आध्यात्मिक गुरु भय्यूजी महाराज ने खुद को मारी गोली,मौत

By: Dilip Kumar
6/12/2018 3:27:12 PM
नई दिल्ली

अध्यात्मिक गुरु भय्यूजी महाराज (50) ने मंगलवार को यहां गोली मारकर खुदकुशी कर ली। उन्हें इंदौर के बॉम्बे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने बताया कि वहां पहुंचने से आधा घंटे पहले ही उनकी मौत हो चुकी थी। पुलिस ने घटनास्थल को सील कर दिया है। मामले की जांच कर रही है। घटना की सूचना फैलते ही सैकड़ों की संख्या में उनके समर्थक अस्पताल पहुंच गए। मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ महीने पहले ही उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा देन की पेशकश की थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था।

भय्यूजी महाराज चर्चा में तब आए जब अन्ना हजारे के अनशन को खत्म करवाने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने अपना दूत बनाकर भेजा था। बाद में अन्ना ने उनके हाथ से जूस पीकर अनशन तोड़ा था। पीएम बनने के पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी सद्भावना उपवास पर बैठे थे। तब उपवास खुलवाने के लिए उन्होंने भय्यूजी महाराज आमंत्रित किया था। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देखमुख, शरद पवार, लता मंगेशकर, उद्धव ठाकरे और मनसे के राज ठाकरे, आशा भोंसले, अनुराधा पौडवाल, फिल्म एक्टर मिलिंद गुणाजी भी उनके आश्रम आ चुके हैं।

कौन हैं भय्यूजी महाराज,मॉडलिंग से संत बनने का सफरनामा

भय्यूजी का असली नाम उदय सिंह शेखावत था लेकिन महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में ज्यादातर लोग उन्हें भय्यूजी महाराज के नाम से ही जानते हैं। वहां उनके हजारों समर्थक हैं। भय्यूजी महाराज गृहस्थ जीवन में रहते हुए संत-सी जिंदगी जीते थे। उनकी एक बेटी कुहू है। वह अक्सर ट्रैक सूट में भी नजर आते थे। एक किसान की तरह वह कभी अपने खेतों को जोतते-बोते दिखते थे, तो कभी क्रिकेट के शौकीन नजर आते थे। घुड़सवारी और तलवारबाजी में महारथ के अलावा कविताओं में भी उनकी दिलचस्पी थी। जवानी में उन्होंने सियाराम शूटिंग-शर्टिंग के लिए पोस्टर मॉडलिंग भी की थी।

29 अप्रैल 1968 में मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के शुजालपुर में जन्मे भय्यूजी के चहेतों के बीच धारणा है कि उन्हें भगवान दत्तात्रेय का आशीर्वाद हासिल है। महाराष्ट्र में उन्हें राष्ट्र संत का दर्जा मिला था। बताते हैं कि सूर्य की उपासना करने वाले भय्यूजी महाराज को घंटों जल समाधि करने का अनुभव था। राजनीतिक क्षेत्र में उनका खासा प्रभाव रहा। उनके ससुर महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं। दिवंगत केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख से उनके करीबी संबंध रहे। बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत भी उनके भक्तों की सूची में शामिल थे। महाराष्ट्र की राजनीति में उन्हें संकटमोचक के तौर पर देखा जाता था।

भय्यूजी महाराज पद, पुरस्कार, शिष्य और मठ के विरोधी रहे। उनके अनुसार देश से बड़ा कोई मठ नहीं होता है। व्यक्तिपूजा को वह अपराध की श्रेणी में रखते थे। उन्होंने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और समाज सेवा के बडे़ काम किए। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंडारपुर में रहने वाली वेश्याओं के 51 बच्चों को उन्होंने पिता के रूप में अपना नाम दिया। यही नहीं बुलढाना जिले के खामगांव में उन्होंने आदिवासियों के बीच 700 बच्चों का आवासीय स्कूल बनवाया। इस स्कूल की स्थापना से पहले जब वह पार्धी जनजाति के लोगों के बीच गए, तो उन्हें पत्थरों से मार कर भगा दिया गया। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आखिर में उनका भरोसा जीत लिया। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में उनके कई आश्रम हैं।

भय्यूजी महाराज ग्लोबल वॉर्मिंग से भी चिंतित रहते थे, इसीलिए गुरु दक्षिणा के नाम पर एक पेड़ लगवाते थे। अब तक 18 लाख पेड़ उन्होंने लगवाए। आदिवासी जिलों देवास और धार में उन्होंने करीब एक हजार तालाब खुदवाए। वह नारियल, शॉल, फूलमाला भी नहीं स्वीकार करते थे। वह अपने शिष्यों से कहते थे कि फूलमाला और नारियल में पैसा बर्बाद करने की बजाय उस पैसे को शिक्षा में लगाया जाना चाहिए। ऐसे ही पैसे से उनका ट्रस्ट करीब 10 हजार बच्चों को स्कॉलरशिप देता है।


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