भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका सर्वोच्च संस्था मानी जाती है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की किसी भी टिप्पणी को गंभीरता से देखा जाता है, क्योंकि उसका असर केवल कानून तक सीमित नहीं रहता, बल्कि समाज की संवेदनाओं और विश्वासों पर भी पड़ता है। हाल ही में भगवान विष्णु से जुड़ी टिप्पणी ने अनेक ...Read More
भारत के लोकतंत्र की नींव चार मजबूत स्तंभों पर टिकी है—विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया। इनका दायित्व केवल शासन को संतुलित रखना ही नहीं, बल्कि समाज के सम्मान और संविधान की मर्यादा की रक्षा करना भी है। लेकिन आज जब देश के गौरवशाली इतिहास, उसके महापुरुषों और एक संप्रदाय विशेष के खि ...Read More
न सरकारी जश्न, न विपक्षी प्रतिरोध, न विजय दिवस, न शोक दिवस
देवेंद्र गौतम
चुनावी वर्ष की पूर्व संध्या पर कोई शोर, की हंगामा नहीं। नोटबंदी की दूसरी वर्षगांठ सिर्फ सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच ज़ुबानी जंग में गुजर गई। सत्तापक्ष ने इससे अर्थ व्यवस्था के पटरी पर आने का दा ...Read More
बिहार जदयू ने चर्चित प्रशांत किशोर को राष्टï्रीय उपाध्यक्ष बनाकर जमीनी नेताओं को नकारने की अपनी रणनीति को आगे बढ़ाया है। आज चुनाव जनता के जुड़ाव से नहीं हवा से जीतने में राजनेता भरोसा करने लगे हैं। तरह-तरह के फेक खबरों को बनाकर जनता को दिग्भ्रमित कर उन्हें मानसिक गुलाम बनाकर सिर्फ और सिर्फ ...Read More
न ऱिश्तों की मधुरिमा बची न मर्यादा
झारखंड के चाईबासा जिले के एक छोटे से गांव मुरुमुबुरा की घटना है. 15 वर्षीय गांधी गोप ने अपने 37 वर्षीय पिता सुंदरलाल गोप की लकड़ी से पीट-पीटकर हत्या कर दी. कारण सिर्फ इतना था कि उसने बेटे के मोबाइल को नापसंद कर दिया ...Read More
प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की कथनी और करनी पर चाहे जितने भी सवाल उठे हों लेकिन जब वे देशवासियों को संबोधित करते हैं तो उनकी भाषा में अपनापन का बोध होता है लेकिन जब अरूण जेटली कोई बयान देते हैं तो अंदाज़ किसी शहंशाह का रियाया से संबोधन का होता है। मसलन पेट्रोलिय ...Read More
कर्नाटक और उपचुनावों के बाद अब नरेंद्र मोदी एंड कंपनी को समझ में आ चुका है कि उनकी लोकप्रियता का ग्राफ नीचे आ चुका है और सत्ता के अहंकार में कुछ ऐसी गलतियां हुई हैं जिनके कारण जनता में आक्रोश है। 2019 नजदीक है और अब गलतियों को सुधारने का समय नहीं है। जो लोग व ...Read More