क्या पाकिस्तान के फिर दो टुकड़े होंगे ?

By: Dilip Kumar
11/11/2022 10:07:29 AM
फ़िरोज़ बख़्तअहमद

आजकल पाकिस्तान जिस दौर से गुज़र रहा है, लेखक की उम्र के लोगों को खूब अंदाज़ा होगा कि यह वही दौर है, जिससे वह 1971 में गुज़रा था और उसका “पूर्वी पाकिस्तान’ कभाग भाषा और कल्चर को लेकर उसके हाथ से निकाल गया था। आक यह देश दो राहे पर डिगा हुआ है और कभी भी पाक अधिकृत कश्मीर और बलोचिस्तान इसके हाथ से निकाल सकता है। ऐसा भि कहा जा रहा है कि दिसंबर में पाकिस्तान में कुछ बड़ा होने वाला है। इस देश के हालात बड़े दयनीय हैं। आधा पंजाब पानी में डूबा हुआ है और ग़रीब पनाहगुज़ीनों के पास न छट है न खाने के लिए कुछ और संयुक्त राष्ट्र संघ व अन्य देशों से जो मदद आए थी, उसे भी बजाए बदहाल और सैलाब से सताए लोगों के पास भेजने के बजाए मोटे-मोटे राजनेताओं द्वारा हड़प कर लिया गया है। फिर भी चूंकि जनता आज के भ्रस्त नेताओं के बजाए इमरान के साथ है, उन्होंने इस्लामाबाद तक अपनी पद यात्रा चला रखी है और थान लिया है कि अगर फौज उनकी हत्या भी करा देती है तो भी वह रुकने वाले नहीं। उन्हें तो बस चुनाव की प्रतेक्षा है। आज जहां पाकिस्तान के राजनेता और सरकारी अफ़सरान देश को दीमक की तरह चाट रहे हैं, वहीं एक आम पाकिस्तानी ग़रीबी, बेरोजगारी और करप्शन की मार से बेहाल और बदहाल है। 

जिस प्रकार से जिन्नाह के कट्टरपन के कारण पाकिस्तान इस्लाम के नाम में बना, उसके चलते उसको चाहिए था कि वह भारत को अपना बड़ा भाई समझ कर चलता और उद्योग, व्यापार, खेल-कूद, साहित्यिक गतिविधियों आदि में भाग लाते, मगर ऐसा न हूस और दो-फाड़ होते ही पाकिस्तान सरकार ने भारत को अपना दुश्मन नंबर एक तस्लीम कर लिया, जो निहायत ही अहमाकाना बात थी और जिसका खमियाजा आज भी पाकिस्तानी जनता भुगत रही है और नेता हलवे-मांडे थूर रहे हैं। जहां आज भी भारत का रवैया पाकिस्तान को लेकर दोस्ताना है, जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने गद्दीनशीन होने पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्र, नवाज़ शरीफ़ को बुला कर किया, फिर उनकी माताश्री को तोहफा भिजवा कर किया, पाकिस्तान की ओर से आज तक ऐसा रवैया देखने को नहीं मिला। हाँ, इमरान के संबंध में यह अवश्य कहा जाता है कि एक क्रिकेट खिलाड़ी होने के नाते उनके भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों जैसे, महेंद्रअमरनाथ, नवजोत सिंह सिद्धू, बिशन सिंह बेदी, सुनील गावस्कर, गुंडप्पा विश्वनाथ आदि से बड़े अछे संबंध हैं और भारत को वह बतौर एक दोस्त की तरह देखते हैं। वैसे पाकिस्तान ने तो हमेशा ही भारत को तिलांजलि ही दी। जब भारत का विभाजन हुआ तो ब्रिटेन के “दा गार्जियन” अखबार का एक रिपोर्टर ने भारत के दिग्गज स्वतन्त्रता सेनानी व भारत रत्न, प्रथम शिक्षामंत्री, मौलाना आज़ाद से 11 दिसंबर, 1947 को पूछा कि वह तो पाकिस्तान के बनने के सख्त खिलाफ थे मगर जबकि पाकिस्तान बन गया तो उनका क्या विचार है। इस पर आज़ाद ने कहा, “मैं पाकिस्तान के बनने के बिल्कुल खिलाफ था मगर जब पाकिस्तान बन ही गया तो मैं चाहूँगा कि यहां अमन रहे और यह देश तरक़्क़ी की राह पर चले। हां, यह मैं नहीं कह सकता कि पाकिस्तान कब तक टूटने से बचा रहेगा। पूर्वी पाकिस्तान के टूटने की ओर मौलाना आज़ाद ने पहले से ही इशारा कर दिया था। 

वास्तव में जो देश धर्म प्रधान होता है, या जिसकी बागडोर का सिरा सेना के हाथ में होता है, उसके हालात कभी भी ठीक नहीं हो सकते। हमने अफ़ग़ानिस्तान में देखा, पाकिस्तान में तो 1947 के बाद से देख ही रहे हैं और आजकल ईरान में भी हिजाब की आग लगी हुई है। सीरिया भी ताबा-ओ-बर्बाद हो चुका है। इस्लाम, जो कि सबसे आधुनिक धर्म है, उसे चंद कट्टरपंथियों व इस्लामी देशों ने बदनाम कर दिया है। आज पाकिस्तानी फौज भी दो भागों में बंट चुकी है। यदि सेना द्वारा संचालित सरकार ने इमरान को और भी दबाया तो कोई अजब नहीं कि पाकिस्तान का फिर से विभाजन हो जाए क्योंकि अधिकतर पंजाब और पख्तूनख्वा उनके साथ है। 

लाहौर में पले-बढ़े और पठान होने के नाते इमरान पाकिस्तान में हरदिलअजीज हैं और अब तक भ्रष्टाचार का कोई मामला उनके ऊपर नहीं है, सिवाए इसके कि कुछ महंगे गिफ़्ट जो उन्हें दिये गए थे उनकी उन्होंने रेजिसट्रेशन नहीं कराई। शाहबाज़ जोकि सत्ता का सुख भोगने पर तत्पर हैं, चाहते है कि किसी न किसी प्रकार से इमरान खान के ऊपर आरोप लगवाकर उनको जेल में दलवा दिया जाए या आजीवन कारावास में डलवा दिया जाए। उधर इमरान जनरल फैज हमीद को आईएसआई प्रमुख के तौर पर लाना चाहते थे तो वहीं जनरल जावेद बाजवा, अपने बंदे, जनरल नदीम अंजुम को नियुक्त करना चाहते थे। पाकिस्तान की सबसे बड़ी कमी यह है कि यहन आईएसआई और फौज का सियासत पर दबदबा रहता है। फिर जहां इमरान ने भारतीय प्रधानमंत्री ने नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी कि उन्होंने पुतिन का साथ देकर अक्लमंदी का सुबूत दिया, जनरल बाजवा को यह बात हज़म नहीं हो पाई क्योंकि वह अमेरिका के पिट्ठू हैं और वहाँ के दौरे करते रहते हैं। वही बाजवा जो इमरान को गद्दी पर लाने के जिम्मेदार थे, आज उनके खून के प्यासे हो रहे हैं। कौन जानता है कि वही मार्शल लॉं लगा कर स्वयं गद्दी हथिया लें क्योंकि पाकिस्तान में ऐसा होता चल आया है। एयर वाईस मार्शल अय्यूब खान, जनरल याहया खान, जनरल जिया-उल-हक़ और जनरल परवेज़ मुशर्रफ इस बात का सुबूत हैं।  

जहां तक पाकिस्तान का संबंध है, वहां आजकल तोड़-फोड़-जोड़ की सरकार चल रही है और इमरान खान की चुनाव द्वारा चुनी और जमी हुई सरकार को अदालत के ज़रिए उखाड़ फेंका गाया है। इमरान ने जो लगभग चार वर्ष सरकार चलाई, बेशक वह उनके लिए कांटों का ताज था मगर भारत के साथ कम-ओ-बेश्तर संबंध अछे हे राहे सिवाय सरहद पर गोलाबारी के। आज की सरकार जिन लोगों द्वारा चलाई जा रही है, उनकी जनता में वह पजद नहीं है जो इमरान खान की है। इमरान कहाँ अपने देश को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भांति प्रगति के मार्ग पर डालकर एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था बनाना चाहते हैं, वहीं, शाहबाज़ शरीफ़ सरकार और उससे पूर्व ज़रदारी और नवाज़ शरीफ़ सरकारों ने पहले से ही लुटे-पिटे पाकिस्तान को दोनों हाथों से लूटा है और आज भी लूट रहे हैं। ज़रदारी सरकार में जब वहाँ की विदेशमंत्री हीना रब्बानी ताबन भारत तशरीफ लाई थीं तो यहाँ के अखबारों में आपसी संबंध सुधारने के बजाए मीडिया में बात चल रही थी कि उनकी घड़ी तीस लाख की है, उनका पर्स बीस लाख का है, उनके सैंडल पाँच लाख के हैं आदि। इमरान ने राजनीति में आने का फैसला केवल इस लिए लिया कि वह पाकिस्तान को समृद्ध बनाना चाहते थे न कि लूटना, जो कि वहाँ की जनता समझ चुकी है।

वास्तव में शाहबाज़ शरीफ़ इस लिए भी इमरान के विरुद्ध हैं कि उन्होंने पनामा फ़ाईल्स भ्रष्टाचार के चलते उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के विरुद्ध केस किया, जेल भिजवाया और देश निकाला भी दिया। शायद इसका बदला हे उनसे लोया जा रहा हे और यह भी कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी सेना और आईएसआई व मौजूदा सरकार ने उनके ऊपर कातिलाना हमला भी करवाया, जिसमें वह बच गए। सही मानों में इमरान का कहना है कि भ्रष्टाचार में लिप्त चाहे वह ज़रदारी सरकार हो, या शरीफ़ की ग़ैर शरीफ़ सरकार हो, उसे सत्ता में रहने का कोई हक़ नहीं, जो कि सोलह आने सच है। पाकिस्तान भारत से सीखे कि सरकार यहाँ किसी की भी हो, फौज कभी भी सियासत में दाखल नहीं देती। भारत माता की जय!

(लेखक पूर्व कुलाधिपति और भारत रत्न मौलाना आज़ाद के वंशज हैं)


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