अयोध्या : सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने माना वहां हिंदू करते थे पूजा

By: Dilip Kumar
9/4/2019 10:43:43 PM
नई दिल्ली

मुस्लिम पक्ष ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया कि वहां हिंदू पूजा करते थे। मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कहा कि वह निर्मोही अखाड़ा के सेवा पूजा के अधिकार का विरोध नहीं करते वह उनके सेवादार होने के दावे को स्वीकार करते हैं। जैसे ही धवन ने ये दलील दी पीठ के न्यायाधीशों ने धवन पर सवालों की झड़ी लगा दी। कोर्ट ने कहा कि अगर आप निर्मोही का सेवा पूजा का दावा स्वीकार कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप ये मान रहे हैं कि वहां मस्जिद के साथ मंदिर था।

अखाड़ा को सेवापूजा का अधिकार

सुनवाई की शुरुआत मे ही जब धवन निर्मोही अखाड़ा की दावेदारी के बाद थोड़े घिरे तो उन्होंने कहा कि निर्मोही अखाड़ा बाहर चबूतरे पर पूजा करता था। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने धवन से कहा आप अखाड़ा को सेवापूजा का अधिकार मान रहे है और यह कह रहे हैं कि पूजा बाहरी अहाते में होती थी वहां मूर्ति थी।

जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि अखाड़ा मंदिर का सेवादार था। धवन ने कहा कि बाहरी अहाते में राम चबूतरा पर मूर्ति थी जिसकी पूजा अखाड़ा करता था और 22-23 दिसंबर 1949 की रात वो मूर्ति अंदर रखी गईं। लेकिन पीठ ने मुस्लिमों के निर्मोही अखाड़ा के सेवापूजा के अधिकार को स्वीकार किये जाने पर सवाल जारी रखे।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आपने अपने मुकदमें में दो मांगे की हैं एक तो उसे मस्जिद घोषित किया जाए दूसरे दिए गए नक्शे एबीसीडी पूरे क्षेत्र पर मालिकाना हक दिलाया जाए आपकी दूसरी मांग में पूरा क्षेत्र शामिल है, लेकिन अगर आप निर्मोही अखाड़ा का सेवापूजा का अधिकार स्वीकार कर रहे हैं तो, आप वहां का एक हिस्सा उन्हें दे रहे हैं। पूरी जगह पर अकेला आपका दावा नहीं रह जाता।

धवन ने जवाब दिया कि निर्मोही सिर्फ सेवापूजा का अधिकार मांग रहे हैं वह मालिकाना हक नहीं मांग रहे। वे सुविधा के अधिकार यानी ईजमेंट राइट के तहत वहां पूजा करते थे, लेकिन मस्जिद पर मालिकाना हक वक्फ और मुस्लिम का ही था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि निर्मोही का तो ईजमेंट राइट हो सकता है, लेकिन वहां स्थापित देवता का अधिकार उससे बढ़कर है। देवता का अधिकार सेवादार के अधिकार से बढ़कर होता है।

धवन ने कहा कि मेरा कहना है कि देवता का सीमित अधिकार होगा। सेवादार मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता। तथ्यों को देखा जाए तो हिंदू रेलिंग के बाहर से पूजा करते थे। कुछ कह सकते है कि वह अंदर भी चले जाते थे लेकिन इससे उनका वहां अधिकार नहीं हो जाता। जस्टिस नजीर ने धवन से कहा कि वह मंदिर मस्जिद एक जगह होने पर भारत और अरब की मान्यताओं के बारे में बताएं। धवन ने कहा कि कई जगह ऐसा है मथुरा में भी है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आपका केस है कि आप दोनों की साथ उपस्थिति मान रहे हैं आप पूरे पर केवल अपना अधिकार मांग रहे। धवन ने कहा कि उनका केस लोगों द्वारा प्रयोग किये जाने के आधार पर वक्फ संपत्ति के दावे का है। धवन ने कहा हम एक साथ हो सकते हैं हमारी संपत्ति का और लोग उपयोग कर सकते हैं लेकिन वे उसके मालिक नहीं हो सकते।

मुस्लिमो को प्रताडि़त किये जाने और नमाज से रोकने की धवन की दलीलों पर जस्टिस एसए बोबडे ने सवाल किया कि क्या नमाज से रोके जाने पर किसी ने कोर्ट में शिकायत की और कोर्ट ने कोई कार्यवाही की। धवन ने कहा नहीं। कोई कोर्ट नहीं गया। उन्होंने कहा कि वह लोग सताए हुए थे और संबंधित अधिकारी के पास जाते थे जिसने की उच्च अधिकारी को लिखा था, लेकिन कोर्ट नहीं गए।

धवन ने निर्मोही अखाड़ा और अन्य हिंदू पक्षों की ओर से पेश किये गए कारनेगी, नेविल और मिलेट के गैजेटियरों का हवाला देते हुए कहा कि उनमें वहां मस्जिद होने की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि 1934 से नियमित वहां शुक्रवार की नमाज होती थी और ये बात अखाड़ा ने भी स्वीकार की है। इससे साबित होता है कि विवादित स्थल पर कोई मंदिर नहीं था वहां स्थित विवादित ढांचा मस्जिद थी जहां नियमित नमाज होती थी।


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