जनहित याचिका को बनाया भयादोहन का हथियार
By: Dilip Kumar
3/11/2023 8:59:35 PM
रांची से देवेंद्र गौतम। रांची हाईकोर्ट के जाने-माने अधिवक्ता सिर्फ आदिवासी ज़मीनों की हेराफेरी के आरोपी नहीं हैं। उन्हें झारखंड हाईकोर्ट का पीआईएल स्पेस्लिस्ट अधिवक्ता माना जाता है। सोशल एक्टिविस्टों के वे पसंदीदा अधिवक्ता रहे हैं। लेकिन 31 जुलाई 2022 को जब वे कोलकाता के हेयर स्ट्रीट थाना क्षेत्र में एक केस के मुदालय से 50 लाख रुपये की रंगदारी वसूलते रंगे हाथ गिरफ्तार किए गए तो उनका असली चेहरा उजागर हो गया। लोगों ने देखा कि इन्होंने तो पीआईएल को ब्लैकमेलिंग का हथियार बना रखा है। इस प्रकरण के बाद वकील साहब के काले कारनामों की गठरी खुलने लगी। उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी।
पश्चिम बंगाल सीआईडी और ईडी के अधिकारी उनके मामले की जांच कर रहे हैं। सीआईडी अधिकारी उनके दफ्तर की सभी फाइलें अपने साथ ले गए। उनमें से अधिकांश जनहित याचिकाओं से संबंधित हैं। पता चला कि वे हर फाईल में विरोधी पक्ष के मालदार लोगों की तलाश कर लेते थे। अपने मुअक्किलों के हित से उन्हें कोई लेना-देना नहीं था। अब जैसे-जैसे फाईलें खुलेंगी और उनकी जांच होगी, नए-नए खुलासे होंगे।
राजीव कुमार की वसूली का दायरा कितना बड़ा था इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 50 लाख की मांग सिर्फ एक मामले से एक नाम हटाने के लिए थी। कोलकाता के उस आरोपी व्यापारी ने मांग मान ली और पैसे देने के लिए कोलकाता बुलाया। लेकिन अधिवक्ता को क्या पता था कि व्यापारी ने स्पेशल ब्रांच को पहले ही खबर कर रखी थी। स्पेशल ब्रांच ने उन्हें पैसे लेते रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। यह मामला उनके पाप के घड़े पर करारा पत्थर साबित हुआ। उनके कारनामों की फाइलें खुलने लगीं। उनकी संपत्ति और कारनामों की जांच शुरू हो गई। धीरे-धीरे उनकी लोलुपता और धोखाधड़ी के शिकार मुवक्किल भी सामने आने लगे हैं।
उनके मुवक्किलों में सबसे पहले बहुचर्चित एस-एस फंड घोटाला मामले के याचिकाकर्ता राजू कुमार सामने आए। उन्होंने झारखंड और राष्ट्रीय बार काउंसिल को पत्र लिखकर मामले की पूरी जानकारी देते हुए राजीव कुमार पर विश्वासघात के गंभीर आरोप लगाए और उनका लाइसेंस रद्द करने का अनुरोध किया। राजू कुमार का कहना है कि उन्होंने 23 जुलाई 2009 को रांची ही कोर्ट में एसएस फंड से 5.6 करोड़ की अवैध निकासी की सीबीआई जांच कराने की मांग को लेकर एक जनहित याचिका WP(PIL) नं. 3439/2009 दाखिल की थी। इसमें कुल 15 प्रतिवादी थे। प्रतिवादी संख्या 14 में झारखंड के तत्कालीन डीजीपी विष्णु दयाल राम (वर्तमान में भाजपा सांसद) और 15 में पूर्व डीजीपी राजीव कुमार थे। याचिका के अधिवक्ता आरोपी राजीव कुमार ही थे।
उच्च न्यायालय ने अपने 22.10.2010 के फैसले में याचिका को यह कहकर निष्पादित कर दिया था कि राज्य सरकार चाहे तो अवैध निकासी की सीबीआई जांच करा सकती है। झारखंड सरकार के गृह मंत्रालय ने 22.10.2010 को दोनों अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जांच की एक अधिसूचना Mus.ko. 2526/C.S/09/-4305/Ranchi जारी कर दी। अधिवक्ता राजीव कुमार के साथ मिली भगत कर आरोपी पूर्व डीजीपी विष्णु दयाल राम ने उक्त अधिसूचना को रद्द कराते हुए एक रिट याचिका संख्या WP(PIL) नं. 5459/2010 दाखिल की। उसमें जान बूझकर राजू कुमार को प्रतिवादी नहीं बनाया जबकि उन्हीं की याचिका पर सीबीआई जांच का आदेश हुआ था। वे प्रतिवादी बनते तो सीबीआई जांच रुकवाने की याचिका का सबसे ज्यादा विरोध करते।
अधिवक्ता राजीव कुमार इस मामले में दिलचस्पी नहीं ले रहे थे। पुलिस विभाग के ही कुछ सूत्रों ने राजू कुमार को जानकारी दी कि उनके अधिवक्ता आरोपी डीजीपी से मोटी रकम प्राप्त कर चुके हैं। हालांकि राजू कुमार को इसपर विश्वास नहीं हुआ था। उन्होंने स्वयं को प्रतिवादी बनाने के लिए अधिवक्ता पर दबाव डालकर एक IA दाखिल करवाया लेकिन हाई कोर्ट ने उसे निरस्त कर दिया। फिर एलपीए के तहत उन्हें प्रतिवादी बनाने का आदेश जारी हुआ। लेकिन अधिवक्ता राजीव कुमार की उदासीनता के कारण 13.08.2010 को याचिका का निष्पादन हो गया और अधिसूचना तथा सीबीआई जांच का मामला खत्म हो गया।
याचिकाकर्ता राजू कुमार का कहना है कि मीडिया के जरिए जब उन्हें पता चला कि कोलकाता के व्यापारी अमित अग्रवाल द्वारा हेयर स्ट्रीट थाना में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर अधिवक्ता राजीव कुमार 50 लाख की अवैध वसूली के मामले में रंगे हाथ गिरफ्तार किए गए हैं तो उन्हें विश्वास हो गया कि एसएस फंड निकासी की सीबीआई जांच के मामले में भी अधिवक्ता ने आरोपियों से मोटी रकम लेकर रुकवाने में भूमिका अदा थी। इस स्थिति में याचिकाकर्ता राजू कुमार ने बार कउंसिल ऑफ इंडिया से द एडवोकेट्स एक्ट 1961 एवं बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के तहत अधिवक्ता राजीव कुमार के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की है। इसकी प्रति झारखंड बार काउंसिल को भी प्रेषित की गई है। यह मामला अभी विचाराधीन है।