हर मनोकामना पूरा करते हैं बाबा ईशान नाथ

By: Dilip Kumar
2/27/2017 10:49:32 AM
नई दिल्ली

महाशिवरात्रि के त्यौहार लाखों शिव भक्तों द्वारा हर साल मनाया जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन का त्यौहार का लोगों के लिए बहुत ही महत्व होता है। शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की अराधना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि का अपना एक खास महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिवरात्रि का त्यौहार फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विधि विधान के साथ भगवान शिव की अराधना करने से वह बेहद प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर कृपा करते हैं।

भगवान शिव के कई अनोखे मंदिर हैं, लेकिन बिहार के इस मंदिर की बात सबसे अलग है। मंदिर में अवस्थित शिवलिंग भूतल से 12 फीट नीचे है। शिवलिंग लगभग दो फीट लंबा है एवं काफी आकर्षक है। मंदिर नेपाल के अवस्थित जलेश्वर नाथ एवं अरेराज स्थित सोमेश्वर नाथ से काफी मिलता जुलता है। बरसात के महीनों में शिवलिंग जलमग्न रहता है। मान्यता के अनुसार बरसात के दिनों में लिंग के जलमग्न न होने पर सुखाड़ की स्थिति उत्पन्न होती है।

सीतामढ़ी जिले के बेलसंड अनुमंडल मुख्यालय से लगभग पांच किमी की दूरी पर अवस्थित दमामी मठ के रूप में विख्यात बाबा ईशान नाथ का दुर्लभ शिवलिंग की पूजा लोग वर्षों से कर रहे हैं। बेलसंड, परसौनी एवं रुन्नीसैदपुर प्रखंडों के हजारों श्रद्धालु सुबह पांच बजे की आरती पूजा के दौरान उपस्थित रहते हैं। स्थानीय लोग अपनी दिनचर्या सुबह में बाबा ईशान नाथ के दर्शन के साथ शुरू करते हैं। वैसे मंदिर में देर रात तक दर्शन करने वालों की भीड़ लगी रहती है।

शिव रात्रि, वसंत पंचमी, अनंत चतुर्दशी के अलावा सावन के महीने में खासकर सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगती एहै। वर्तमान में ध्वस्त अतिथिशाला, पाठशाला, परिसर की चाहरदीवारी, जर्जर पोखर एवं तीन कुंआ के भाग विशेष मंदिर के प्राचीन काल में भव्य तीर्थ स्थान होने की गवाही देते हैं। लगभग 15 एकड़ के विस्तृत क्षेत्र में फैला मंदिर का परिसर इसकी संपन्नता का साक्षी है। बताया जाता है कि यह मंदिर राजा जनक के समय में भी अवस्थित था।

प्राचीन काल में यह मंदिर बागमती नदी के किनारे स्थापित था। कालांतर में नदी ने अपनी धारा परिवर्तित कर ली। वर्तमान में नदी के प्रतीक के रूप में लगभग बीस किमी लंबा नासी उपलब्ध है। मंदिर परिसर में शिवलिंग के सामने 16 महंथों की समाधी भी भग्नावस्था में मौजूद है। मंदिर का प्राचीन घंटा जिसपर उत्कीर्ण अभिलेख के अनुसार, 1293 ई. में कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को जलेश्वर स्थान के महंथ प्रीति गिरी ने सिंह द्वार के सामने स्थापित कराया था।

मंदिर का सिंह द्वार बंगाल की स्थापत्य कला से प्रभावित दिखता है। इसका निर्माण सुरखी चूना से किया गया है जो काफी आकर्षक है। राजांतर में पार्वती जी एवं हनुमान जी के मंदिर का निर्माण कराया गया है। मंदिर में 3 मार्च 2006 में राम निवास शर्मा द्वारा 101.1 किलो का पीतल का घंटा लगवाया गया है एवं अमलेन्दु पांडेय द्वारा बरसात के दिनों में गर्भ गृह से जल निकासी हेतु उपकरण दिए गए है। ऐसी मान्यता है कि रामचन्द्र जी जानकी जी के साथ विवाह के पश्चात जनकपुर से इसी रास्ते अयोध्या गए थे एवं इस मंदिर में पूजा अर्चना भी की थी।  इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां भक्ति भाव से अगर कुछ भी मांगा जाए तो पूरा हो जाता है।


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