के वैज्ञानिक कर रहे हैं। इस मिशन से दुनिया भर में भारत की साख भी बढ़ी और वैज्ञानिकों का मनोबल भी। इसी का नतीजा है कि अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, यानी इसरो चंद्रयान-2 के लॉन्चिंग की तैयारियों को पूरा कर चुका है।
चंद्रयान-2 का उद्देश्य
मिशन के दौरान चंद्रमा की सतह में मौजूद तत्वों का अध्ययन कर यह पता लगाना कि उसके चट्टान और मिट्टी किन तत्त्वों से बनी है। वहां मौजूद खाइयों और चोटियों की संरचना का अध्ययन। चंद्रमा की सतह का घनत्व और उसमें होने वाले परिवर्तन का अध्ययन। ध्रुवों के पास की तापीय गुणों, चंद्रमा के आयनोस्फीयर में इलेक्ट्रानों की मात्रा का अध्ययन। चंद्रमा की सतह पर जल, हाइड्रॉक्सिल के निशान ढूंढने के अलावा चंद्रमा के सतह की थ्रीडी तस्वीरें लेना।

यह भी जानिए

अमेरिका ने अपने 15 अपोलो मिशनों पर 25 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए हैं, जो आज के मूल्यों के लिहाज से लगभग 100 अरब डॉलर होते हैं। इन मिशनों में वे छह मिशन भी शामिल हैं, जिनके जरिये नील आर्मस्ट्रॉन्ग तथा अन्य अंतरिक्षयात्रियों को चंद्रमा पर उतारा गया। चीन ने चंद्रमा पर भेजे जाने वाले अपने चैंगे 4 यान पर 8.4 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए हैं। इनके अलावा 1960 और 1970 के दशक में चलाए गए चंद्रमा से जुड़े अभियानों पर आज के मूल्यों के लिहाज से 20 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए।

इसरो की तैयारियां

सरो चंद्रयान-1 की सफलता के बाद से ही अपने अब तक के चुनौतीपूर्ण अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान-2 की तैयारी में जुट गया था।
चंद्रयान-2 के तहत इसरो पहली बार चंद्रमा में ऑर्बिटर, रोवर और लून लैंडर भेज रहा है। इस अभियान से नई तकनीकों के इस्तेमाल और परीक्षण के साथ-साथ नए प्रयोगों को भी बढ़ावा मिलेगा। लॉन्च होने के 40 दिन बाद यह चांद पर लैंड करेगा। इस मिशन के तहत इसरो पहली बार अपने यान को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने की कोशिश करेगा।

पहले चंद्रयान को इसी साल अंतरिक्ष में भेजा जाना था लेकिन इसके डिजाइन में कुछ बदलाव किए जाने के कारण इसमें देरी हुई है।
नए डिजाइन में लगभग 600 किलोग्राम की बढ़ोतरी की गई है। दरअसल प्रयोगों के दौरान पता चला था कि उपग्रह से जब चंद्रमा पर उतरने वाला हिस्सा बाहर निकलेगा तो उपग्रह हिलने लगेगा। इसके लिये डिजाइन में सुधार और वजन बढ़ाने की जरूरत महसूस की गई।
पहले कुल प्रक्षेपण वजन 3250 किलोग्राम तय था अब यह 3850 किलोग्राम होगा।

यान के ऑर्बिटर का वजन 2379 किलोग्राम, लैंडर का 1471 किलोग्राम और रोवर का 27 किलोग्राम होगा।
चंद्रयान-2 में कुल 14 पेलोड हैं। जिसमें 13 भारतीय, 8 ऑर्बिटर, 3 लैंडर तथा 2 रोवर हैं। लैंडर में एक पेलोड नासा का भी है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने दूसरे चंद्र मिशन चंद्रयान-2 के लिये महत्वपूर्ण ‘पेलोड के ए बैंड रडार अल्टीमीटर’ तैयार किया है।

यह पे-लोड चंद्रयान-2 के लैंडर में लगेगा। इस पे-लोड का इंटीग्रेशन लैंडर में किया जाएगा और उसके बाद परीक्षण की प्रक्रियाएं शुरू होंगी।
केए बैंड रडार अल्टीमीटर और एचडीए प्रोसेसर चंद्रयान-2 के लैंडर का एक मुख्य पे-लोड है जिसका विकास पूर्णतः स्वदेशी तकनीक से अहमदाबाद के अंतरिक्ष अनुप्रयोग ने किया है। मिशन में इसकी भूमिका अहम होगी।
चंद्रयान-2 के लैंडर का नामकरण इसरो के संस्थापक विक्रम साराभाई के नाम पर ‘विक्रम’ किया गया है।

चंद्रयान-2

यह चंद्रमा पर भेजा जाने वाला भारत का दूसरा तथा चंद्रयान-1 का उन्नत संस्करण है।
इसके द्वारा पहली बार चंद्रमा पर एक ऑर्बिटर यान, एक लैंडर और एक रोवर ले जाया जाएगा।
ऑर्बिटर जहां चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा करेगा, वहीं लैंडर चंद्रमा के एक निर्दिष्ट स्थान पर उतरकर रोवर को तैनात करेगा।
इस यान का उद्देश्य चंद्रमा की सतह के मौलिक अध्ययन (Elemental Study) के साथ-साथ वहां पाए जाने वाले खनिजों का भी अध्ययन (Mineralogical Study) करना है।
इसे जीएसएलवी-एमके-दो (GSLV-MK-II) द्वारा पृथ्वी के पार्किंग ऑर्बिट (Earth Parking Orbit - EPO) में एक संयुक्त स्टैक के रूप में भेजे जाने की योजना बनाई गई है।
गौरतलब है कि वर्ष 2010 के दौरान भारत और रूस के बीच यह सहमति बनी थी कि रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ‘Roscosmos’ चंद्र लैंडर (Lunar Lander) का निर्माण करेगी तथा इसरो द्वारा ऑर्बिटर और रोवर के निर्माण के साथ ही जीएसएलवी द्वारा इस यान की लॉन्चिंग की जाएगी।
बाद में यह निर्णय लिया गया कि चंद्र लैंडर का विकास (Lunar Lander development) भी इसरो द्वारा ही किया जाएगा। इस प्रकार चंद्रयान-2 अब पूर्णरूपेण एक भारतीय मिशन है।
इस मिशन की कुल लागत लगभग 800 करोड़ रुपये है। इसमें लॉन्च करने की लागत 200 करोड़ रुपये तथा सेटेलाइट की लागत 600 करोड़ रुपये शामिल है। विदेशी धरती से इस मिशन को लॉन्च करने की तुलना में यह लागत लगभग आधी है।
चंद्रयान-2 एक लैंड रोवर और प्रोव से सुसज्जित होगा और चंद्रमा की सतह का निरीक्षण कर आंकड़े भेजेगा जिनका उपयोग चंद्रमा की मिट्टी का विश्लेषण करने के लिये किया जाएगा।
'चंद्रयान 2' का ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर लगभग पूरी तरह भारत में ही डिजाइन किए गए और बनाए गए हैं, और वह 2.4 टन वजन वाले ऑर्बिटर को ले जाने के लिए अपने सबसे ताकतवर रॉकेट लॉन्चर का इस्तेमाल करेगा। ऑर्बिटर की मिशन लाइफ लगभग एक साल है।
यान में 1.4 टन का लैंडर 'विक्रम' होगा, जो 27-किलोग्राम के रोवर 'प्रज्ञान' को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर दो क्रेटरों के बीच ऊंची सतह पर उतारेगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) प्रमुख के. सिवन ने कहा, "विक्रम का 15 मिनट का अंतिम तौर पर उतरना सबसे ज्यादा डराने वाले पल होंगे, क्योंकि हमने कभी भी इतने जटिल मिशन पर काम नहीं किया है..."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक मानव को अंतरिक्ष में भेजने की बात कही है। अधिकतर विशेषज्ञों का कहना है कि इस मिशन से मिलने वाला जियो-स्ट्रैटेजिक फायदा ज्यादा नहीं है, लेकिन भारत का कम खर्च वाला यह मॉडल कमर्शियल उपग्रहों और ऑरबिटिंग डील हासिल कर पाएगा।
ISRO के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन ने कहा, "जो मूल सवाल हमें खुद से पूछना चाहिए, वह यह नहीं है कि क्या भारत को इस तरह के महत्वाकांक्षी मिशन हाथ में लेने चाहिए, बल्कि सवाल यह है कि क्या भारत इसे नजरअंदाज करना अफोर्ड कर सकता है..." उन्होंने कहा कि भारत का लक्ष्य अंतरिक्ष के क्षेत्र में लीडर के रूप में सामने आना होना चाहिए।
चंद्रयान-1 से कितना अलग है चंद्रयान-2
चंद्रयान-2, चंद्रयान-1 की अपेक्षा काफी बड़ी परियोजना है। इसमें चंद्रमा पर उतरने वाला एक लैंडर भी जाएगा जो रोवर की तरह सतह पर काम करेगा।
दोनों में महत्वपूर्ण अंतर यह है कि चंद्रयान-1 चांद के ऊपर सिर्फ ऑर्बिट करता था लेकिन चंद्रयान-2 में एक पार्ट चांद पर लैंड करेगा। उसके बाद एक रिमोट कार की तरह चांद में इधर उधर घूमेगा।
चंद्रयान-1 के समान ही चंद्रयान-2 भी चंद्रमा से 100 किलोमीटर दूर रहकर उसकी परिक्रमा करेगा। लैंडर कुछ समय बाद मुख्य यान से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर धीरे से उतरेगा और सब कुछ ठीक रहने पर उसमें रखा रोवर बाहर निकलकर लैंडर के आस-पास घूमता हुआ तस्वीरें लेगा।
लैंडर चांद की धरती पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा जिसके बाद रोवर निकलकर चांद के सतह पर कई प्रयोगों को अंजाम देगा।
इसके अलावा वह चंद्रमा की जमीनी बनावट के नमूने लेकर अलग-अलग उपकरणों की सहायता से उसकी जांच-परख करेगा।
चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण जीएसएलवी मार्क-2 की जगह जीएसएलवी मार्क-3 से होगा। इस दिशा में इसरो ने एक और महत्वपूर्ण पड़ाव पार कर लिया है।
चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण जीएसएलवी मार्क-3 से किया जाएगा, जो क्रायोजेनिक इंजन से संचालित होगा।

मेवन मिशन से तुलना

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जो भी कम खर्च के बारे में सोचते हैं, उन्हें धरती पर उड़ने वाले लो-कॉस्ट एयरलाइनों के विमानों में मिल पाने वाली सुविधाओं को याद रखना होगा। नासा के पूर्व शीर्ष रिसर्चर स्कॉट हुब्बार्ड, जो अब स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं, ने भारत के मंगल मिशन की तुलना अमेरिकी मेवन मिशन से की है।

स्कॉट हुब्बार्ड के मुताबिक, दोनों ही 2013 में लॉन्च किए गए, मेवन की लागत 10 गुणा ज्यादा होने का अनुमान है, लेकिन भारत के मंगलयान को सिर्फ एक साल काम कर पाने के लिए डिजाइन किया गया, और अमेरिकी मिशन को दो साल तक काम करना था। कीमत में बहुत ज्यादा अंतर है। मंगलयान कुल 15 किलो तक वजन ले जा सकता था, जबकि मेवन ज्यादा अत्याधुनिक उपकरणों के साथ 65 किलो तक का वजन ले जाने में सक्षम था।

1972 के बाद कोई चांद पर क्यों नहीं गया

21 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर कदम रखकर इतिहास रच दिया था। इसके बाद पांच और अमेरिकी अभियान चांद पर भेजे गए थे। साल 1972 में चांद पर पहुंचने वाले यूजीन सेरनन आखिरी अंतरिक्ष यात्री थे और उनके बाद अब तक कोई भी इंसान चांद पर नहीं गया है। अब सवाल उठता है कि अमेरिका या किसी और देश ने करीब आधी सदी तक चांद पर किसी अंतरीक्षयात्री को क्यों नहीं भेजा?

चांद पर पहुंचने की योजना

सरकारी और प्राइवेट तौर पर चांद पर पहुंचने की कोशिशें पहले भी हुई हैं, जिसमें ना सिर्फ चांद पर जाने की घोषणा की गई बल्कि चांद पर इंसानी बस्ती बनाने जैसी महत्वकांशी योजनाएं भी पेश की गईं थीं। ये योजनाएं कम खर्च वाली तकनीक और स्पेसक्राफ्ट के निर्माण पर आधारित हैं। रूस ने 2031 तक चांद पर पहुंचने की योजना बनाई है जबकि चीन की योजना 2018 में पहुंचने की थी।

चांद पर इंसान को लेकर एक पक्ष यह भी

जब पहली बार चांद पर इंसानों (नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन) को भेजा गया था तब से ही विवादों को जन्म देने वालों ने इस मिशन पर भी सवालिया निशान लगाए थे। चांद पर उतरने के लिए रूस ने 23 सितंबर 1958 से 9 अगस्त 1976 तक 33 मिशन भेजे। इनमें से 26 असफल रहे। वहीं, अमेरिका ने 17 अगस्त 1958 से 14 दिसंबर 1972 तक 31 मिशन भेजे थे। इनमें से 17 असफल थे। रूस ऑर्बिटर, लैंडर और इंपैक्टर की तैयारी कर रहा था। वहीं, अमेरिका ने चांद पर इंसानों को पहुंचा दिया। चांद पर अमेरिका ने 1969 से 1972 के बीच चार साल में 6 मानव मिशन भेजे। कुल 24 अंतरिक्ष यात्री चांद तक पहुंचे, लेकिन 12 ही चांद की सतह पर उतर पाए। तीन ने दो-दो बार चांद की यात्रा की।

अफवाह और हकीकत के बीच एक मिशन

आर्मस्ट्रांग ने चांद पर 20 जुलाई, 1969 को पहला कदम रखा, जो पूरी दुनिया जानती है। दोनों अतंरिक्ष यात्रियों ने चांद पर अमेरिका का राष्ट्र ध्वज भी फहराया। लेकिन इन पर हमेशा सवाल उठते हैं कि जब चांद पर हवा नहीं है तो कैसे झंडा फरहाया जा सकता है? कुछ लोगों के आरोप हैं कि नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन चांद पर गए ही नहीं। कहा गया कि इस पूरे घटनाक्रम को स्टूडियो में शूट किया गया है। यह भी कहा गया कि इस मिशन को अमेरिका ने रूस को स्पेस रिसर्च के मामले में हराने के लिए रचा था।

तो सच क्या है?

नासा ने जून, 1977 को एक फैक्ट शीट जारी की थी। इसमें उन्होंने ऐसे तथ्य बताए थे, जो साबित कर सकें कि “अपोलो 11’ मिशन फर्जी नहीं था। उन्होंने चांद से लाए ऐसे पदार्थ भी सामने रखे, जिन्हें धरती पर पैदा नहीं किया जा सकता। उसका कहना था कि ज्यादातर ऑपरेशन लैंडिंग के दौरान चांद से हजार फीट की ऊंचाई से किए गए थे। वहां कुछ विशेष परिस्थितियां बनाई गई थी।


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