कुलवंत कौर के साथ बंसी लाल की रिपोर्ट। लोकमाता अहिल्याबाई होलकर का 300वाँ जन्मवर्ष मनाया जा रहा है। उनका जीवन भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम पर्व है। ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले सामान्य परिवार की बालिका से एक असाधारण शासनकर्ता तक की उनकी जीवनयात्रा आज भी प्रेरणा का महान स्रोत है। वे कर्तृत्व, सादगी, धर्म के प्रति समर्पण, प्रशासनिक कुशलता, दूरदृष्टि एवं उज्ज्वल चारित्र्य का अद्वितीय आदर्श थीं। उनके दिखाये गए सादगी, चारित्र्य, धर्मनिष्ठा और राष्ट्रीय स्वाभिमान के मार्ग पर अग्रसर होना ही उन्हें सच्ची श्रध्दांजलि होगी। पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई की जयंती के 300 वें वर्ष के पावन अवसर पर उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करने तथा वर्तमान एवं भावी पीढ़ी तक उनके प्रेरणादायी कृतित्व को पहुचाने के लिए गठित पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर त्रिशती समारोह समिति, दिल्ली द्वारा 14 नवंबर 2024 को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन करने जा रहा है।
इस उपलक्ष्य में पत्रकार वार्ता को पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशती समारोह समिति , दिल्ली की अध्यक्षा डॉ उपासना अरोड़ा जी ( प्रबंध निदेशक - यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ) तथा समिति के सचिव डॉ. अशोक कुमार त्यागी जी ( पूर्व उपशिक्षा निदेशक , दिल्ली ) ने संबोधित। उन्होंने कहा की लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर भारतीय नारी की गरिमामयी परम्परा का दैदीप्यमान सितारा है। सनातन काल से ही भारत में महिला और पुरूष को एक ही ईश्वरीय शक्ति की अभिव्यक्ति माना है।लोकमाता अहिल्याबाई होलकर भारतवर्ष की एक महान शासिका थीं, जिन्हें न्यायप्रियता, कुशल प्रशासन और सनातन के पुनर्जागरण के लिए किये गए कार्यों के कारण जाना जाता है।
उन्होंने बताया कि उनका जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी में हुआ था। अपने पति और ससुर मल्हारराव होलकर के निधन के बाद, अहिल्याबाई ने 1767 में मालवा की गद्दी संभाली। अपने शासन के दौरान, उन्होंने न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया, जिससे उनके राज्य में शांति और समृद्धि का माहौल बना। उनके द्वारा किए गए सुधारों में किसानों के लिए करों में राहत, जल प्रबंधन, अनाज भंडारण और खेती की बेहतर व्यवस्था जैसी अनेक योजनाएं शामिल थीं, जिनसे जनता का जीवन स्तर ऊंचा उठा। महिला कल्याण के लिए उन्होंने विधवाओं को उनकी संपत्ति पर अधिकार दिए और महिला साक्षरता को बढ़ावा दिया। समाज से निर्वासित भील और गोंड समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ा और उनके जीवन यापन का प्रबंध भी किया। इसके अतिरिक्त कौशल विकास को प्रोत्साहन देने हेतु, लोकमाता ने मांडू और सूरत से आमंत्रित बुनकरों को महेश्वर में स्थापित किया और माहेश्वरी सिल्क उद्योग प्रारम्भ भी किया।
लोकमाता अहिल्याबाई होलकर द्वारा देश भर में विदेशी आक्रमणों से आहात सनातन के पुनरुत्थान और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के महत्वपूर्ण कार्यों को पूर्ण किया गया । उन्होंने काशी विश्वनाथ, सोमनाथ, अयोध्या, ओम्कारेश्वर, त्र्यंबकेश्वर और मथुरा जैसे धार्मिक स्थलों पर निर्माण और पुनर्निर्माण के कार्य किये, जो आज भी आस्था के केंद्र हैं. इसके अतिरिक्त, तीर्थ यात्रियों के लिए सड़कों, कुओं, घाटों, धर्मशालाओं का निर्माण एवं अन्नक्षेत्र व् दानशालाओं की व्यवस्था भी की। हिंदू धर्म संरक्षिका, शिव की परम भक्त, रानी अहिल्याबाई द्वारा पूर्ण यह कार्य उनके कुशल नेतृत्व और दूरदृष्टि के द्योतक हैं। उनकी मानवीय नीतियों और लोकप्रिय शासन के कारण, उन्हें लोकमाता का दर्जा प्राप्त हुआ। डा अरोरा ने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के तीस वर्ष का शासनकाल मालवा प्रान्त के स्वर्णिम काल के रूप में देखा जाता है।
उनके द्वारा शासित इंदौर, आज भी भारत के सबसे विकसित शहरों में आता है। उनके द्वारा किये गए धर्मार्थ कार्य जहाँ एक ओर सनातन का संरक्षण करते हैं वहीं दूसरी ओर आधुनिक भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की नींव भी रखते हैं। इन अभूतपूर्व योगदानों के निहित, लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की कीर्ति भारतवर्ष में सदैव गुंजायमान रहेगी।
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