कहीं भागादौड़ी तो कुछ को घर बैठे मिल रहा चुनावी टिकट

By: Dilip Kumar
10/22/2016 2:46:37 PM

"सियासी पिच पर टिकट के तमाम दावेदारों को एक ऐसे गॉड फादर की तलाश है जो उनको टिकट दिला सके। परंतु इससे इतर टिकट चाहने वालों का एक वर्ग ऐसा भी है जिनको टिकट मांगने के लिये कहीं भटकना नहीं पड़ता है, बल्कि टिकट उनके पास चलकर आता है। इस वर्ग में वह युवक−युवतियां आती हैं जिनके पिताश्री या परिवार का अन्य कोई सदस्य किसी राजनैतिक पार्टी में अच्छी पोजीशन में हैं।"

- अजय कुमार

 उत्तर प्रदेश में सत्ता के लिये संग्राम मचा हुआ है। टिकट के लिये मारामारी हो रही है। गली, मौहल्लों में ऐसे नेताओं के पोस्टरों−बैनरों की बाढ़ आ गई है जो विधान सभा चुनाव के लिये दावेदारी ठोंक रहे हैं। एक अदद टिकट के लिये लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सिफारिशों का लम्बा दौर चल रहा है। सियासी पिच पर टिकट के तमाम दावेदारों को एक ऐसे गॉड फादर की तलाश है जो उनको टिकट दिला सके। परंतु इससे इतर टिकट चाहने वालों का एक वर्ग ऐसा भी है जिनको टिकट मांगने के लिये कहीं भटकना नहीं पड़ता है, बल्कि टिकट उनके पास चलकर आता है। इस वर्ग में वह युवक−युवतियां आती हैं जिनके पिताश्री या परिवार का अन्य कोई सदस्य किसी राजनैतिक पार्टी में अच्छी पोजीशन में हैं। कहना गलत नहीं होगा कि पिता की सियासी हैसियत का फायदा उठाकर कई बेटे−बेटियां विधान सभा में पहुंच चुके हैं और यह सिलसिला आगे भी जारी है।

यह सियासी बेटे−बेटियां एसी कमरों से निकलकर सीधे माननीय बन जाते हैं। पार्टी के लिये झंडा उठाने और डंडा खाने के लिये हमेशा तैयार रहने वालों का हक सियासी बेटे−बेटियां पल भरा में छीन लेते हैं। भाजपा नेता कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, लालजी टंडन, मेनका गांधी हों या फिर कांग्रेस की शीला दीक्षित, हेमवती नंदन बहुगुणा अथवा गांधी−नेहरू परिवार सबने अपने बच्चों की सियासत चमकाने में अपने रसूख का पूरा इस्तेमाल किया। इसी तरह से क्षेत्रीय दलों में शुमार बसपा−सपा और राष्ट्रीय लोकदल भी परिवारवाद को बढ़ावा देने में पीछे नहीं है। बसपा में रामवीर उपाध्याय, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और जसमीर अंसरी का नाम इसी कड़ी में लिया जा सकता है। राष्ट्रीय लोकदल में तीन पीढ़ी से परिवारवाद चल रहा है। पहले चौधरी चरण सिंह, उसके बाद उनके पुत्र अजीत सिंह और अब अजीत के पुत्र जयंत सिंह इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं।

परिवारवाद को बढ़ावा देने में समाजवादी पार्टी सबसे आगे है। आजम खां, नरेश अग्रवाल, बलराम यादव, वकार शाह, विजय मिश्रा, रेवती रमण सिंह, सुरेद्र पटेल सब ने जब मौका मिला तो किसी और की जगह अपने परिवार को ही आगे किया। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के परिवार के तो एक−दो नहीं 20 सदस्य राजनीति में हैं। हाल ही में मुलायम ने अपनी छोटी बहू अपर्णा यादव को लखनऊ कैंट से टिकट देकर इस पंरपरा को आगे बढ़ाया है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी तमाम सियासी दलों में परिवारवाद का परचम लहराता मिलेगा। भाजपा के कई दिग्गज अपने बच्चों के लिये टिकट की जुगाड़ में हैं।

केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र के बेटे से लेकर राजनस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह का पोता तक विधानसभा चुनाव के टिकट की दौड़ में शामिल  है। कलराज अपने बेटे अमित को इलाहाबाद या लखनऊ में से किसी एक सीट पर चुनाव लड़ाना चाहते हैं। वहीं कल्याण सिंह का पोता और एटा के सांसद राजवीर सिंह राजू का बेटा संजीव सिंह एटा जिले की किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहता है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह के विधानसभा चुनाव में उतरने की चर्चा है। उनके लिए राजधानी की सुरक्षित सीट तलाश की जा रही है। भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया अपनी पत्नी के लिये गृह जनपद इटावा की किसी सीट से टिकट चाहते हैं। पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की पत्नी नीलम करवरिया इलाहाबाद, सांसद चौधरी बाबूलाल का बेटा आगरा से और पूर्व भाजपा अध्यक्ष ओम प्रकाश सिंह के पुत्र मिर्जापुर क्षेत्र से टिकट के दावेदार हैं। लखनऊ से सासंद रहे लालजी टंडन अपने दूसरे बेटे अमित टंडन को और सांसद जगदंबिका पाल अपने परिवार के किसी सदस्य को विधानसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी में हैं।

इसी प्रकार से हाल ही में बसपा छोड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य और पूर्व सांसद ब्रजेश पाठक की पत्नी के भी विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा है। बात कांग्रेस की कि जाये तो कांग्रेस में बेटे−बेटियों और परिवार के अन्य सदस्यों के मोह में फंसे नेताओं की कभी कमी नहीं रही है। रायबरेली और अमेठी के सांसद राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा भी कांग्रेस में कई नेता ऐसे हैं, जिन्होंने अपने परिवार को आगे बढ़ाया है। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी रीता बहुगुणा लखनऊ कैंट से विधायक हैं।

हेमवती के बेटे विजय बहुगुणा पहले कांग्रेस में थे जोकि अब भाजपा में चले गये हैं वह उत्तराखंड़ की राजनीति में खासा दखल रखते हैं। आठ बार विधायक रहे प्रमोद तिवारी जब राज्यसभा में गये तो अपनी बेटी अराधना मिश्र उर्फ मोना को यूपी में अपनी विरासत सौंप गये, यूपी में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनायी गयीं शीला दीक्षित के परिवार से उनके बेटे पवन दीक्षित केंद्र में मंत्री रहे चुके हैं। उनका एक और बेटा संदीप दीक्षित भी सियासत में है। बसपा सुप्रीमो मायावती दूसरे दलों पर तो परिवारवाद को लेकर खूब हमला बोलती हैं लेकिन उन्हें अपने यहां का परिवारवाद शायद नहीं दिखता है। बसपा के कद्दावर नेता रामवीर उपाध्याय के परिवार में उनके भाई और पत्नी दोनों सक्रिय राजनीति में हैं।

पिछली सरकार में रामवीर उपाध्याय मंत्री थे, भाई मुकुल उपाध्याय एमएलसी और पत्नी सीमा उपाध्याय सांसद। बसपा का मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के परिवार के तीन लोग राजनीति में किस्मत आजमा चुके हैं। नसीमुद्दीन के अलावा उनकी पत्नी हुस्ना राज्यसभा सांसद रह चुकी हैं जबकि बेटा अफजल लोकसभा का चुनाव लड़ चुका है। बीएसपी को छोड़कर भाजपा में आने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य के अलावा बेटा और बेटी दोनों ही राजनीति में हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में दोनों ने बसपा के टिकट से किस्मत आजमाई पर दोनों हार गये। परिवारवाद को अगर सबसे अधिक बढ़ावा किसी ने दिया है तो वह समाजवादी नेता हैं। चाहें बिहार के लालू यादव हों या फिर यूपी के मुलायम सिंह यादव। दोनों ने ही परिवारवाद की सभी सीमाएं पार कर दीं। मुलायम सिंह के परिवार के 20 सदस्यों का राजनीति में होना इस बात का प्रमाण है।

बीस सदस्यों के साथ मुलायम का कुटुंब किसी भी पार्टी में सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के होने का दावा कर सकता है। कुछ माह पूर्व हुए जिला पंचायत चुनाव में परिवार के दो सदस्यों की राजनीतिक एंट्री से मुलायम का परिवार सबसे बड़ा सियासी कुनबा बन गया। संध्या यादव को मैनपुरी से जबकि अंशुल यादव को इटावा से निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुना गया है। बता दें कि संध्या यादव सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन हैं, जबकि अंशुल यादव, राजपाल और प्रेमलता यादव के बेटे हैं। मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के अगुआ और पार्टी संस्थापक हैं। मुलायम के अलावा उनके अनुज शिवपाल यादव, रामगोपाल सिंह यादव, बेटा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, बहू डिंपल यादव, भतीजा धर्मेंद्र यादव, अक्षय यादव, पोता तेज प्रताप यादव, मुलायम सिंह के छोटे भाई राजपाल यादव की पत्‍नी प्रेमलता यादव, यूपी के कैबिनेट मिनिस्टर शिवपाल यादव की पत्नी सरला यादव, शिवपाल यादव के बेटे आदित्य अंशुल यादव, (राजपाल और प्रेमलता यादव के बेटे), सपा सुप्रीमो की भतीजी और सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन संध्या यादव सियासी चोला ओढ़ चुके हैं।

मुलायम सिर्फ अपने ही परिवार नहीं, चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव के परिवार को भी पूरा संरक्षण देते रहते हैं। इसी क्रम में मुलायम की चचेरी बहन और रामगोपाल यादव की सगी बहन 72 वर्षीया गीता देवी के बेटे अरविंद यादव ने 2006 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा। शीला यादव मुलायम के कुनबे की पहली बेटी थीं जिन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। शीला यादव जिला विकास परिषद की सदस्य निर्वाचित हुई हैं, साथ ही बहनोई अजंत सिंह यादव बीडीसी सदस्य चुन गए हैं। सपा प्रमुख ने ही परिवारवाद को बढ़ावा दिया तो उनकी पार्टी के अन्य नेता कैसे पीछे रह सकते थे। बहती गंगा में उन्होंने भी हाथ धो लिया। सिद्धांत की बडी−बड़ी बातें करने वाले आजम खान, नरेश अग्रवाल, बलराम यादव, रेवतीरमण सिंह, वकार शाह और विजय मिश्रा इसकी मिसाल हैं। आजम खान के बेटे अब्दुल्ला समाजवादी पार्टी के टिकट पर रामपुर जिले के स्वार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। इस बात का ऐलान खुद काबीना मंत्री ने रामपुर में एक कार्यक्रम में किया। इससे पहले आजम खां की पत्नी को समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा भेजा था।

 

 


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