निजी अस्पतालों में पैसा कमाने के लिए C-Section से प्रसव की संख्या अधिक

By: Dilip Kumar
12/2/2018 5:17:06 PM
नई दिल्ली

भारत में एक साल में निजी अस्पतालों में हुए 70 लाख प्रसवों से से नौ लाख प्रसव बगैर पूर्व योजना के सीजेरियन सेक्शन (C-Section) के जरिये हुए, जिन्हें ‘रोका’ जा सकता था और ये ऑपरेशन मुख्यत: पैसा कमाने के लिए किये गये. भारतीय प्रबंधन संस्थान-अहमदाबाद ने एक अध्ययन में यह कहा है. शिशुओं के ‘चिकित्सीय रूप से अनुचित’ ऐसे जन्म से न केवल लोगों की जेब पर बोझ पड़ता, बल्कि इससे ‘स्तनपान कराने में देरी हुई, शिशु का वजन कम हुआ, सांस लेने में तकलीफ हुई’. इसके अलावा नवजातों को अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ा. आईआईएम-ए के फैकल्टी सदस्य अंबरीश डोंगरे और छात्र मितुल सुराना ने यह अध्ययन किया.

अध्ययन में पाया गया कि जो महिलाएं प्रसव के लिए निजी अस्पतालों का चयन करती हैं, उनमें सरकारी अस्पतालों के मुकाबले बगैर पूर्व योजना के सी-सेक्शन से बच्चे को जन्म देने की आशंका 13.5 से 14 फीसदी अधिक होती है. ये आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के 2015-16 में हुए चौथे चरण पर आधारित हैं, जिसमें पाया गया कि भारत में निजी अस्पतालों में 40.9 फीसदी प्रसव सी-सेक्शन के जरिये  हुए, जबकि सरकारी अस्पतालों में यह दर 11.9 प्रतिशत रही. अध्ययन में कहा गया है कि सी-सेक्शन के जरिये नवजातों का जन्म कराने के पीछे मुख्य वजह ‘वित्तीय लाभ’ कमाना रहा.

एनएफएचएस का हवाला देते हुए आईआईएम-ए के अध्ययन में कहा गया है कि किसी निजी अस्पताल में प्राकृतिक तरीके से प्रसव पर औसत खर्च 10,814 रुपये होता है, जबकि सी-सेक्शन से 23,978 रुपये होता है. अध्ययन में कहा गया है, ‘चिकित्सीय तौर पर स्पष्ट किया जाये, तो सी-सेक्शन से प्रसव से मातृ और शिशु मृत्यु दर और बीमारी से बचाव होता है, लेकिन जब जरूरत न हो, तब सी-सेक्शन से प्रसव कराया जाये, तो इससे मां और बच्चे दोनों पर काफी बोझ पड़ता है, जो जेब पर पड़ने वाले बोझ से भी अधिक होता है.’

इसमें कहा गया है कि सी-सेक्शन से प्रसव की संख्या कम करने के लिए सरकार को न केवल उपकरणों और कर्मचारियों के लिहाज से बल्कि अस्पताल के समय, सेवा प्रदाताओं की अनुपस्थिति और बर्ताव के लिहाज से भी सरकारी अस्पतालों की सुविधाओं को मजबूत करना होगा.


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