इराक में कुर्दिश रेफरेंडम के घातक परिणाम होंगे।

By: Devendra Gautam
9/17/2017 11:48:44 PM
अभिमन्यु कोहाड़
 
इराक में कुर्दिश लोगों को अर्द्ध-स्वायत्ता हासिल है जिसके तहत उनके आंतरिक मामलों में इराकी सेंट्रल सरकार का हस्तक्षेप बहुत कम है। वहीं दूसरी तरफ विदेश मामलें, तेल का निर्यात जैसे मुद्दे सेंट्रल सरकार देखती है। अब कुर्दिश सरकार ने पूर्ण-आज़ादी के लिए 25 सितम्बर को रेफरेंडम की तारीख निश्चित की है। यह एक बड़ा फैसला है और इसके दूरगामी परिणाम होंगे इसलिए इसकी उचित समीक्षा किया जाना जरूरी है। कुर्दिश लोग पश्चिम एशिया के 4 देशों ईरान, इराक, सीरिया और तुर्की में बसे हुए हैं। इन चारों देशों में कुर्दिश आंदोलन होते रहे हैं। इराक में अर्द्ध-स्वायत्ता वाली कुर्दिस्तान रीजनल गवर्नमेंट है जिसकी राजधानी इरबिल में है। कुर्दिश लोग एथनिक आधार पर अलग देश बनाना चाहते हैं। कई कारणों से यह रेफरेंडम का निर्णय गलत है। पहला कारण है कि एथनिक या धर्म के आधार पर राष्ट्र बनाने की मांग ही गलत है। गलत इसलिए क्योंकि इस से पूरे विश्व में एथनिक और धार्मिक आधार पर लड़ाइयां शुरू हो जाएंगी। अनेक धर्मों और एथिनिसिटी को मिलाकर एक राष्ट्र बनता है, ना कि इन्हें अलग अलग कर के। 1947 और उसके बाद पाकिस्तान और इजराइल को धर्म के आधार पर अलग राष्ट्र का दर्जा दिया गया और उसका नतीजा हम सब के सामने है। एक तरफ पाकिस्तान है जो आतंक का केंद्र है तो दूसरी तरफ इजराइल जिसने सभी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को तोड़ते हुए फिलिस्तीनियों को उनकी धरती से बेदखल कर दिया। दुनिया का अनुभव यह रहा है कि धर्म या एथनिसिटी के आधार पर बने हुए राष्ट्र गलत कार्यों में संलिप्त रहते हैं। 
दूसरा कारण ये है कि हमें यह भी समझना चाहिए कि इस रेफरेंडम से फायदा किसे होगा? एकमात्र देश जो खुल के इस रेफरेंडम का समर्थन कर रहा है वो है इजराइल। ऑडिड यिनोन्न प्लान इजराइल का सपना है जिसके तहत इजराइल पश्चिमी एशिया के सभी देशों को धर्म या एथनिसिटी के आधार पर बांटना चाहता है और इस तरीके से पूरे क्षेत्र में अपनी बादशाहत स्थापित करना चाहता है। इराक के साथ इजराइल की दुश्मनी जगजाहिर है। इसलिए कहीं ऐसा तो नहीं कि इस रेफरेंडम के पीछे इजराइल हो? कहीं कुर्दिश लोगों का इस्तेमाल तो नहीं हो रहा है? कहीं इस रेफरेंडम के ज़रिए इजराइल द्वारा इराक को तोड़ा तो नहीं जा रहा है? ये बड़े प्रश्न हैं जिनके उत्तर ढूंढना बहुत ही जरूरी है। 
तीसरा कारण ये है कि इस समय पूरे पश्चिम एशिया में इस्लामिक स्टेट नाम के आतंकवादी संगठन ने पैर पसारे हुए हैं। कुर्दिश सेना पेशमर्गा और इराकी सेना व पैरामिलिटरी फोर्सेज इस समय आतंकियों के खिलाफ अभियान छेड़े हुई हैं। इराक की सेंट्रल सरकार ने यह घोषणा कर दी है कि अगर रेफरेंडम कैंसिल नहीं किया गया तो इराकी सेना और दूसरी पैरामिलिटरी फोर्सेज इराक की एकता के लिए पूरी ताकत से लड़ेंगी और कुर्दिश सेना को कुचल दिया जाएगा। इसलिए अगर यह टकराव होता है तो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कमज़ोर हो जाएगी। इस से आतंकवाद के फैलने का खतरा फिर से मंडराने लगेगा। इसलिए रेफरेंडम को कैंसिल कर के सब ताकतों को अपना ध्यान आतंकियों को कुचलने में लगाना चाहिए। 
चौथा और अंतिम कारण ये है कि कुर्दिस्तान की बड़ी विपक्षीय पार्टी "गोररण" इस रेफरेंडम का विरोध कर रही है। विपक्षीय पार्टियों का यह भी आरोप है कि वर्तमान कुर्दिश राष्ट्रपति बर्ज़ानि का कार्यकाल पहले ही खत्म हो चुका है और पार्लिमेंट भी अभी चालू नहीं है इसलिए यह रेफरेंडम का फैसला गैरकानूनी है। 
इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए कुर्दिश रेफरेंडम को कैंसिल करना ही सबके हित में है। पश्चिम एशिया में शांति बनाने के लिए इस रेफरेंडम को तुरंत कैंसिल कर देना चाहिए। 

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