अन्ना विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग छात्रों के पाठ्यक्रम में भगवत गीता

By: Dilip Kumar
10/1/2019 5:57:18 PM
नई दिल्ली

अन्ना विश्वविद्यालय में भगवत गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने का विरोध किया जा रहा है। द्रमुक के छात्र संगठन ने मंगलवार को विश्वविद्यालय में प्रदर्शन किया। छात्र संगठन का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों पर संस्कृत को थोप रहा है। विश्वविद्यालय ने इंजीनियरिंग के छात्रों के पाठ्यक्रम में एक पेपर भगवत गीता का भी शामिल किया है।

द्रमुक स्टूडेंट विंग प्रशासन से इस कदम को वापस लिए जाने की मांग कर रहा है। छात्र संगठन के जिला सचिव एजिलारासन ने कहा- केंद्र सरकार लगातार भाषाएं थोप रही है और हम इसका विरोध करते हैं। हर राज्य को अपनी मातृभाषा में इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। अभी हमारा विरोध शुरुआती चरण में है। हम पाठ्यक्रम से गीता को हटाने के लिए विरोध जारी रखेंगे। यह इंजीनियरिंग छात्रों के लिए जरूरी नहीं है।

प्रदर्शनकारियों ने यह भी मांग की है कि नई शिक्षा नीति के तहत लागू कुछ नियमों को वापस लिया जाए। इसके मुताबिक, पांचवीं और आठवीं के छात्रों को बोर्ड परीक्षा देनी होगी। इसके साथ ही तमिलनाडु पब्लिक सर्विस कमीशन ग्रुप 2 के प्रश्नपत्रों तमिल भाषा में लिए जाने की भी मांग की है।

इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदी दिवस के मौके पर एक राष्ट्र-एक भाषा के फॉर्मूले पर जोर दिया था। इसके लिए शाह ने हिंदी का समर्थन किया था। लेकिन, इस बयान पर दक्षिण भारत के कई राज्यों में विरोध शुरू हो गया था। इसके बाद शाह ने सफाई दी थी कि उनके बयान का मतलब मातृभाषा पर हिंदी थोपना नहीं था। उन्होंने कहा था कि अगर फिर भी कोई इस पर राजनीति करना चाहता है तो यह उसकी इच्छा है।

इसी साल जून में सामने आए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे को लेकर भी विवाद हुआ था। मसौदे में प्रस्ताव दिया गया था- तीन भाषाओं के फॉर्मूले को पूरे देश में लागू किए जाने की जरूरत है। 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति शुरू होने के बाद ही यह फॉर्मूला अपनाया गया था और यह जारी रहेगा। रिसर्च में सामने आया है कि 2-8 वर्ष की आयु के बच्चे भाषाएं जल्द सीखते हैं। बहुभाषी फॉर्मूला बच्चों के लिए काफी फायदेमंद हैं। इसलिए बच्चों को शुरुआती चरण से ही तीन भाषाओं की शिक्षा दी जाए। जो बच्चे अपनी कोई एक भाषा बदलना चाहता है, वह ऐसा छठवीं कक्षा में कर सकता है।

विवाद इसलिए था, क्योंकि मसौदे में प्रस्ताव दिया गया था कि हिंदी भाषी प्रदेशों में हिंदी-अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य क्षेत्र की भाषा की शिक्षा दी जाए। वहीं, गैर-हिंदी भाषी प्रदेशों में हिंदी और अंग्रेजी के अलावा क्षेत्रीय भाषा की शिक्षा दी जाए। इसी प्रस्ताव का दक्षिण भारत के राज्यों और महाराष्ट्र व प. बंगाल ने विरोध किया था।

 

 


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