अशोक गहलोत होंगे राजस्‍थान के नए मुख्‍यमंत्री, सचिन पायलट डिप्‍टी सीएम

By: Dilip Kumar
12/14/2018 6:58:52 PM
नई दिल्ली

राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री की जिम्‍मेदारी अशोक गहलोत को दी गई है, जबकि सचिन पायलट को राज्‍य का उप मुख्‍यमंत्री बनाया गया है. सचिन साथ ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्‍यक्ष भी बने रहेंगे. प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में बताया गया कि सभी नेताओं और विधायकों से चर्चा के बाद आम सहमति से फैसला लिया गया कि राज्‍य के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत होंगे. उनके साथ सचिन पायलट को डिप्‍टी सीएम बनाया जाएगा. इस दौरान गहलोत ने कहा कि हमारी सरकार राजस्‍थान को गुड गवर्नेंस देगी. किसानों की कर्जमाफी होगी, युवाओं को रोजगार मिलेगा और जनता को सुशासन मिलेगा. वसुंधरा पांच साल तक न तो जनता न ही अपने विधायकों से मिलीं.

उधर, कांग्रेस विधायक दल बैठक की तैयारियां शुरू हो गई है. बताया जा रहा है कि थोड़ी देर में गहलोत जयपुर पहुंचेंगे. सूत्रों के अनुसार, मुख्‍यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह 17 दिसंबर को आयोजित होगा. दरअसल, इस मुद्दे पर राहुल गांधी ने आज भी अपने घर पर प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे, पर्यवेक्षक केसी वेणुगोपाल, अशोक गहलोत और सचिन पायलट के साथ बैठक की. बैठक के बाद राहुल गांधी ने राजस्‍थान के सीएम पद के मजबूत दावेदार अशोक गहलोत और सचिन पायलट के साथ मुस्‍कुराती हुई फोटो ट्वीट की. 

लंबा प्रशासनिक अनुभव और जादूगरी आई काम

राजस्‍थान में कांग्रेसी नेता अशोक गहलोत बड़े कद के नेता हैं। राज्‍य में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में वह काफी समय से लगे थे। अपने राजनीतिक जीवन में वह कमाल के जादूगर हैं। निजी जीवन की बात करें तो उनके पिता बाबू लक्ष्मण सिंह गहलोत देश के जाने-माने जादूगर थे। अशोक गहलोत ने अपने पिता से उन्‍होंने यह फन सीखा। अपने स्‍कूली दिनों में उन्‍होंने इसका प्रदर्शन भी किया। इन दिनों में जेब में फूल डालकर रुमाल निकालने और कबूतर उड़ाने की कला में वह माहिर थे।

अशोक गहलोत ने सरदारपुरा सीट से जीत दर्ज की है, यहीं पर उनका पुश्‍तैनी घर भी है। यह विधानसभा क्षेत्र जोधपुर में आता है। यहीं के पुश्‍तैनी घर में वर्ष 1951 में उनका जन्म भी हुआ। इस घर के एक कमरे को वो अपने लिए बेहद लकी मानते हैं। इसकी खास बात ये कि वे जब भी मतदान के लिए जाते हैं तो यहीं से जाते हैं। यहीं के जैन वर्धमान स्कूल में उन्‍होंने पांचवीं तक पढ़ाई की थी। 1962 में उन्‍होंने छठी में सुमेर स्कूल में दाखिला लिया।

पढ़ाई के दौरान वह स्काउट और एनसीसी के जरिए होने वाली समाज सेवा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। इसके अलावा वाद-विवाद करने में भी वह माहिर हैं। उनके सियासी सफर की बात करें तो छात्र जीवन उनका रुझान कहीं न राजनीति की तरफ हो चुका था। वह कॉलेज के छात्रसंघ में उपमंत्री भी रहे। राजनीति में एंट्री से पहले वह डॉक्‍टर बनना चाहते थे। इसी हसरत से उन्‍होंने जोधपुर विश्वविद्यालय में दाखिला भी लिया था, लेकिन उन्‍हें कामयाबी नहीं मिली। लिहाजा उन्‍हें बीएससी की डिग्री से संतोष करना पड़ा। इसके बाद जब उनके मन में पोस्ट ग्रेजुएशन करने का ख्‍याल आया तो उन्‍होंने इसके लिए अर्थशास्‍त्र को चुना। इसके बाद उन्‍होंने छात्रसंघ का चुनाव भी लड़ा। बहरहाल, कॉलेज की पढ़ाई के साथ उन्‍होंने राजनीति का ककहरा भी अब तक सीख लिया था।

लेकिन कॉलेज के बाद रोजगार का संकट उनके लिए किसी बड़ी चुनौती की तरह था। अशोक गहलोत ने 1972 में बिजनेस में हाथ आजमाया। जोधपुर से पचास किलोमीटर दूर उन्‍होंने खाद-बीज की दुकान खोली लेकिन यह नहीं चली। महज डेढ़ साल में उन्‍हें यहां से काम समेटना पड़ा। गहलोत हमेशा से ही महात्‍मा गांधी से काफी प्रभावित थे। 1971 में गहलोत ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के वक्त गांधीवादी सुब्बाराव के शिविरों में सेवा भी की। उसके बाद वर्धा में गांधी सेवा ग्राम में 21 दिन की ट्रेनिंग ली। उनसे जुड़े लोग भी मानते हैं कि सादगी में उनका कोई सानी नहीं है।

कांग्रेस के साथ जुड़ाव को लेकर भी उनकी कहानी काफी दिलचस्‍प है। देश में जब इमरजेंसी लागू की गई तो उसके बाद होने वाले चुनाव में कांग्रेस नेता अपनी हार से इस कदर चिंतित थे कि उसके टिकट पर लड़ने को भी तैयार नहीं थे। ऐसे में जब गहलोत को इसका ऑफर मिला तो उन्‍होंने बिना कुछ ज्‍यादा सोचे इसपर अपनी हामी भर दी। चुनाव लड़ने के लिए पैसों का जुगाड़ भी उन्‍होंने अपनी मोटरसाइकिल बेच कर किया था। 1980 में जब वह पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए उस वक्‍त उन्‍होंने अपने प्रचार के लिए खुद ही अपने पोस्‍टर चिपकाए। इस दौर में वह लोकसभा के लिए चुने जाने वाले देश के सबसे युवा सांसद थे।

राजस्थान के कद्दावर नेताओं के बीच सीधे-सादे और मिलनसार अशोक गहलोत से इंदिरा गांधी इतनी प्रभावित हुईं कि 1982 में उन्हें कैबिनेट में मंत्री बना दिया। 1984 में गहलोत राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सबसे युवा अध्यक्ष बना दिए गए। राजस्‍थान में गहलोत ने पार्टी में जान फूंकने के लिए जमीनी स्‍तर पर काफी काम किया। इंदिरा गांधी के बाद गहलोत राजीव गांधी के भी काफी करीब थे। हालांकि राहुल गांधी के समय में सीपी जोशी को तवज्‍जो दिए जाने के बाद उनके मन में कुछ नाराजगी जरूर आई, लेकिन इसके बाद भी वह पार्टी को आगे बढ़ाने का काम करते रहे।

सचिन पायलट की राजस्‍थान के डिप्टी सीएम के तौर पर घोषणा

सचिन पायलट की राजस्‍थान के 25वें डिप्टी सीएम के तौर पर घोषणा के बाद उनके समर्थकों में जबरदस्‍त उत्‍साह है। सचिन पार्टी का युवा चेहरा होने के साथ-साथ पार्टी अध्‍यक्ष राहुल गांधी की युवा बिग्रेड के भी साथी हैं। इसके अलावा राजस्थान कांग्रेस के वह अध्‍यक्ष भी हैं। वर्तमान में राजस्‍थान में जो चुनाव हुए हैं उसमें एक जीत की बड़ी वजह सचिन पायलट भी हैं। ऐसा इसलिए भी क्‍योंकि विधानसभा चुनाव से पहले राज्‍य में हुए कुछ उप-चुनावों में भी कांग्रेस ने सफलता हासिल की थी। बहरहाल, मुख्‍यमंत्री के मुद्दे पर उन्‍होंने अशोक गहलोत के नाम को पीछे छोड़कर अपना कद काफी बढ़ा लिया है।

गहलोत के साथ यदि उनके राजनीतिक करियर की बात की जाए तो यह निश्चित तौर पर काफी कम है, लेकिन उन्‍होंने केंद्र समेत राज्‍य की राजनीति में जो मजबूत कदम रखे हैं उनको देखकर कहा जा सकता है कि वह खुद को बेहतर उप मुख्‍यमंत्री साबित कर सकेंगे। जहां तक उनके राजनीतिक करियर की बात है तो उन्‍होंने अपनी शादी से पहले राजनीति में उतरने के बारे में सोचा तक नहीं था। अपने पिता राजेश पायलट की मौत के बाद उन्हें राजनीति में उतरना पड़ा। जिस समय सचिन ने राजनीति के मैदान में कदम रखा उस समय उनकी उम्र महज 26 साल थी। सचिन ने 2004 के लोकसभा चुनावों में दौसा (राजस्थान) से बड़ी जीत हासिल की। सचिन पायलट जब 15वीं लोकसभा के लिए चुने गए तो उन्‍हें केंद्र में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री बनाया गया।

सचिन पायलट गुज्जर समुदाय से हैं। उनके पिता स्वर्गीय राजेश पायलट थे जो कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नई दिल्ली के एयर फोर्स बाल भारती स्कूल में हुई। उन्होंने अपने स्नातक की डिग्री दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से हासिल की। इसके बाद पायलट ने अमेरिका के पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के व्हॉर्टन स्कूल से एमबीए की डिग्री भी हासिल की। वर्ष 2002 में भारत वापस आने पर उन्‍होंने कांग्रेस की सदस्‍यता हासिल की। महज 26 साल की उम्र में वे संसद पहुंचने वाले सबसे युवा सांसद थे।

जहां तक उनके पारिवारिक जीवन की बात है तो वह भी काफी दिलचस्‍प रही है। आपको बता दें कि उनकी जीवन संगिनी जम्‍मू कश्‍मीर के पूर्व मुख्‍यमंत्री फारुख अब्‍दुल्‍लाह की बेटी हैं। दरअसल सारा के पिता फारूख अब्दुल्लाह, दादा शेख अब्दुल्लाह, भाई उमर अब्दुल्लाह और फूफा गुलाम मोहम्मद शाह जम्मू-कश्मीर के सीएम रहे हैं। लंदन में पढ़ाई के दौरान सचिन की मुलाकात सारा अब्दुल्लाह से हुई थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद जहां सचिन स्‍वदेश लौट आए वहीं सारा अपनी पढ़ाई के लिए लंदन चली गईं। समय के साथ उनका प्‍यार भी परवान चढ़ने लगा और दोनों ने ही शादी करने का फैसला किया। लेकिन यहां पर उनके सामने धर्म की दीवार आड़े आ गई। सचिन के परिवार ने दोनों की शादी के लिए इंकार कर दिया। वहीं, सारा के पिता फारुख अब्दुल्ला ने भी उनसे इस बारे में बात करने से मना कर दिया। बाद में इन दोनों ने किसी की परवाह किए बिना जनवरी 2004 में शादी कर ली।


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