सोचिए, समझिए और सियासी मोहरा मत बनिए ...

By: Dilip Kumar
10/16/2020 5:21:27 PM
नई दिल्ली

अपने ही प्रदेश बिहार में जब राजनीतिक दल के समर्थकों, कार्यकर्ताओं, किसी दल विशेष के हिमायतियों के साथ - साथ आम मतदाताओं को जब आपस में भिड़ते हुए देखता हूँ, तो तरस आता है ये जानते-सोचते हुए कि ऐसे लोगों को कभी कुछ हासिल नहीं होता और ऐसे ही लोग हर बार ठगे जाते हैं। दल विशेष-नेता विशेष की तरफदारी में ऐसे लोग मनभेद कर लेते हैं। परस्पर संबंध खराब व खत्म कर लेते हैं, लेकिन सियासत की चौसर में ये महज भीड़, कठपुतली की भूमिका तक ही सीमित रहते हैं। ऐसे लोगों से मेरा अनुरोध भी है और मेरी सलाह भी कि सियासत के घेरे में कूदिए जरूर मगर सियासती फेरों को समझे बिना किसी से व्यक्तिगत वैमनस्यता मत कायम कर लीजिए।

ऐसा होने वाला नहीं कभी कि भाजपा जीतेगी तो राम-राज कायम हो जाएगा, ना ही बिहार या देश हिंदू राष्ट्र - प्रदेश घोषित हो जाएगा, ना ही घर-घर विखंडन का प्रतीक बनाया जा चुका भगवा ध्वज फहराएगा और ना देश इस्लामविहीन हो जाएगा, ना ही संक्रमित व संकुचित सोच वाले सवर्ण समाज का आधिपत्य कायम हो जाएगा, ना ही कोई फटेहाल 'अंबानी-अडानी' बन जाएगा, जो आज थोड़ा कम फटेहाल है वो और बड़ा फटेहाल जरूर बन जाएगा। ऐसा भी नहीं होगा कि राष्ट्रीय जनता दल सत्ता में आ जाएगा तो भगवान श्रीकृष्ण के यदुवंश के समान यदुवंशियों का एकछत्र राज कायम हो जाएगा, ना ही सामाजिक-आर्थिक न्याय की ऐसी बयार बहेगी जो एक झटके में हाशिए पर खड़ी अधिसंख्य आबादी को निर्णायक की भूमिका में स्थापित कर देगी, जो आज दबा है वो कल भी सियासत का मोहरा बने रह कर वोटबैंक बन दबे रहने को ही मजबूर होगा।

ऐसा भी कदापि संभव नहीं कि नीतीश कुमार का राज बरकरार रहेगा तो बिहार प्राचीन मगध के गौरवशाली इतिहास को प्राप्त कर लेगा, ना ही समग्र विकास का प्रायोजित 'कोहराम' सच्चे मायनों में समावेशी विकास में तब्दील हो जाएगा। इसकी भी कोई गारंटी नहीं होगी कि दुबारा मुजफ्फरपुर महापाप की पुनरावृत्ति नहीं होगी, ना जातिगत भेद - पक्षपात से निकल कर वर्तमान नालंदा को प्राचीन नालंदा का वैभव हासिल हो जाएगा । ऐसा भी नहीं होगा कि जनता के पैसों से बना राजकीय कोष फिर कभी सृजन जैसी सेंधमारी का शिकार नहीं होगा...

सार यही है कि सियासती नशे के ओवरडोज से बचिए, एक हद तक राजनीतिक 'रौ' व 'भाव' में जरूर रहिए, मगर चेतना-शून्य बन, ठगी का शिकार बन सियासी ठगों के इशारे पर नाचते हुए अपना व्यक्तिगत, सामाजिक सरोकार संबंध खंडित कतई मत करिए ...

अरे भाई ..सियासत है , कभी भी कुछ भी होने की संभावना सदैव बनी रहती है और ऐसी किसी भी संभावना में हमारी - आपकी सहमति कभी ली भी नहीं जाती, महाराष्ट्र जैसी असहज स्थिति भी बनती है जिसे मजबूरन स्वीकारना भी पड़ता है। अत: सियासत के खेल का मोहरा बन अपने संबंध, अपने सामाजिक समीकरण मत बिगाडि़ए और मोहरा नहीं सजग व समभाव वाला मतदाता बन सबों के साथ सामंजस्य कायम रखने की कोशिश करिए ...

 

(दो टूक- पंकज मिश्रा)


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