इन बातों में छिपे हैं सुखी परिवार से सूत्र

By: Dilip Kumar
7/29/2017 1:20:24 AM
नई दिल्ली

कौरवों के पास सारे पासे थे, लेकिन बाजी पांडवों ने सही ढंग से चली, क्योंकि श्रीकृष्ण उनके साथ थे। श्रीकृष्ण यानी स्पष्ट चिंतन, सुदृढ़ निर्णय शक्ति और आत्म-विश्वास। श्रीकृष्ण का यह रूप हमारे भीतर उपस्थित है। बस, उघाड़ना भर है। श्रीकृष्ण जैसी उपलब्धि हमारे भीतर शिक्षा अथवा किसी के मार्गदर्शन से प्राप्त हो सकती है।

श्रीकृष्ण मूल रूप से पारिवारिक व्यक्ति थे, लेकिन अत्यधिक सामाजिक और राष्ट्रीय नेतृत्व करते दिखते थे। हम अधिकतम समय घर से बाहर गुजारते हैं। ऐसे में परिवार बचाने की यही शैली है कि जरूरी नहीं हमारे पास पासे कितने हैं? आवश्यक यह होगा कि हम बाजी कैसे चलें। घरों में ऐसा ही वातावरण है। एक-दूसरे से चाल चल रहे हैं। परिवार एकमात्र ऐसा खेल है, जिसमें या तो सभी को जीतना है या सभी से हारना है। एक ही परिवार में अपनों को हराना और अपनों से जीतना ठीक नहीं है, इसलिए श्रीकृष्ण जैसा गुरु परिवार के केंद्र में होना चाहिए।

गुरुमंत्र लेते समय इसकी गोपनीयता बनाए रखने को कहते हैं। ऐसा क्यों कहा जाता है? दरअसल मनुष्यों का शारीरिक गठन इस प्रकार है कि हम कोई चीज भीतर लाएंगे तो उसको बाहर निकालना ही होगा। भोजन और मल विसर्जन इसी का उदाहरण है। कोई भी वस्तु भीतर रोकने में धैर्य लगता है, तप की जरूरत होती है। इसे पारिवारिक जीवन में अपनाएं। अपने परिवार में पूरी तरह रुकें, प्रत्येक पल को जिएं फिर बाहर की दुनिया भी अलग ही आनंद देगी।

 


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