कांग्रेस व कम्युनिस्ट बाज आएं, भोले किसानों को गुमराह न करें : सीएम मनोहर लाल

By: Dilip Kumar
1/10/2021 9:06:58 PM
नई दिल्ली

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने करनाल के कैमला गांव में किसान-संवाद कार्यक्रम के दौरान हुए उपद्रव की कड़ी आलोचना की है। मुख्यमंत्री ने उपद्रव और हुड़दंग के लिए कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी और भाकियू अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है। मनोहर लाल ने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र की मर्यादा यही है कि हर कोई अपनी बात को कहे। हमें अपनी बात कहने से रोकने की कोशिश स्वस्थ लोकतंत्र की हत्या से कम नहीं है।

तीन कृषि सुधार कानूनों को रद करने की जिद पर अड़े लोगों को समझाने के लिए भाजपा ने प्रदेश भर में किसान-संवाद कार्यक्रमों की शुरुआत की है। पहला आयोजन दक्षिण हरियाणा के नारनौल में हो चुका है। दूसरा आयोजन रविवार को उत्तर हरियाणा के कैमला में आयोजित होना था, लेकिन मुख्यमंत्री मनोहर लाल के हेलीकाप्टर के लैंड होने से पहले ही वहां हुड़दंग मच गया। इसके बाद चंडीगढ़ पहुंचे मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने मीडिया के सामने अपनी बात रखी।


किसानों को बदनाम कर रहे कांग्रेसी और कम्युनिस्ट

मुख्यमंत्री ने कहा कि कांग्रेस व कम्युनिस्ट पार्टी के उकसावे पर किसानों का नाम लेकर जो लोग बार्डर पर जमे हुए हैं, वह लगातार अपनी बात कह रहे हैं। हम जब अपनी बात कहने लगे तो कांग्रेस व कम्युनिस्टों के साथ गुरनाम सिंह चढूनी सरीखे लोगों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने भोले-भाले किसानों को बदनाम करने की साजिश रच दी। यह न तो स्वस्थ लोकतंत्र में उचित है और न ही मर्यादा ऐसा करने के लिए कहती है। 

जानबूझकर परेशानी खड़ी कर रहे कांग्रेस व कम्युनिस्ट विचारधारा के लोग

मनोहर लाल ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार तीनों कृषि कानून किसी सूरत में वापस नहीं लेगी। हम किसानों से कह रहे हैं कि वह कम से कम एक साल के लिए इन कानूनों को अपनाकर देखें। कानूनों में हमेशा बदलाव और संशोधन होते हैं। यदि उन्हें एक साल में लगेगा कि कानून ठीक नहीं हैं तो मैं स्वयं किसानों के साथ इनमें संशोधन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने जाऊंगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के साथ होने वाली बातचीत में अधिकतर लोग कांग्रेस और कम्युनिस्ट विचारधारा के होते हैं। वह बातचीत करते हैं। आखिर में कहते हैं कि पंचायत का निर्णय सिर मत्थे, लेकिन तीनों कानून वापस लो। उन्हें समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन राजनीति के चलते वह जानबूझकर समझने को तैयार नहीं होते।


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