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बुध्द पूर्णिमा पर विशेष आलेख: लोक कल्याण के पक्षधर थे गौतम बुद्ध

By: Sandeep Thakur
5/16/2022 1:42:44 PM

बुध्द पूर्णिमा पर विशेष आलेख: लोक कल्याण के पक्षधर थे गौतम बुद्ध

छठी शताब्दी ईसा पूर्व हिमालय की तराई में कपिलवस्तु नामक गणराज्य था जहां पर 563 ईसा पूर्व (लुंबिनी वन, नेपाल की तराई )में वैशाख की पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। आपके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। आपके पिता शुद्धोधन और माता महामाया थी आपका जन्म जब आपकी मां अपने पिता के घर देवदह जा रही थी कपिलवस्तु से कुछ मील दूर लुंबिनी वन में सिद्धार्थ पैदा हुए थे। सिद्धार्थ के जीवन के विषय में ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी कर दी थी कि बड़ा होकर यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा नहीं तो बुद्ध बनेगा और संसार के अज्ञान और अंधकार का नाश करेगा। सिद्धार्थ के जन्म के एक सप्ताह बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था उनका लालन-पालन इनकी मौसी मां महाप्रजापति गौतमी ने किया था। बचपन से ही सिद्धार्थ का स्वभाव विचारशील था । वह प्रायः एकांत में बैठकर दुनिया की अच्छी बुरी बातों पर विचार किया करते थे । वह प्रायः सोचा करते थे कि मनुष्य रोग से ग्रस्त क्यों होता है ? वह बूढ़ा क्यों होता है ? वह क्यों मरता है? क्या दुखद अवस्थाओं से बचने का कोई उपाय है? सिद्धार्थ को संसार से कुछ विरक्त तथा अधिक विचार मगन देख शुद्धोधन को डर लगा कि कहीं सिद्धार्थ सन्यासी न बन जाए । राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ का  16 वर्ष की अल्पायु में यशोधरा नामक एक कोलिय राजकुमारी के साथ विवाह कर दिया । उनके एक पुत्र हुआ जिसका  राहुल नाम का था।

        29 वर्ष की अवस्था में आपने पत्नी और अबोध बच्चे राहुल को छोड़कर चले गए। गृह त्याग की यह घटना महाभिनिष्क्रमण कहलाती है। आप राजसी ठाठ बाट छोड़कर मानव के दुखों से मुक्ति का उपाय खोजने निकल पड़े ।अनेक विद्वानों और तपस्वीओं के संपर्क में आए। निरंजना वर्तमान नीलांजना नदी के किनारे एक वट वृक्ष के नीचे आपने 6 साल तक कठोर तपस्या की । अंत में 528ई.पू.  में 35 वर्ष की अवस्था में वैशाख की पूर्णिमा के दिन बोधगया बिहार में बोधि वृक्ष पीपल के नीचे बुद्धत्व प्राप्त हुआ। और बुद्ध हो गए। सिद्धार्थ अब बुद्ध कहलाए । सम्बोधि प्राप्त कर   वाराणसी के निकट सारनाथ में आपने अपना प्रथम धर्म उपदेश दिया जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन कहा जाता है । इसके बाद आप 45 वर्षों तक निरंतर इधर-उधर घूमते रहे और लोक कल्याण में उपदेश देते रहे भगवान बुद्ध की सारी शिक्षा उनका सारा दर्शन  दुःख, अनित्य और अनात्म इन तीन शब्दों में निहित है । बुद्ध ने चार आर्य सत्य बतलाए जो हैं - सर्व दुखं अर्थात सब कुछ दुख मय हैं। दुख समुदाय अर्थात दुःख का कारण है। दुःख निरोध अर्थात दुख से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। और दुख निरोध प्रतिपदा अर्थात दुखों से मुक्त होने का मार्ग जिसे मध्यम प्रतिपदा या मध्य मार्ग कहा गया मध्य मार्ग पर चलकर मनुष्य अपना और समाज का कल्याण कर सकता है। जिसके अनुसार अष्टांगिक मार्ग कहलाया जो है- सम्यक दृष्टि ,सम्यक संकल्प,सम्यक वाक् सम्यक कर्म, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, समिति स्मृति और सम्यक समाधि। अष्टांगिक मार्ग पर चलकर मानव अपना सर्वांगीण विकास कर सकता है और दुनिया में व्याप्त दुखों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

       भगवान बुद्ध ने 10 शील पर बहुत बल दिया जिनमें प्रमुख हैं- हिंसा से बचना चोरी न करना कामवासना और मिथ्या आचरण से दूर रहना झूठ न बोलना प्रमाद पैदा करने वाले पदार्थों का सेवन न करना ही सदाचरण है इसे ही पंचशील कहा जाता है। गौतम बुद्ध के चिंतन का केंद्र बिंदु मनुष्य आपने सभी प्राणियों के साथ मनुष्य के दुखों और उनके निवारण पर विशेष ध्यान दिया जिन बातों से मनुष्य का कल्याण नहीं हो सकता था  बुद्ध ने उनपर कोई ध्यान नहीं दिया। समाज के सभी वर्गों का गौतम बुद्ध को साथ मिला। गौतम बुद्ध पहले धर्म नायक थे जिन्होंने अपने धर्म के लिए किसी जाति और देश की सीमा नहीं रखी।  आपने संसार के कोने कोने में अपने शिष्यों को धर्म प्रचार के लिए भेजा सभी जातियों और वर्गों के लोगों को उन्होंने भिक्कू संघ में सम्मिलित किया । महिलाओं को भी सम्मान दिया। 45 वर्षों तक को निरंतर भ्रमण करने और उपदेश देते रहे रहने के पश्चात अंत में 80 वर्ष की आयु में  वैशाख पूर्णिमा के दिन ही 483 ईसा पूर्व में कुशीनगर के निकट साल वन में भगवान बुद्ध ने संसार से विदा ली। इस घटना को महापरिनिर्वाण कहा जाता है।

         बौद्ध जगत में वैशाखी पूर्णिमा को त्रिगुण पावन बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है क्योंकि वैशाखी पूर्णिमा को राजकुमार सिद्धार्थ का जन्म लुंबिनी में, बोधगया पटना बिहार में सिद्धार्थ ने संबोधित प्राप्त की और बुद्ध कहलाए तथा कुशीनगर में बेशाखी पूर्णिमा के दिन महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए। बौद्ध जगत में वैशाखी पूर्णिमा को बौद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गौतम बुद्ध ने अपने दर्शन में प्रतीत्यसमुत्पाद अनात्मवाद, यथार्थवाद क्षणिकवाद ,अनीश्वरवाद जैसी विचारधाराओं पर बल दिया। गौतम बुद्ध ने 10 सील भी बताएं जिसमे संदेह का त्याग क्रोध का त्याग ईर्ष्या का त्याग अज्ञानता का त्याग सुख-दुख स्थाई नहीं होता है।मनुष्य का ध्यान वर्तमान पर हो ,लंबे समय गुलामी में व्यतीत करने से अच्छा है चंद समय की स्वतंत्र जिंदगी।

      गौतम बुद्ध सुखद  एवम लोककल्याणकरी मानव जीवन के पक्षधर थे। आपने जाति विहीन मानव समाज के निर्माण पर बल दिया और कहा कि गुलामी किसी भी प्रकार की इंसानियत की दुश्मन होती है। कुप्रथा आडंबरम अंधविश्वास अंधास्था तथा अमानवीय व्यवहारों के विरोधी थे आपने समतामूलक मानव समाज निर्माण पर बल दिया। धर्मांधता लिंग भेद ,अस्प्रस्यता ,कुपोषण और अशिक्षा भारत वासियों की संवैधानिक लोकतांत्रिक समाज व्यवस्था के विकास में सबसे बड़े बाधक तत्व हैं । स्वास्थ्य शिक्षा स्वच्छता, निष्पक्षता- मानवता और इंसानियत हेतु अनिवार्य है । गौतम बुद्ध के  धर्म में हीनयान थेरवाद  महामानव वज्रयान परंतु सभी बौद्ध संप्रदाय के सिद्धांत हैं ईसाई धर्म के बाद बौद्ध धर्म दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। प्रमुख देशों में जैसे चीन जापान वियतनाम भूटान थाईलैंड सर्वाधिक बौद्ध  आबादी वाले देश हैं ।आज दुनिया के 200 देशों में गौतम बुद्ध की शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं । वास्तव में गौतम बुद्ध का धर्म और उनकी शिक्षाऐ आज भी प्रासंगिक है। अंत में हम कह सकते हैं की मानवता के कल्याण के लिए गौतम बुद्ध अवतरित हुए आप धंका सिद्धांत स्पष्ट था मनुष्य अपना स्वामी स्वयं होता है अत दीप भव का सिद्धांत दिया और कहां मनुष्य अपना दीपक स्वयं बने हमें अपने कल्याण के लिए आत्मसम्मान के साथ जीने के लिए स्वयं ही प्रयास करना होगा । समाज या सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।

      वर्तमान में गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के महत्व का इसी से पता चलता है कि आज भी दुनिया में एक तिहाई लोग बौद्ध है भगवान बुद्ध का धर्म पूजा और प्रसाद का धर्म नहीं है अपितु उनका धर्म शील और सदाचार का धर्म है तथागत  गौतम बुद्ध एक प्रकाश पुंज है और सारा जगत उनके प्रकाश से आलोकित है। दुनिया के प्रथम वैज्ञानिक, चिंतक, अद्भुत विचारक ,पथ प्रदर्शक / मार्गदर्शक ,कुशलता का उपदेश देने वाले मानवता के महान पक्षधर /प्रवक्ता  थे । गौतम बुद्ध  दया प्रज्ञा और करुणा के उस महासागर के समक्ष सारा विश्व नतमस्तक है।

लेखक

सत्य प्रकाश

(प्राचार्य )

डॉ बी आर अंबेडकर जन्मशताब्दी महाविद्यालय धनसारी अलीगढ़, उत्तर प्रदेश


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