खड़ाऊं सरकार का उदाहरण रामायण के बाद तमिलनाडु में

By: Dilip Kumar
10/22/2016 2:29:22 PM

 

"अन्नाद्रमुक के किसी भी वरिष्ठ या कनिष्ठ नेता में इतना साहस नहीं है कि वह पार्टी या सरकार के भविष्य पर कोई टिप्पणी कर सके। जहाँ अन्य बड़ी पार्टियों में ऐसी स्थिति के दौरान मुख्यमंत्री पद का दायित्व किसी अन्य को आसानी से सौंप दिया जाता है वहीं कुछ क्षेत्रीय दलों के नेता मुश्किल समय आने पर मुख्यमंत्री पद अपने ही किसी परिजन को सौंप देते हैं लेकिन जयललिता का अपना कोई परिवार ही       नहीं है।"

- नीरज कुमार दुबे

तमिलनाडु में एक बार फिर खड़ाऊं सरकार आ गयी है। इससे पहले राज्य में दो बार तब खड़ाऊं सरकार रही जब अदालती फैसलों के चलते जे. जयललिता को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। दोनों बार उन्होंने ओ. पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया जो खड़ाऊं सरकार का संचालन करते रहे और जैसे ही जयललिता अदालतों से बरी हुईं पन्नीरसेल्वम ने सत्ता अन्नाद्रमुक प्रमुख को सौंप दी। इस बार की खड़ाऊं व्यवस्था में अंतर यह है कि पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया है बल्कि उन्हें जयललिता के पास रहे विभागों का आवंटन कर दिया गया है और वह कैबिनेट बैठकों की अध्यक्षता करेंगे। राज्य के अपोलो अस्पताल से इसी तरह लगभग 22 साल पहले तब सरकार चली थी जब अक्तूबर 1994 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन बीमार पड़े थे। उन्होंने उस समय दो मंत्रियों को अपने विभाग आवंटित कर दिये थे।

राज्य में मुख्य विपक्षी द्रमुक सवाल उठा रही है कि चेतना की स्थिति में नहीं होने के बावजूद मुख्यमंत्री ने किस तरह राज्यपाल को अपने विभागों को पन्नीरसेल्वम को आवंटित करने की सलाह दी? दरअसल मुद्दा इसलिए गर्मा रहा है कि ना तो अन्नाद्रमुक और ना ही अपोलो अस्पताल मुख्यमंत्री की सेहत के बारे में सही जानकारी दे रहे हैं। जयललिता के ईलाज के लिए ब्रिटिश डॉक्टरों को बुलाया गया लेकिन बीमारी के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी। शुरू में आधिकारिक रूप से कहा गया था कि बुखार और डिहाईड्रेशन की शिकायत के चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन बाद में सिर्फ यही दोहराया गया कि उन पर ईलाज का असर हो रहा है जिससे उनकी बीमारी को लेकर तरह-तरह की बातें कही जाने लगीं।

एक बड़ी राजनीतिक शख्सियत के बीमार होने की स्थिति में उनसे मिलने पहुंच रहे केंद्र और राज्यों के आला नेता भी मुख्यमंत्री से मिल नहीं पा रहे हैं जिससे उनके स्वास्थ्य को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। उच्च न्यायालय ने भी वह याचिका खारिज कर दी है जिसमें मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने की माँग की गयी थी। राज्य की पुलिस ने मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य के बारे में अफवाह फैलाने वालों पर कार्रवाई शुरू कर दी है और इस संबंध में कुछ गिरफ्तारियाँ भी हुई हैं। जयललिता के खराब स्वास्थ्य से जुड़ी खबरें उनके पिछले कार्यकाल के दौरान भी आम थीं जब कहा जाता था कि वह मुख्यमंत्री कार्यालय जाने की बजाय अपने सरकारी आवास से ही सरकार चला रही हैं। 

पन्नीरसेल्वम कैबिनेट बैठकों की अध्यक्षता तो करेंगे लेकिन देखने वाली बात यह है कि क्या उन्हें नीतिगत निर्णयों का भी अधिकार होगा क्योंकि माना जाता है कि राज्य में प्रशासन जयललिता की करीबी पूर्व आईएएस शीला बालकृष्णन के हाथों में है। पार्टी में भी उनका प्रभाव काफी समय से देखने को मिल रहा है। दरअसल एक व्यक्ति पर ही केंद्रित पार्टी होने के कारण अन्नाद्रमुक में हर निर्णय जयललिता द्वारा ही किये जाते रहे हैं इसलिए उनके बीमार होने की स्थिति में पार्टी के समक्ष नेतृत्व का संकट खड़ा हुआ है। अन्नाद्रमुक के किसी भी वरिष्ठ या कनिष्ठ नेता में इतना साहस नहीं है कि वह पार्टी या सरकार के भविष्य पर कोई टिप्पणी कर सके। जहाँ अन्य बड़ी पार्टियों में ऐसी स्थिति के दौरान मुख्यमंत्री पद का दायित्व किसी अन्य को आसानी से सौंप दिया जाता है वहीं कुछ क्षेत्रीय दलों के नेता मुश्किल समय आने पर मुख्यमंत्री पद अपने ही किसी परिजन को सौंप देते हैं लेकिन जयललिता का अपना कोई परिवार ही नहीं है। उनका उत्तराधिकारी कौन होगा इस बारे में वह ही जानती हैं। 

तमिलनाडु से पहले रामायण में खड़ाऊं सरकार का प्रसंग सुनने को मिलता है जब भरत ने श्रीराम के वनवास से लौटने तक अयोध्या के सिंहासन पर भगवान के खड़ाऊं रखकर शासन चलाया। इसके अलावा भारतीय राजनीति में तमिलनाडु के अलावा कोई ऐसा उदाहरण नहीं देखने को मिलता जब अपने नेता के बीमार रहने के दौरान पद संभालने वाले व्यक्ति ने स्थिति ठीक होने पर पद अपने नेता को लौटा दिया हो। उलटे ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जब मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए किसी नेता को पद छोड़ना पड़ा हो और अस्थायी व्यवस्था के तहत जिसको कमान मिली उसने बाद में पद छोड़ने से इंकार कर दिया। तमिलनाडु में इस बीच हालांकि राजनीति में सकारात्मक बदलाव यह देखने को मिला कि एक दूसरे के धुर विरोधी करुणानिधि ने जयललिता का हाल जानने के लिए अपनी पत्नी को अस्पताल भेजा। यही नहीं उनके बेटे एमके स्टालिन और बेटी कनिमोझी के भी अस्पताल जाने की खबर है। राज्य में जगह-जगह जयललिता के स्वस्थ होने के लिए पूजन-हवन किये जा रहे हैं लेकिन यह दुखद रहा कि उनके एक समर्थक ने अपनी नेता के बीमार होने से दुखी होकर आत्महत्या कर ली। 

बहरहाल, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जल्द स्वस्थ हों ऐसी सभी की कामना है। लेकिन राज्य के उदाहरण से उन सभी क्षेत्रीय दलों को सीख लेनी चाहिए जो एक व्यक्ति पर केंद्रित पार्टी हैं। ऐसे दलों को पार्टी का कोई संसदीय बोर्ड या कोई निर्णायक इकाई गठित करनी चाहिए जो आपात स्थिति में पार्टी और सरकार के बारे में निर्णय ले सके। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के सभी राजनीतिक दलों को इतनी परिपक्वता तो दिखानी ही चाहिए।

 

 


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