फ़िरोज़ बख़्त अहमद : मोहन भगवत का मुस्लिमों से लगातार संवाद

By: Dilip Kumar
9/25/2021 9:42:59 AM

पिछले कुछ समय से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे आरएसएस में मुस्लिमों को लेकर काफी मंथन हुआ है और चल रहा है। इस प्रकार का आमने-सामने संवाद होना शुरू हो गया है, जो कि एक तसल्लीबख्श पहलू है। वरिष्ठ संघ नेता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक, मोहन भगवत, हाल फिलहाल ही नहीं बल्कि शुरू से ही मुस्लिमों के संबंध में शिष्टाचार और शालीनता के मधुर भाव से ही बयान देते चले आए हैं। उन्होंने एक बार विज्ञान भवन में भी कहा था कि बिना मुसलमानों के भारत की कल्पना भी नहीं के जा सकती। इसका अर्थ यही है कि मुस्लिम संप्रदाय ने देश और समाज को बहुत कुछ प्रदान किया है और जिन गलतफ़हमियों के कारण मुस्लिमों और संघ के बीच दीवारें खींच गई हैं, उन्हें अब गिरना चाहिए ताकि एक स्वस्थ, संस्कारी और राष्ट्रवादी भारत का पुनर्निर्माण हो जिससे भारत विश्वगुरु बन सकता है।

 

अभी हाल ही में अपने जन्मदिवस पर उन्होंने बयान दिया कि मुस्लिमों से वे संवाद करना चाहते हैं। कुछ समय पूर्व गाजियाबाद में भी उन्होंने एक मुस्लिम बुद्धिजीवी डाo ख्वाजा इफ़्तिखार अहमद की पुस्तक, “वैचारिक समन्वय: एक व्वाहारिक पहल” के विमोचन कार्यक्रम में भी कहा था कि संघ मुस्लिमों से अच्छे रिश्ते बना कर रखना चाहता है जिसके लिए संवाद और दोनों ओर के दिल साफ होने की अत्यंत आवश्यकता है।

 

आरएसएस प्रमुख ने ‘राष्ट्र प्रथम एवं राष्ट्र सर्वोच्च' विषयक संगोष्ठी में कहा, ‘‘हिंदू शब्द हमारी मातृभूमि, पूर्वज और संस्कृति की समृद्ध धरोहर का पर्यायवाची है तथा इस संदर्भ में हमारे लिए हर भारतीय हिंदू है, चाहे उसका धार्मिक, भाषायी व नस्लीय अभिविन्यास कुछ भी हो.'' यह अन्य विचारों का अपमान नहीं है। हमें भारतीय प्रभुत्व हासिल करने के बारे में सोचना होगा, न कि मुस्लिम प्रभुत्व के बारे में। उन्होंने कहा कि हिंदुओं और मुसलमानों के पुरखे एक ही थे। भागवत ने कहा कि भारतीय संस्कृति विविध विचारों को समायोजित करती है और अन्य धर्मों का सम्मान करती है। यह अन्य विचारों का अपमान नहीं है। हमें भारतीय प्रभुत्व हासिल करने के बारे में सोचना होगा, न कि मुस्लिम प्रभुत्व के बारे में।

 

बक़ौल भगवत, हिंदू शब्द मातृभूमि, पूर्वजों और भारतीय संस्कृति के बराबर था। यह अन्य विचारों का अपमान नहीं है। हमें भारतीय प्रभुत्व हासिल करने के बारे में सोचना होगा, न कि किसी संप्रदाय विशेष प्रभुत्व के बारे में। उन्होंने कहा कि इस्लाम आक्रमणकारियों के साथ भारत आया। यह इतिहास है और इसे ऐसे ही बताया जाना चाहिए। समझदार मुस्लिम नेताओं को अनावश्यक मुद्दों का विरोध करना चाहिए और कट्टरपंथियों के खिलाफ मजबूती से खड़ा होना चाहिए। जितनी जल्दी हम ऐसा करेंगे, हमारे समाज को उतना ही कम नुकसान होगा। मुस्लिमों क भी चाहिए कि अपने उन नेताओं के मकड़जाल से बाहर आ जाएं जिनहोने उनपर ढक्कन कस रखा है और उनको वोट बैंक बनाकर उन्हें भाजपा और संघ से डराते चले आए हैं कि संघ उनकी जान का दुश्मन है। छदम धर्मनिरपेक्ष और पाखंडी नेताओं की सरकारों को चलाने वाले ये नेता देश को बंटवारे और आपसी द्वेश की चौखट पर ल खड़ा करना चाहते हैं। ।

 

 


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