दिल्ली फतेह दिवस मनाया गया

By: Dilip Kumar
3/16/2025 4:44:13 PM
नई दिल्ली

कुलवंत कौर के साथ बंसी लाल की रिपोर्ट। सिख जनरलों द्वारा 1783 में दिल्ली पर की गई फतेह की याद गुरुद्वारा श्री गुरू सिंह सभा, मोती नगर में बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई गई। दो दिवसीय गुरमत समागम के पहले दिन विशेष सायंकालीन दीवान के अवसर पर श्री दरबार साहिब के हजूरी रागी भाई सुखजीत सिंह जी के जत्थे ने गुरबाणी कीर्तन तथा दूसरे दिन बीबी पुष्पिंदर कौर खालसा के ढाड़ी जत्थे ने ढाडी वारों से संगतों को निहाल किया। गुरुद्वारा साहिब के अध्यक्ष रविंदर सिंह बिट्टू और महासचिव राजा सिंह ने दिल्ली फतेह दिवस के अवसर पर संगतों को बधाई दी और उनसे अपने बच्चों को इस गौरवशाली इतिहास के बारे में बताने की अपील की। रविन्द्र सिंह बिट्टू ने अफसोस जताया कि सरकारों ने हमारे गौरवशाली इतिहास को उचित सम्मान नहीं दिया, जबकि सिखों ने हमेशा इस देश के लिए अग्रणी भूमिका निभाई है। गुरू नानक साहिब जी से जुड़े तीन ऐतिहासिक गुरुद्वारों का अस्तित्व नष्ट करने के उठे हुए कदम भी गलत हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए था।

इस अवसर पर भाई बीबा सिंह खालसा स्कूल के मैनेजर डॉ. परमिंदर पाल सिंह ने दिल्ली फतेह दिवस से संबंधित ऐतिहासिक संदर्भों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली फतेह के बाद से लेकर दिल्ली में 7 ऐतिहासिक गुरुद्वारों की स्थापना तक बाबा बघेल सिंह द्वारा अपनाई गई कूटनीति अद्भुत थी। लेकिन हम इस इतिहास को अपने लोगों तक नहीं पहुंचा सके। बाबा बघेल सिंह ने जहां गुरूओं के चरण स्पर्श वाले इतिहासिक महत्व के स्थानों की स्थापना के लिए अपने जीते हुए राज को कुर्बान करने से भी संकोच नहीं किया, वहीं उन्होंने खालसा फौज के सम्मान और गरिमा को भी कम नहीं होने दिया। विशेषकर, बिना हथियार उठाए गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब के मूल स्थान से दूसरे धार्मिक स्थल को स्थानांतरित करवाना कूटनीतिक पैंतरेबाजी की पराकाष्ठा थी। क्योंकि दक्षिण दिशा में जाने से पहले गुरू गोबिंद सिंह साहिब जी ने इस पवित्र स्थान पर मंजी साहिब का निर्माण करवाया था। लेकिन सांप्रदायिक सोच से मंजी साहिब से छेड़छाड़ की गई थी। पर ऐतिहासिक स्रोतों में भी गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब के रूप में बाबा बघेल सिंह द्वारा किए गए जीर्णोद्धार पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। इसलिए यह कहा जा सकता है कि दिल्ली फतेह दिवस सिख इतिहास में एक गौरवपूर्ण एवं शानदार घटना है, जो "राज करेगा खालसा" और "हम राखत पातशाही दावा" के आदर्श वाक्य को पुष्ट करती है। यह सिखों की स्वतंत्र प्रकृति और खुले विचारों का भी प्रमाण है। इस अवसर पर जत्थों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।


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