क्या मेट्रो मैन श्रीधरन को भाजपा में आना चाहिए था?

By: Dilip Kumar
3/1/2021 6:18:42 PM
नई दिल्ली

यह बड़े विस्मय की बात है कि ईo श्रीधरन ने बीती 21 फरवरी को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। 88 बरस को पार कर चुके श्रीधरन ने न केवल भाजपा में आगमन किया है बल्कि यह भी ऐलान कर दिया है कि वे चुनाव भी लड़ेंगे। केरल बीजेपी अध्यक्ष केo सुरेंद्रम के मुताबिक श्रीधरन आधिकारिक तौर पर बीजेपी के साथ राज्य में 21 फरवरी से शुरू होने वाली विजय यात्रा के दौरान जुड़ेंगे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और बीजेपी के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ राज्य के विधानसभा चुनावों से पहले होने जा रही इस यात्रा को हरी झंडी दिखाएंगे। ये यात्रा कारसगोड से शुरू होगी और कई विधानसभा से होते हुए मार्च के पहले हफ्ते में तिरुवनंतपुरम में खत्म होगी। यह निर्णय अप्रैल-मई के बीच होने वाले केरल में विधानसभा चुनाव से पहले आया है।

ईo श्रीधरन को कोलकाता मेट्रो से लेकर दिल्ली मेट्रो तक में अहम योगदान के लिए जाना जाता है। वह “मेट्रो मैन” के नाम से मशहूर हैं। वह 2001 में पद्म श्री और 2008 में पद्म विभूषण अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं। काफी लोगों को उनके राजनीति में आगमन से बड़ी हैरानी है कि आखिर ऐसा निर्णय उनहोने क्योंकर लिया! पार्टी ने उन्हें केरल प्रदेश का भाजपा प्रमुख भी बना दिया है क्योंकि वहाँ की 140 सदस्यों की असेंबली में भाजपा की मात्र एक ही सीट है, जबकि भारतीय प्रधानमंत्री ने इच्छा प्रकट की है कि केरल में भाजपा की कम से कम 70 सीटें आएं।

लेखक ने जब उनसे बात करने के लिए फोन किया तो उनके सचिव से बात हुई जिन्हों ने बताया कि श्रीधरन का सोचना है कि केरल की सरकार लोगों की सेवा करने मे और उनकी आपेक्षा पर पूर उतारने में सामर्थ्य नहीं जुटा पा रही जिसके कारण समस्याएं बढ़ती ही चली जा रही हैं। इसके अतिरिक्त उनका मानना है कि नरेंद्र मोदी एक निस्स्वार्थ व दूरदर्शी प्रधानमंत्री हैं और देश उनकी अगुआई में तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। जब एनएस पूह आ कि व 2014 एव ही मोदजी के पसंद्कर्थैंतोपले भजाएँ क्यों नहीं आए तो बोले, “भाजपा को लेकर पहले से मेरी सहानुभूति रही है। जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भी मैं उनका प्रशंसक रहा, लेकिन अपने प्रोफेशनल करियर में व्यस्त रहने के चलते राजनीति के बारे में नहीं सोच सका। मोदी के करिश्माई नेतृत्व में देश आगे बढ़ रहा है। इसलिए मैं भाजपा में शामिल हो रहा हूं, ताकि राष्ट्र निर्माण में कुछ योगदान दे सकूं।”

 

जब उनसे पूछा गया कि उनहों ने भाजपा को ही क्यों चुना जबकि हर राजनीतिक पार्टी में उन्हें पूर्ण मान-सम्मान के साथ लिया जाता तो उनका कहना था कि आज भाजपा को गलत तरीके से पेश किया जाता है। इसे प्रो हिंदू पार्टी बताया जाता है, लेकिन यह सही नहीं है। भाजपा राष्ट्रवाद, समृद्धि और सभी वर्गों के लोगों की भलाई के लिए काम करती है। भाजपा ही एक मात्र पार्टी है जो देश और केरल के लोगों के लिए काम कर सकती है। उनकी कोशिश होगी कि वह इसकी सही छवि को लोगों के सामने पेश कर सकें। अपने मुख्यमंत्री का चेहरा होने पर उनहोंने कहा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका क्या होगी, ये फैसला पार्टी को लेना है। उन्हें जो भी जिम्मेदारी दी जाएगी, उसे पूरा करने की कोशिश करेंगे। राज्यपाल पद को लेकर उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि यह एक संवैधानिक पद है। इस पद पर रहते हुए राज्य के लोगों के लिए काम करना मुश्किल है। चूंकि वह अपने राज्य केरल की सेवा करना चाहते हैं, यही सोचकर वह केंद्र की राजनीति में नहीं आए।

यह सब तो ठीक है मगर जिस ऊँची क़द काठी की उनकी काबलियत है उसको देखते हुए यह बहुत छोटी सी बात है उनके लिए। श्रीधरन ने बहुत कम समय के भीतर दिल्ली मेट्रो के निर्माण का कार्य किसी सपने की तरह बेहद कुशलता और श्रेष्ठता के साथ पूरा कर दिखाया है। देश के अन्य कई शहरों में भी मेट्रो सेवा शुरु करने की तैयारी है, जिसमें श्रीधरन की मेधा, योजना और कार्यप्रणाली ही मुख्य निर्धारक कारक होंगे। केरलवासी श्रीधरन की कार्यशैली की सबसे बड़ी खासियत है एक निश्चित योजना के तहत निर्धारित समय सीमा के भीतर काम को पूरा कर दिखाना। समय के बिलकुल पाबंद श्रीधरन की इसी कार्यशैली ने भारत में सार्वजनिक परिवहन को चेहरा ही बदल दिया। उन्होंने इंजीनियरिंग प्रमुख रहते हुए एक ऐसे ईमानदार शख़्स की पहचान बनाई जो समय पर काम करके देता है। ऐसी भी ख़बरें रही हैं कि उन्होंने अपनी इस छवि के ज़रिए प्रधानमंत्री कार्यालय से अच्छा तालमेल बैठाया.

तकनीक के विद्वान के रूप में उन्होंने छह दशकों तक अपनी सेवाएं दीं और अपने काम के ज़रिए उन्होंने राजधानी दिल्ली में बैठे शक्तिशाली राजनीतिक वर्ग को संदेश दिया कि उन्हें अपने कार्यक्षेत्र में किसी का हस्तक्षेप मंज़ूर नहीं है। उनके लिए काम सबसे महत्वपूर्ण था। दिल्ली मेट्रो रेल परियोजना के दौरान वे अपने मातहत कर्मचारियों के लिए एक डेडलाइन तय कर दिया करते थे और उन्हें बार-बार उसकी याद दिलाते थे। उन्होंने हर काम में शुरुआत से आख़िर तक अहम भूमिका निभाई है और संक्षेप में कहें तो लखनऊ से लेकर कोच्चि तक देश के कई शहरों में मेट्रो रेल नेटवर्क का खाका उन्होंने ही तैयार किया है। 1963 में रामेश्वरम और तमिलनाडु को आपस में जोड़ने वाला पम्बन पुल टूट गया था। रेलवे ने उसके पुननिर्माण के लिए छह मास का लक्ष्य तय किया, लेकिन उस क्षेत्र के इंजार्च ने यह अवधि तीन महीने कर दी और जिम्मेदारी श्रीधरन को सौंपी गई। श्रीधरन ने मात्र 45 दिनों के भीतर काम करके दिखा दिया। भारत की पहली सर्वाधिक आधुनिक रेलवे सेवा कोंकण रेलवे के पीछे ईश्रीधरन का प्रखर मस्तिष्क, योजना और कार्यप्रणाली रही है। भारत की पहली मेट्रो सेवा कोलकाता मेट्रो की योजना भी उन्हीं की देन है।

 

आधुनिकता के पहियों पर भारत को चलाने के लिए सबकी उम्मीदें श्रीधरन पर टिकी है। इसलिए तो सरकार ने उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए पद्श्री और पद्म भूषण सम्मानों से सम्मानित किया। टाइम पत्रिका ने तो उन्हें 2003 में एशिया का हीरो बना दिया। बहुत से देशी व विदेशी विशेषग्यों का मानना है कि भारत की मेट्रो आँय देशों के मेट्रो सिस्टम से कई मामलों में बहुत बेहतर है सिवाए जापान कि तीव्र गति की मेट्रो रेल से! पहली बात तो यह कि भारत जैसे घनी आबादी व तिजारत वाले देश में तो मेट्रो की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी मगर श्रीधरन ने यह अजूबा कर दिखाया! भारतीय मेट्रो तो बस जादू का कमाल लगती है। ऐसा प्रतीत होता है की जैसे वह भी पूर्व मुखी चुनाव आयुक्त, टीoएनo सेशन और पूर्व मुख्य न्यायाधीश, रंजन गोगोई के रास्ते पर चल पड़े। जिस प्रकार से इन दोनों ने राजनीति को अपनाया वैसे ही श्रीधरन ने भी राजनीति में कदम रखा है। वह राजनीतिक कार्यप्रणाली में सुधार लाना चाहते हैं और मोडीजी के सही मानों में भक्त हैं, जिसके कारण उन्होने ऐसा किया है। एक रिपोर्टर से उनहों ने यह भी कहा कि यदि मोडीजी जैसा प्रधानमंत्री भारत में कुछ वर्ष पूर्व आ जाता तो शायद हमारी मेट्रो जापान से भी आगे पहुँच जाती और पूर्ण भारत के सभी छोटे-बड़े कस्बों तक इसकी रिसाई हो चुकी होती।

वैसे आम तौर पर राजनीति का क्षेत्र पचड़ेबाजी और कीचड़बाजी की जकड़न में फंसा रहता है और श्रीधरन जैसे ईमानदार व्यक्ति को यहाँ घुटन महसूस हो सकती है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी न सफाई से कह दिया है, “न खाऊँगा न खाने दूँगा,” जिस पर वह अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर श्रीधरन जैसे साफ़-सुथरी छवि वाले कुछ लोग भी अर्थात मात्र 10-20 प्रतिशत लोग भी राजनीति में आ गए तो देश का बड़ा उद्धार हो सकता है। फिर भी मोडीजी ने पिछले 6 वर्ष से काफी कंट्रोल किया है और जैसे घोटाले पिछली सरकारों में देखने को मिलते थे, उसपर भी अंकुश लगेगा। मगर कहीं ऐसा न हो जैसा कि सेशन के साथ हुआ था कि उनकी क़दर क़द्र नहीं के गए और वह वैमनस्य की स्थिति में चले गए थे।

 

वास्तव में पार्टी राजनीति में बहुत सी गिरहें होती हैं और यदि श्रीधरन उनके चक्रव्यूह में फंस गए तो शायद उन्हें अपने निर्णय पर पछताना पड़े। राजनीति हर एक के बस का खेल नहीं और आम तौर से शातिर लोग ही इसमें कामयाब हो पाते हैं क्योंकि यह टेढ़ी खीर होती है। वैसे भी भारतिए राजनीति में अब जो हिसाब बन चुका है, उसमें 75 वर्ष के पश्चात राजनेता को साइड लिने पर बैठा दिया जाता है जैसा कि विभिन्न पार्टियों के बहुत से नेताओं के संबंध में देखने में आया है। हालांकि उनके बच्चे उनके राजनीति में कदम रखने से खुश नहीं हैं मगर श्रीधरण का माना है कि वह अपने जीवन का निर्णय स्वयं करना पसंद करते हैं। उनसे जब कहा गया कि लाल कृष्ण आडवाणी की मिसाल उनके सामने हैं और फिर भी उनहों ने ऐसा कदम उठाया तो बोले आडवाणीजी का वह दिल से आदर करते हैं और यह कि हर व्यक्ति की अपनी अलग बात होती है। लेखक और उनके चाहने वाले यही कामना करते हैं कि उनका राजनीतिक जीवन भी उनके “मेट्रो मैन” जैसे समय की भांति सफल हो!

फिरोज बख़्त अहमद

कुलाधिपति: मानू, हैदराबाद

 


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