हिमा दास ने तो यहां महज 21 दिन के भीतर छह स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिये. आजकल हिमा दास सोशल मीडिया की सनसनी बनी हुई हैं और भारत का अधिकांश नागरिक इनकी उपलब्धियों की चर्चा कर रहा है. आप सोचेंगे कि पांच स्वर्ण पदकों के बावजूद केवल सोशल मीडिया की सनसनी ही क्यों तो वो इसलिए क्योंकि इन्हें उस तरह से मीडिया कवरेज नहीं मिला है, इस समय आम नागरिकों से लेकर खेल जगत, फिल्म जगत और राजनेता सभी इनका गुणगान कर रहे हैं.
दास का जन्म 9 जनवरी साल 2000 में पूर्वोत्तर राज्य असम के नगांव जिले के कांधूलिमारी स्थित ढिंग गांव में हुआ था. पिता रणजीत दास और मां जोनाली दास चौथी और सबसे छोटी बेटी हिमा दास को बचपन में फुटबॉल खेलना पसंद था. दिलचस्प है कि हिमा दास लड़कों की टीम का अहम हिस्सा हुआ करतीं थीं.
किसान माता-पिता के यहां पैदा हुईं हिमा दास
माता-पिता जमीन के छोटे से टुकड़े में चावल की खेती किया करते थे. लेकिन हिमा में बचपन से ही खेल-कूद में रूचि थी. इनकी प्रतिभा को सबसे पहले जिले के नवोदय विद्यालय के खेल शिक्षक शमशुल हक ने पहचाना. मैदान में उनकी तेजी को देखकर शमशुल हक ने ना केवल इन्हे दौड़ने की सलाह दी बल्कि इनकी प्रतिभा को निखारने के लिए इन्हें नगांव स्पोर्टस एसोसिएशन के अध्यक्ष गौरी शंकर रॉय से मिलवाया.
इन दोनों की देख-रेख में सीमित संसाधनों के बावजूद हिमा का प्रशिक्षण शुरू हुआ और अपनी पहली ही जिलास्तरीय प्रतियोगिता में हिमा ने दो स्वर्ण पदक जीत लिया. ये ढिंग एक्सप्रेस हिमा दास के स्वर्णिम सफर की शुरूआत भर थी.जिला स्तरीय प्रतियोगिता में हिमा दास काफी साधारण सी नजर आ रही थीं. इन्होंने बेहद सस्ते जूते पहन रखे थे लेकिन जब दौड़ना शुरू किया तो अपनी तेजी से सबको हैरान कर दिया. यहीं पर स्पोर्टस एंड यूथ वेलफेयर से जुड़े निपोन दास की नजर हिमा पर पड़ी. इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर निपोन ने इन्हें प्रशिक्षित करने का फैसला किया. लेकिन मुश्किल ये थी कि हिमा के गांव से गुवाहटी शहर तकरीबन डेढ़ सौ किलोमीटर था.
हिमा के पिता रणजीत अपनी बिटिया को इतनी दूर भेजने के लिए कतई तैयार नहीं थे. आखिरकार काफी समझाने के बाद वे इसके लिए तैयार हो गये. हमें उस पल का शुक्रिया अदा करना चाहिए जब रणजीत दास ने भारी मन से हिमा को गुवाहटी भेजने के लिए हामी भरी थी.गुवाहटी में निपोन दास की कड़ी निगरानी में हिमा का प्रशिक्षण शुरू हुआ. अपनी सच्ची लगन और खेल के प्रति जुनून की बदौलत हिमा दास ने निखरना शुरू कर दिया.
हिमा अब अतंर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं के लिए तैयार हो चुकी थीं. लेकिन उनके अंतर्राष्ट्रीय सफर की शुरूआत बढ़िया नहीं रही. सबसे पहले उन्होंने बैंकॉक में आयोजित एशियाई यूथ चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और सातवें स्थान पर खत्म किया. इसके बाद महज 18 साल की उम्र में हिमा दास ने ऑस्ट्रेलिया में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लिया लेकिन पिछली बार के मुकाबले एक स्थान की बढ़त के साथ छठे नंबर पर रहीं. कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद हिमा ने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियन ट्रैक कंपीटिशन में हिस्सा लिया और इस जीता भी.
हिमा दास ने दुनिया को अपनी धमक पहली बार तब दिखाई जब उन्होंने जकार्ता में आयोजित 18वें एशियन गेम्स में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ते हुये रजत पदक जीता. इसी में हिमा ने 50.79 सेकेंड के साथ राष्ट्रीय रिकॉर्ड कायम किया था. इसके अलावा उन्होंने गुवाहाटी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक अपने नाम किया. अब हिमा दास चेक गणराज्य में आयोजित ट्रैक एंड फील्ड प्रतिस्पर्धा में नये कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं.
इस प्रतियोगिता के दौरान हिमा ने 400 मीटर की दौड़ में 51.46 सेकेंड का समय निकालकर स्वर्ण पदक जीता. ये उपलब्धि हासिल करने वाली हिमा पहली भारतीय महिला एथलिट बन गयीं हैं. इसके अलावा हिमा दास ने 200 मीटर की अलग-अलग चार प्रतिस्पर्धा में क्रमश 2, 7, 13 और 19 जुलाई को स्वर्ण पदक अपने नाम किया. इस प्रकार जुलाई 2019 में महज 20 दिनों के भीतर पांच स्वर्ण पदक हासिल कर हिमा ने नया कीर्तिमान गढ़ा है.
इस उपलब्धि को पूरा भारत सेलिब्रेट कर रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, केंद्रीय खेल मंत्री किरिन रिजिजू समेत खेल और बॉलीवुड जगत की तमाम हस्तियों ने इस उपलब्धि के लिए हिमा दास को बधाई दी है. एक और सच जो आपको जानना चाहिए. हिमा दास जब ये उपलब्धियां हासिल कर रही थीं तब बाढ़ की वजह से उनका अपना घर-परिवार संकट में था. हिमा दास ने मिसाल कायम करते हुये बाढ़ राहत कोष के लिए अपनी आधी सैलरी दान कर दी. सैल्यूट है आपको हिमा दास.
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