नाबार्ड दिल्ली ने ‘भौगोलिक संकेत (GI) आधारित आजीविका’ का उत्सव मनाया
By: Dilip Kumar
9/17/2025 11:58:37 AM
कुलवंत कौर के साथ बंसी लाल की रिपोर्ट। भारत में 15 सितंबर 2003 को भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 (जीआई अधिनियम) के लागू होने पर एवं भौगोलिक संकेतकों (Geographical Indications - GI) के शुभारंभ की स्मृति में, नाबार्ड नई दिल्ली क्षेत्रीय कार्यालय ने भौगोलिक संकेतक (GI) दिवस मनाया। इस कार्यक्रम का थीम था “परंपरा का संरक्षण, GI के माध्यम से आजीविका का संवर्धन”, जो भारत की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर और ग्रामीण आजीविका को समृद्ध एवं सशक्त बनाने में GI की परिवर्तनकारी क्षमता को रेखांकित करता है।
इस समारोह की शोभा बढ़ाने वाले गणमान्य अतिथियों में देबाशीष मिश्रा, मुख्य महाप्रबंधक, एसबीआई; डॉ. राजनीकांत, पद्मश्री पुरस्कार प्राप्तकर्ता एवं GI विशेषज्ञ; राजेश कुमार, महाप्रबंधक एवं संयोजक SLBC; डॉ. हरगोपाल यंद्रा, प्रबंध निदेशक, NABCONS; जीजी मामेन, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, SaDhan; वीरेंद्र कुमार, क्षेत्रीय निदेशक, उत्तर क्षेत्र, हस्तशिल्प कार्यालय भारत सरकार; अदिति गुप्ता, उपमहाप्रबंधक, भारतीय रिज़र्व बैंक; तथा आकाश पवार, उपमहाप्रबंधक, SIDBI शामिल थे।
इस आयोजन में LDMs, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME), राज्य सरकार के अधिकारी, बैंकर्स, संभावित अधिकृत उपयोगकर्ता समूह, कारीगरों आदि ने सक्रिय भागीदारी की। सभी प्रतिभागियों के बहुमूल्य विचारों एवं सुझावों से GI पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में संवाद समृद्ध हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत लघु फिल्म “दिल्ली की धरोहर – GI आधारित आजीविका” के लोकार्पण से हुई। इस फिल्म में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली की पारंपरिक शिल्पकला लकड़ी की नक्काशी, काँच की मोतियों का काम और टेराकोटा मिट्टी के बर्तन, जिन्हे नाबार्ड द्वारा जीआई registration के लिए समर्थित किया गया है, की यात्रा को दर्शाया गया। लघु फिल्म में GI पंजीकरण द्वारा इन शिल्पकलाओं को नई ऊर्जा, परंपरा का संरक्षण, कारीगरों की आजीविका का सशक्तिकरण पर भी प्रकाश डाला गया। कार्यक्रमों के दौरान इन उत्पादों की एक जीवंत प्रदर्शनी भी आयोजित की गयी थी।
अपने स्वागत भाषण में नवीन कुमार राय, महाप्रबंधक/प्रभारी अधिकारी, नाबार्ड नई दिल्ली क्षेत्रीय कार्यालय ने GI के संवर्द्धन में नाबार्ड की अग्रणी भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि GI केवल एक कानूनी मान्यता ही नहीं, बल्कि आर्थिक सशक्तिकरण, सांस्कृतिक संरक्षण और भारत की धरोहर को वैश्विक स्तर पर पुनर्स्थापित करने का एक प्रभावी साधन है। नाबार्ड की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए उन्होने वित्तीय सहयोग, विपणन संपर्क, ब्रांडिंग और जन-जागरूकता अभियानों के माध्यम से नाबार्ड द्वारा किए जा रहे प्रयासों को सभी के समक्ष रखा। दिल्ली में GI पंजीकरण के विस्तार की अपनी दृष्टि साझा करते हुए श्री राय ने हेरीटेज फाइनेंसिंग (धरोहर वित्तपोषण) की उभरती संभावनाओं को ग्रामीण विकास को समृद्ध करने का एक सशक्त साधन बताया। साथ ही उन्होंने बैंकरों से आह्वान किया कि वे इस क्षेत्र को “Vocal for Local & Local for Global” के लक्ष्य को साकार करने हेतु एक नए अवसर (ग्रीनफ़ील्ड) के रूप में अपनाएँ।
कार्यक्रम के दौरान भौगोलिक संकेतक (GI) और नाबार्ड की GI नीति पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी गई। अब तक नाबार्ड द्वारा देशभर में 464 उत्पादों को समर्थन प्रदान किया गया है, जिनमें से 139 उत्पादों को सफलतापूर्वक GI टैग प्राप्त हुआ है। GI पंजीकरण के पश्चात की गतिविधियों पर भी कार्य आरंभ किया गया है, जिनमें अधिकृत उपयोगकर्ताओं (Authorised Users) की एक प्रमाणित दक्ष जनशक्ति का निर्माण शामिल है। वर्तमान में पूरे भारत में नाबार्ड द्वारा सोलह हज़ार से अधिक अधिकृत उपयोगकर्ताओं का पंजीकरण द्वारा कराया जा चुका है।
कार्यक्रम के दौरान देबाशीष मिश्रा, मुख्य महाप्रबंधक, एसबीआई ने कहा कि GI टैग न केवल देशी उत्पादों की पहचान की रक्षा करते हैं, बल्कि कारीगरों और किसानों को एक विशिष्ट बाज़ार भी प्रदान करता हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है और उन्हें व्यापक पहचान मिलती है। उन्होंने रेखांकित किया कि भौगोलिक संकेतक (GI) में रोजगार सृजन की अपार संभावनाएँ हैं, विशेषकर ग्रामीण भारत में, जहाँ पारंपरिक शिल्प, कृषि उत्पाद और स्थानीय ज्ञान अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इन उत्पादों की विशिष्ट पहचान का लाभ घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए बाज़ार अवसर प्रदान कर सकता है।
उन्होंने कहा कि GI का समर्थन केवल एक आर्थिक पहल नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संकल्प है – जो धरोहर को संरक्षित करते हुए कारीगरों को सशक्त बनाता है। आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत की राह में, GI उत्पादों को बढ़ावा देना राष्ट्रीय दृष्टि – स्वावलंबन और समावेशी विकास – के अनुरूप है। उन्होंने ज़ोर दिया कि वाणिज्यिक बैंक जैसे एसबीआई तथा विकास वित्त संस्थाएँ जैसे नाबार्ड और SIDBI पर सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि वे GI उत्पादों के निर्माण और संवर्द्धन में लगे कारीगरों और समुदायों का सहयोग करें, ताकि उनकी स्थिरता और विकास सुनिश्चित हो। उन्होंने यह भी कहा कि GI ग्रामीण भारत को वैश्विक मानचित्र पर सशक्त रूप से स्थापित कर सकता है और सभी बैंकरों से इस पहल को समर्थन देने का आग्रह किया।
वीरेंद्र कुमार, क्षेत्रीय निदेशक, हस्तशिल्प, भारत सरकार ने एनसीटी दिल्ली में नाबार्ड की अभिनव पहलों की सराहना की और इस प्रयास में नाबार्ड को पूर्ण सहयोग और समर्थन देने का आश्वासन दिया। पद्मश्री डॉ. राजनीकांत, विशेषज्ञ वक्ता ने GI आंदोलन को समर्थन देने और पारंपरिक उत्पादों के पंजीकरण को संभव बनाने में नाबार्ड की भूमिका की सराहना की, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि ये धरोहरें आने वाली पीढ़ियों तक बनी रहें। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें तथा नाबार्ड, प्रदर्शिनियों, व्यापार मेलों और अन्य मंचों के माध्यम से GI टैग प्राप्त उत्पादों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहे हैं, फिर भी और बहुत कुछ किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हितधारकों के छोटे-छोटे योगदान भी GI उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने में सहायक हो सकते हैं। उन्होंने GI पंजीकरण के बाद की पहलों जैसे कौशल उन्नयन, आवश्यकताओं का आकलन, डिज़ाइन विकास, अधिकृत उपयोगकर्ताओं का पंजीकरण आदि की आवश्यकता पर बल दिया। युवाओं में GI को लोकप्रिय बनाने के लिए गुणवत्ता नियंत्रण, ब्रांडिंग और कुशल आपूर्ति व्यवस्था की अहमियत को रेखांकित किया, जिससे विश्वास और दृश्यता दोनों बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि नाबार्ड, एसबीआई, सिडबी जैसी संस्थाओं की ज़िम्मेदारी है कि वे कारीगरों का समर्थन करें और GI पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बनाएं।
कारीगर संस्थाओं, जैसे फलाह हैंडीक्राफ्ट सोसाइटी और मा धारित्री टेराकोटा एंड एलाइड प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड ने अपने अनुभव और सरकार तथा नाबार्ड से अपेक्षाएँ साझा कीं। कार्यक्रम का समापन इस आह्वान के साथ हुआ कि भारत के GI उत्पादों की जागरूकता, पहचान, उपभोग और संवर्द्धन के लिए सामूहिक प्रयास किए जाएँ, ताकि धरोहर को आजीविका में और परंपरा को सतत विकास में बदला जा सके।