फिरोज बख़्त अहमद : मुसलमान सलमान रूश्दी को बजाए हमले करने के तर्क व कानून से जवाब दें 

By: Dilip Kumar
8/20/2022 2:15:24 PM

कुछ दिवस पूर्व अमेरिका में विख्यात व मुस्लिम समाज में बदनाम ज़माना लेखक सलमान रूश्दी पर जान लेवा हमला हुआ, जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए। न्यूयॉर्क स्टेट पुलिस ने 24 वर्षीय हमलावर की पहचान कर ली है जो फेयरव्यू का रहने वाला है। उसका नाम हदी मतार बताया जा रहा है। हमले के पीछे की वजह अब भी सामने नहीं आई है। यह हमला अमेरिका के न्यूयॉर्क में उस समय हुआ जब विवादित किताब, “द सैटेनिक वर्सेज” के लेखक और बुकर पुरस्कार विजेता सलमान रूश्दी का उस वक्त स्टेज पर परिचय करवाया जा रहा था। तब एक आदमी मंच पर दौड़ते हुए आया और उसने छुरा घोंप दिया. 1980 के दशक से ही सलमान रुश्दी को आतंकियों की तरफ से जान से मारने की धमकी मिलती रही है। इस प्रकार के धमकियां देने से इस्लाम बदनाम होता है और किसी भी मुस्लिम को ऐसी बातों से बचना चाहिए।

 

अमेरिकन मुस्लिम हादी मतार के इस हमले से मुस्लिम समाज और भी बदनाम हुआ है। हालांकि चंद सर फिरे पागलों के कारण सदा से ही मुस्लिम तबका बदनाम हुआ है। कुछ समय पूर्व राजस्थान और औरंगाबाद में दो हिंदुओं के सर तन जुदा करने वाले मुस्लिमों के कारण पूर्ण विश्व में इस्लाम और मुसलमानों की साख पर बट्टा लगा है। सलमान रूश्दी ने 1988 में एक नॉवेल “द सेटेनिक वर्सेज”' लिखा था, जो इस्लाम पर आधारित है। इसे आज तक की सबसे विवादित किताबों में से एक माना जाता है और दुनिया के अधिकतर देशों में इस पर प्रतिबंध लग चुका है, जिनमें भारत ने इस पर सबसे पहले प्रतिबंध लगाया था। इस नॉवेल को लिखने के लिए वे लगातार इस्लामी आतंकवाद के निशाने पर रहे हैं।

 

इस में कोई दो राय नहीं यह एक घटिया सा उपन्यास है, जिसे शायद कोई पढ़ना भी पसंद न करे, मगर जिस प्रकार से इसके ऊपर झगड़े-फसाद होते चले आए हैं तो बहुत से देशों में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। यही बात लगभग 1989 में जब जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति दिवंगत मुशीरुलहसन ने मात्र इतना कहा कि सलमान रूश्दी की “द सैटेनिक वर्सेज” एक वाहियात पुस्तक है और इसको जलाने से अच्छा है कि इसपर ध्यान ही नहीं दिया जाए कही तो, उस समय इस मसले को लेकर काफी उठा-पटक हुई और मुशीरुलहसन को क्षमा याचना करनी पड़ी। इस प्रकार की बातों से यह पुस्तक मुस्लिम विरोधी घटकों में काफी लोकप्रिय हुई और इसकी खूब बिक्री भी हुई। इस प्रकार के विरोधों ने एक ज़ीरो को हीरो बना दिया। यही काम तसलीमा नसरीन की घटिया किताब के संबंध में हुआ कि उस पर हमले कर के, कालिख पोत के आदि बातों से उनकी किताब, “लज्जा” ने खूब नाम कमाया।

 

दो महत्त्वपूर्ण बातें यहां बताना आवश्यक हैं। पहली तो यह कि जब सबको पता है कि मुसलमान का मिज़ाज ऐसा है कि उसे बुरा कह लो, वह बर्दाश्त कारलेगा, उसके परिवार, माता-पिता को कोस लो, वह बर्दाश्त कर लेगा और यहाँ तक कि कुरान और अल्लाह तक के बारे में वह ऊटपटांग बर्दाश्त कर लेगा, मगर हज़रत मुहम्मद (सल्ललo) के बारे में कुछ भी भद्दी टिप्पणी की गई या आपत्तिजनक कहा जाता है तो वह मारने, मरने और जान लेने या देने पर उतारू होता है। हालांकि इस्लामी उसूलों, कानून या इंसानियत के यह खिलाफ है, मगर मुस्लिम ऐसे ही है। आप देखिए कि रूश्दी के विरुद्ध फतवा दिए कितना समय हो गया, मगर फिर भी अमेरिका में उन पर हमला हुआ। हालांकि इस्लाम सूफियों के कारण फैला क्योंकि उनके इन्सानियत के पैगाम के अलावा उनका चाल, चरित्र, चेहरा आदि ऐसा होता था कि सारे दिन तो वे रोज़ा रखते थे और सारी रात इबादत करते थे और जग रोज़ा खोलने का समय आता था तो वे आस-पास से आई बढ़िया और मलाईदार खाद्द्य सामग्री तो गरीबों व अपने अनुयायियों में बाँट देते और खुद सूखी रोटी और पानी से रोज़ा इफ्तार करते! यही आचार हज़रत मुहम्मद (सल्ललo) का था जिनके विरुद्ध कभी रूश्दी, तो कभी तसलीमा नसरीन तो कभी डेनिश कारटूनिस्ट चार्ली हेबदो आपत्तिजनक सामाग्री छपते नज़र आते हैं।

 

हम सबको सभी धर्मों और उनसे जुड़ी बड़ी हस्तियों के साथ आदर के साथ पेश आना चाहिए। लेखक कभी भी शब्द “भगवान राम” न कह कर, “मर्यादा पुरुषोत्तम लॉर्ड राम” कहता है जैसे मात्र “कृष्णजी” के “योगीरज लॉर्ड कृष्ण” कहता है। हम सबको ऐसे ही इस प्रकार की धार्मिक हस्तियों का मान-सम्मान करना चाहिए और अगर मान-अम्मान नहीं कर सकते तो कम से कम भद्दी टिप्पणी तो न करें और विशेष रूप से भारत जैसे देश में जहां धर्म बहुत ही सेंसिटिव माना जाता है। एक दूसरे की धार्मिक आस्थाओं व भावनाओं का हमें मन से आदर करना चाहिए।

 

दूसरी बात यह कि विश्व में हर जगह अभिव्यक्ति की आज़ादी है और ईसाई धर्म या हज़रत ईसा के खिलाफ न जाने कितने लोगों ने क्या-क्या लिख डाला, मगर ईसाईयों ने उसे नज़रअंदाज़ किया और अब लोगों ने भी लिखना छोड़ दिया कि ये लोग तो चिढ़ते ही नहीं हैं, तो क्या फायेदा लिखने का। ऐसी बातों के नज़र अंदाज़ करने से दस आफतें टल जाती हैं। मगर तीसरी एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी धर्म के पूज्य व्यक्ति के बारे में ऐसी भद्दी टिप्पणी क्यों की जाए कि पूरा तबका ही भड़क और भटक जाए और कानून को अपने हाथ में ले ले। फिर ऊपर से कुछ सांप्रदायिक प्रवृत्ति के कुछ नेता ऐसे होते हैं कि जो अपने भड़काऊ बयानों से युवा वर्ग के अंदर चाबी भर देते हैं और फिर वही होता है जो नूपुर शर्मा कांड के समय पहले प्रयागराज, फिर कानपुर और अन्य स्थानों पर हुआ कि कई लोगों का सर तन से जुदा कर दिया गया। कुछ इसी प्रकार का तसलीमा के साथ हुआ था हैदराबाद में, जब उनके ऊपर कालिख फेंकी गई थी और बोलने नहीं दिया गया था और जब मुस्लिम उनकी किताब को थर्ड रेट मानते हैं तो उसे पब्लिसिटी देने की आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि इस प्रकार की हरकतों से इन लोगों का नाम होता है।

 

इस्लाम किसी पर हमले अथवा उसकी जान लेने की हरगिज़ वकालत नहीं करता क्योंकि सर तन से जुदा इस्लाम का हिस्सा ही नहीं है। जान लेना इंसान का नहीं अल्लाह का काम है। जो मुस्लिम समझते हैं कि सलमान रूश्दी पर हमला करके या उनकी जान लेकर वे इस्लाम की बड़ी खिदमत कर रहे हैं, वे बहुत बड़ी गलत फहमी में हैं, क्योंकि जिस अल्लाह को राज़ी और खुश करने के लिए वे ऐसा कर रहे हैं, यह उनके ऊपर उल्टा पड़ेगा और अल्लाह उन्हें ही उल्टे सज़ा देगा जिसका कारण है उनका ग़ैर इस्लामी काम में मुलव्विस होना। जिस प्रकार से 1989 में एरान के राष्ट्रपति, रूहुल्लाह खुमैनी ने सलमान रूश्दी के सर पर बड़ा इनाम रखा था, वह भी ग़ैर इस्लामी था। इस प्रकार के ग़ैर इस्लामी, ग़ैर कानूनी व ग़ैर इंसानी कुकृत्य कुछ मुस्लिम कर रहे हैं, उससे इस्लाम और मुस्लिमों की साख पर बट्टा लग रहा है। यही कारण है कि अब तक इस्लाम विरोधी तत्वों ने लगभग 60,000 किताबें इस्लाम के कट्टरपन के खिलाफ लिख डाली हैं, जबकि इस्लाम वास्तव में शांति और रहम का धर्म है।

वास्तव में जिन 24 आयतों के बारे में अक्सर कहा जाता है कि इनमें लिखा है कि जो इस्लाम धर्म इख्तियार नहीं करे उसका वध कर दो आदि “वौर वर्सेस” अर्थात युद्ध के समय की आयतें हैं, जिंका रोज़्मर्राह जिंदगी से कुछ लेना-देना नहीं है, मगर कुछ भटके हुए मुस्लिम उनपर अमल करके ऐसी घटनाओं को अमल में लाते हैं, जैसा कि सलमान रूश्दी के साथ हुआ या राजस्थान के कन्हैया लाल, औरंगआबाद के उमेश या कर्नाटक के नागराजु के साथ किया गया, यह इस्लामी उन्माद से अधिक, इस्लाम की नासमझी के कारण किया गया। यदि इस प्रकार के हमला करने वाले सही ढंग से कुरान व 6 हदीसें पढ़ें तो हरगिज़ भी ऐसा न करें। जय हिंद! भारत माता की जय! (लेखक पूर्व कुलाधिपति, वरिष्ठ स्तंभकार और मौलाना अबुल कलाम आजाद के पौत्र हैं)

 

फ़िरोज़ बख्त अहमद, पूर्व कुलाधिपति,

मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्विद्यालय, हैदराबाद,

पता: ए-२०२ (प्रथम तल) अदीबा मार्किट एंड अपार्टमेंट्स , रहमानी मस्जिद,

मेन रोड, जाकिर नगर, नई दिल्ली ११० ०२५

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