फ़िरोज़ बख़्त अहमद : ट्रिपल तलाक, तलाक़-ए-हसन के नाम से आज भी जारी है!

By: Dilip Kumar
8/30/2022 6:56:59 PM

मुस्लिम समाज में ट्रिपल तलाक़ की जब बहुतायत हो गई और मुस्लिम महिलाओं को घर के बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा तो सरकार ने इसको समाप्त कर दिया, जिससे एक ही बैठक में में बार वीभत्स शब्द, “तलाक़” कह कर मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी से रिश्ता खत्म कर लिया करता था। आस इसकी जगह तलाक़-ए-हसन या तलाक़-ए-हुस्ना ने ले ली है। दोनों में केवल इनता मामूली सा अंतर भर है कि जहां तलाक़-ए-बिदत या ट्रिपल तलाक़, एक ही बार में दी जाती थी, अब तीन मास की हो गई है और खूब धड़ल्ले से दी जा रही है। इस पर विरोध न करने का यह अर्थ हर्गिज नहीं है कि यह ट्रिपल तलाक़ से अच्छी है। वास्तव में तलाक़ चाहे जिस प्रकार से भी दी जाए, अल्लाह के नज़दीक सभी नपसंदीदा चीजों में एक है।

 एक बार हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के पास एक साहबी (अनुयायी) गए और बोले कि वे अपनी पत्नी को तलाक देना चाहते हैं। जब हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने पूछा की क्या समस्या है, तो उन्होंने बताना शुरू किया। हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने अंत में उंनसे पूछा कि क्या उनकी पत्नी में कोई अच्छी बात भी है, तो उन्होंने वह बात बताई। इस पर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने उन्हें समझाया कि देखो अगर तुम्हारी पत्नी में 99 बुराईयां हों और केवल एक भी अच्छाई हो तो अपनी पत्नी को तलाक देने के बजाए उससे निभाओ और पूर्ण जीवन उसी के साथ व्यतीत करो क्योंकि अल्लाह के नजदीक तलाक़ सबसे बुरी और नापसंदीदा चीजों में से एक है और साहबा ने उस बात को माना। 

आपको याद होगा कि कुछ वर्ष पूर्व मोदी सरकार ने एक ही झटके में तीन तलाक या तलाक़-ए-बिदत पर पाबंदी लगा दी थी और इसको कानून में परिवर्तित कर दिया था कि कोई भी व्यक्ति जो इसका उल्लंघन करेगा उसे हवालात की हवा खानी पड़ेगी। इसका कारण यह था कि काफी मुस्लिम मर्दों ने धड़ल्ले से ट्रिपल तलाक़ देनी शुरू करदी थी। भोजन में यदि नमक ज़्यादा हो जाए, पत्नी साढ़ी पहन ले या मार्केट अथवा मॉल आदि चली जाए आदि जैसी बातों पर मुस्लिम मर्द, अपनी पत्नियों को तलाक़ देने लगे थे और उच्चतम न्यायालय में काफी सारी याचिकाएं तलाक़ पीड़ित महिलाओं की थीं। जिस पर सरकार ने उचित कदम उठाया। । 

मगर अब समस्या यह है कि तलाक़-ए-हसन या तलाक़-ए-हूसना कुछ नहीं बल्कि ट्रिपल तलाक़ की ही एक शक्ल है, और फ़र्क़ केवल इतना है कि ट्रिपल तलाक़ में केवल चंद सेकंड में मुस्लिम मर्द अपनी औरत से सारे रिश्ते समाप्त कर देता है। फिर इस्लाम के ज्ञानी-ध्यानी कहते हैं कि तलाक़ का यह तरीका ग़लत है और इसकी जगह तलाक़-ए-हसन या तलाक़-ए-हुस्ना की पद्दति को अपनाना चाहिए। हालांकि यह भी कोई अच्छी चीज़ नहीं है, क्योंकि अल्लाह को तो किसी भी प्रकार की तलाक़ पसंद नहीं, चाहे वह तीन तलाक़ हो, या तलाक़-ए-हसन/ तलाक़-ए-हूसना । इस में तलाक़ को तीन महीने में पूरा किया जाता है। तलाक़ देने वाला मर्द, पहले महीने में तलाक़ देता है और फिर दूसरे में और आखिर में तीसरे महीने में। इस पद्दति के इस लिए अच्छा माना जाता है कि तीन मास में शायद पति-पत्नी में बात बन जाए और वे फिर एक दूसरे के साथ रहने लगें मगर आम तौर से ऐसा देखने मैं नहीं आता। ऐसा कहा जाता है कि जब तलाक़ दी जाती है तो आसमान दहल जाता है।

 आजकल उच्चतम न्यायालय में भी कई मुक़दमे तलाक़-ए-हसन के विरुद्ध चल रहे हैं जिन में मुख्य हैं, बेनज़ीर हिना और नसरीन निशा कादिर शेख। इस से पूर्व जब ट्रिपल तलाक़ के केस उच्चतम न्यायालय में चल रहे थे तो शायरा बानो और आफ़रीन की याचिकाओं के चलते बाद में सरकार ने तलाक़-ए-बिदत पर रोक लगाई थी। हाल ही में बेनज़ीर हिना के केस में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश संजय किशन कौल और ए एस ओका ने। बेनज़ीर की कोर्ट में खड़े होकर उनकी व्यथा सुनी कि किस प्रकार से तीन महीने में उन्हें उनके शौहर ने उनका कोई क़सूर न होते हुए भी और सात महीने का एक बेटा होने के बाद भी घर से धक्के दे कर निकाल दिया और बड़े सटीक अंदाज़ में कहा कि उनके पति को अगली सुनवाई के लिए 11 अक्तूबर को हाजिर होना पड़ेगा।

 हिना ने बताया कि उनका पति एक वकील है और आज भी वह चाहती हैं कि वह उनके साथ रहे और उनकी व अपने बेटे की ज़िम्मेदारी संभाले। उन्होंने अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय की प्रशंसा करते हुए कहा की अगर वे न होते तो वह इस न्यायालय तक इंसाफ की गुहार लगाने नहीं पहुँच सकती थीं। ऐसी लाखों महिलाएं हैं जिंका कोई नहीं और जो छोटे कस्बों आदि में तलाक-ए-हसन की क़यामत झेल रही हैं। जब पूछा गया कि मेहेर दिया गया या नहीं तो उन्होंने बताया, “सवाल मेहर का नहीं है, मेरी और मेरे बेटे की जिंदगी का है। कोई मर्द औरत को इस्तेमाल करके छोड़ दे, यह ठीक नहीं है। अगर कानून इसकी इजाजत देता है तो मैं ऐसे कानून से सहमत नहीं हूं। यह सही है कि मेरे पास खुला का विकल्प है, लेकिन मुझे खुला नहीं, मेरा हक चाहिए....” यह कहना है तलाक-ए-हसन की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली गाजियाबाद के विजय नगर क्षेत्र की बेनजीर हिना का।

 एक न्यूज चैनल में पत्रकार हिना फिलहाल दिल्ली में अपने मायके में रह रही हैं। पति यूसुफ नकी पेशे से वकील हैं और दिल्ली के वजीराबाद में रहते हैं। हिना का कहना है कि वह तलाक नहीं, शौहर के साथ रहना चाहती हैं। उन्होंने फोन पर हुई बातचीत में कहा, युसुफ ने 19 अप्रैल को तलाक का पहला खत भेजा। इस पर यूसुफ के हस्ताक्षर तक नहीं थे। यह किसी दूसरे के नाम से भेजा गया था। तलाक देने के लिए यूसुफ की तरफ से पहले पत्र व पहली तलाक़ में उन पर 30 आरोप लगाए गए हैं। दूसरे खत यानि दूसरी तलाक़ में 36 आरोप लिखे हैं। तीसरा तलाक़ पत्र 23 जून को मिला, इसमें 40 आरोप हैं। पहला खत मिलने के बाद ही हिना ने दो मई को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी।

 बेनजीर ने बताया कि 23 जून को तलाक का तीसरा खत भेजने के बाद यूसुफ ने फोन पे के माध्यम से उनके खाते में 15 हजार रुपये भेजे। उसने एक मेसेज भी भेजा जिसमें लिखा था, “यह तुम्हारे इद्दत की कीमत है। थोड़ी देर बाद उसने 2000 रुपये और भेजे, इसे बेटे का खर्चा बताया।“ बेनजीर कहती हैं, कि क्या उनकी जिंदगी की कीमत 15000 रुपये है? उनकी और यूसुफ की शादी को दो साल हो गए हैं। बेटा अली आज 11 माह का है। उसकी देखभाल के लिए 11 साल की बच्ची को रखा था। इसके बाद आठ दिसंबर 2021 को उन्हें और बेटे अली को घर से निकाल दिया था। 

बेनजीर का कहना है कि उन पर केस वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है। इस्लाम से बाहर करने और फतवा जारी कराने की धमकी दी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद से उनके पास फोन आने शुरू हो गए थे। उन्होंने गाजियाबाद के विजय नगर थाने में पांच अप्रैल को पति यूसुफ नकी, के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और धमकी देने की धाराओं में केस दर्ज कराया था। किसी भी तरह की तलाक़ इंसान और विशेष रूप से मुस्लिम महिला को पूर्ण रूप से तबाह-ओ-बर्बाद कर देती है और इससे बचना चाहिए, क्योंकि यह अल्लाह और हज़रत मुहम्मद (सल्लo) को बिलकुल पसंद नहीं।


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