सिक्के का दूसरा पहलू

By: Devendra Gautam
4/1/2018 12:28:59 PM
Ranchi

 

देवेंद्र गौतम

आज की तारीख में चिल्लर भारतीय बाजार की बड़ी समस्या बन गए हैं। दुकानदार तो दुकानदार बैंक तक उन्हें सीमित संख्या में ही स्वीकार कर रहे हैं। मध्यम वर्ग के लोग जरूरी चीजें नहीं खरीद पा रहे क्योंकि उनके पास नोटों की कमी और सिक्कों की बहुतायत है। सवाल है कि इतनी भारी तादाद में सिक्के आए कहां से। देश के आम लोगों ने तो इन्हें नहीं छापा। सरकारी टकसाल में ही इन्हें बनाया गया है।

नोटबंदी से पहले बाजार में नोटों की बहुतायत थी और सिक्कों की कमी। दुकानदार 95 रुपयों के सिक्कों के एवज में सौ का नोट देते थे। यह भिखारियों और गुल्लक में पैसे जमा करने वालों के लिए अतिरिक्त आय का जरिया बन गया था। नोटबंदी के बाद स्थिति उल्टी हो गई है। अब सिक्कों की बहुतायत है नोटों की कमी। नोटबंदी के दौरान जब आमलोगों को बैंकों से ढाई और साढ़े चार हजार तक नकदी निकासी की अनुमति थी तो बैंकों ने खातेदारों को नोटों की जगह थैली भर-भरकर सिक्के दिए थे। यह उनकी उस समय की विवशता थी। सरकार ने नोट तो बंद कर दिए थे लेकिन नए नोटों की छपाई नहीं हो पाई थी। अब सिक्कों का वही भंडार बाजार में परेशानी का सबब बना हुआ है।

       आलम यह है कि दुकानदारों के पास बोरे के बोरे सिक्के जमा हो गए हैं। वे सिक्कों के एवज में सामान देने से साफ इनकार कर दे रहे हैं। रिजर्व बैंक बार-बार यह फरमान जारी कर रहा है कि सिक्के लेने से इनकार करने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। यह दंडनीय अपराध है। लेकिन आलम यह है कि बैंक भी सीमित मात्रा में ही सिक्के स्वीकार कर रहे हैं। यानी सिक्के लेने से इनकार करने के दंडनीय अपराध में बैंक भी शामिल हैं। उनपर तो कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। अगर सरकार बैंको से ही कानूनी कार्रवाई की शुरुआत करे तो हालात पर काबू पाया जा सकता है। इस स्थिति का खमियाजा भी निम्न मध्यम वर्ग को ही उठाना पड़ रहा है। बेहतर होगा कि सरकार एक मुहिम चलाकर सिक्कों को वापस ले और बाजार में आई अराजकता की इस स्थिति को नियंत्रित करे। देश की जनता सरकारी नीतियों का खमियाजा भुगत रही है। यह उचित नहीं है।


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