विश्व मजदूर दिवस पर विशेष आलेख : हां मैं मजदूर हूं, ना मजबूर हूं

By: Dilip Kumar
5/2/2022 5:21:19 PM

"हां मैं मजदूर हूं, ना मजबूर हूं सर्दी और धूप में तुझको दिख जाऊंगा। हर भवन और इमारत का हिस्सा बन जाऊंगा। खून के चिन्ह हर जगह मिल जाएंगे, जो लिखा न गया वह हिस्सा हूं मैं। हां मैं मजदूर हूं ना मजबूर हूं। " जो देश मजदूर, किसान, गरीब या श्रमिक की सहायता नहीं कर सकते हैं वह देश कभी भी तरक्की /प्रगति नहीं कर सकते। मजदूर का अर्थ गरीब से नहीं होता बल्कि मजदूर समाज और देश के विकास व और सफलता का एक हिस्सा या इकाई होता है। भारत में पहली बार एक मई 1923 को किसान पार्टी आफ हिंदुस्तान ने श्रमिक दिवस मनाने की शुरुआत की थी। इसके लिए आजादी से पहले लाल झंडे का उपयोग किया गया था। सिंगार बेलू ने पहली बार भारत सरकार के सामने यह बात कही थी कि एक मई को मजदूर दिवस घोषित किया जाये व इस दिन नेशनल होली डे भी रखा जाय। अमेरिका पहली बार 1850 में मजदूरों ने आठ घंटे काम करने की मांग की। पहली बार मई दिवस 1मई 1886 को मनाने की घोषणा की थी। अल्बर्ट पारसंस ने अपनी पत्नी व दो बच्चों के साथ शिकागो की गलियों में 80000 लोगों के  जुलूस की अगुवाई की।

श्रमिक दिवस ऐसा दिन है जिस पर मानव समाज श्रमिकों /मजदूरों गरीबों की सच्ची भावना को समझ कर उनको सम्मान देने का काम करते हैं। श्रमिक व मजदूर एकजुटता दिखाते हुए अपने अधिकारों को प्राप्त करने, अपने ऊपर होने वाले अत्याचार या जुर्म से छुटकारा पाने के लिए एवं अपने प्रति समाज की तुच्छ भावना के विरुद्ध रैली या जुलूस निकालकर एकजुटता का प्रदर्शन करते हैं। सभी प्रकार के मजदूरों को सम्मान देने और उनके अधिकारों के संरक्षण हेतु मजदूर दिवस व श्रमिक दिवस मनाया जाता है। मजदूर दिवस को अंतरराष्ट्रीय कर्मचारी दिवस या मई दिवस भी कहा जाता है। पूरी दुनिया में इसे 1 मई को मनाते हैं। भारत में इसे श्रमिक दिवस भी कहते हैं वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस लाखों-करोड़ों मजदूरों के परिश्रम दृढ़ निश्चय व निष्ठा का दिवस है।

एक मजदूर देश के निर्माण और समाज के उत्थान में बहुमूल्य भूमिका निभाता है और उसका राष्ट्र के विकास या प्रगति में अहम योगदान होता है। किसी भी समाज, देश, संस्था या उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की बहुमूल्य भूमिका होती है। मजदूरों के बिना किसी भी समाज, देश या औद्योगिक इकाइयों के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। श्रमिकों का समाज में विशेष महत्व है किंतु आज भी पूरी दुनिया के देशों में मजदूरों या श्रमिकों के साथ अन्याय व उनका शोषण होता है।

भारत में आज मजदूरों के 8 घंटे काम करने का कानून है। जिसका पालन सिर्फ सरकारी कार्यालय ही करते हैं। निजी क्षेत्र में अधिकतर मजदूरों से आज भी 12 घंटे तक काम करवाया जाता है। उनका नाना प्रकार से शोषण किया जाता है। सरकार या संविधान मजदूरों के हकों के मामले में बौनाू ही साबित हुआ है। अन्यथा मजदूरों की हालत दयनीय न होती। आज आवश्यकता है मजदूर- श्रमिक लोगों के ऊपर होने वाले शोषण अन्याय या मानसिक प्रताड़ना के विरुद्ध दृढ़ता पूर्वक आवाज उठाने की तथा सरकार इस दिशा में प्रभावी कदम उठाए और मजदूरों के हितों का ख्याल रखते हैं। आज भी देश में कम मजदूरी पर काम कराया जाता है मुख्यतः औरतों के साथ यह एक प्रकार का शोषण है।

कृपया कंपनियों में मजदूरों से काम पूरा लिया जाता है किंतु उन्हें बहुत कम मजदूरी दी जाती है जिससे मजबूर न तो पौष्टिक भोजन बच्चों को दे पाता है ना बच्चों को बेहतर शिक्षा ही दिलवा पाता है। घर चलाना मुश्किल हो जाता है। आज भी भारत में बंधुआ और बाल मजदूरी कराई जाती है जो कि एक प्रकार से मानवता का उपहास ही है। श्रमिक की मजदूरी कम होगी तो वह अपने परिवार का भरण पोषण कैसे कर सकेंगे, उसके बच्चे बेहतर शिक्षा कैसे प्राप्त कर सकते हैं। बंधुआ मजदूरी संविधान के अनुच्छेद 23 का उल्लंघन है। समाज व सरकार को मिलकर सामूहिक रूप से श्रमिक हितों उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए मिलकर प्रयास करने होंगे। मजदूरी में लैंगिक भेदभाव भी चरम सीमा पर रहता है। पुरुष के समान महिला मजदूरों को वेतन नहीं दिया जाता किंतु काम उनकी क्षमता से अधिक कराया जाता है जीकि महिला श्रमिकों के साथ अन्याय ही कहा जा सकता है।

अतः श्रमिक या मजदूर दिवस पर मानव समाज और सरकारों को मिलकर संकल्प लेना चाहिए कि वह कभी भी श्रमिकों का शोषण, उनके साथ भेदभाव, अन्याय या लैंगिक भेदभाव नहीं करेंगे। समान कार्य समान वेतन पर ध्यान देंगे तथा सरकार उनके हितों का संरक्षण करेगी उनके बच्चों को निशुल्क बेहतर शिक्षा प्रदान करेगी। भेदभाव करने वाली इकाइयों की मान्यता सरकार समाप्त करे बाल मजदूरी पर रोक संवैधानिक प्रावधान के तहत लगाकर शक्ति से उसका पालन किया जाए। बच्चों या बाल मजदूरों से होटलों, दुकानों या कारखानों में कार्य कराया जाता है जो कि संविधान के विरुद्ध है भेदभाव करने वाली इकाइयों की या बाल मजदूरी कराने वाली भाइयों की मान्यता को समाप्त कर दिया जाए या उनके लाइसेंसों को निरस्त कर दिया जाए। मजदूरों के प्रति शोषण मुक्त माहौल तैयार करना समाज और सरकार की जिम्मेदारी बनती है। सामूहिक प्रयासों से ही श्रमिकों की दशा में सुधार किया जा सकता है। तब ही समाज और देश का सर्वांगीण विकास या तरक्की हो सकती है। समाज और सरकार को ऐसी नीति तैयार करनी चाहिए जिसके माध्यम से बाल श्रम को रोका जा सके बंधुआ मजदूरी पर रोक लगा दी जाय। मजदूरों की संतानों को निशुल्क शिक्षा प्राप्त कराई जा सके मानव सरकार और समाज को संयुक्त प्रयास करने होंगे तभी मजदूरों का न केवल हक मिलेगा मानसिक रूप से भी स्वतंत्र होंगे और आर्थिक रूप से मजबूत होंगे। समाज और देश भी विकास या तरक्की की राह पर चलने लगेगा।

लेखक :
सत्य प्रकाश
(प्राचार्य)
डॉक्टर बी आर अंबेडकर महाविद्यालय धनसारी अलीगढ़


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