गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला एक बार फिर भाजपा में शामिल हो गए

By: Dilip Kumar
4/10/2019 6:47:04 PM
नई दिल्ली

पिछले 14 वर्ष के दौरान राजस्थान की हर सरकार में आरक्षण के बड़े आंदोलन करने वाले गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला एक बार फिर भाजपा में शामिल हो गए। बुधवार को दिल्ली मे बैंसला ने पहले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से उनके निवास पर मुलाकात की और बाद में भाजपा मुख्यालय में राजस्थान के लोकसभा चुनाव प्रभारी प्रकाश जावडेकर ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। बैंसला के साथ उनके पुत्र विजय बैंसला भी भाजपा में शामिल हुए है।

उधर, कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने कहा कि वो गुर्जर आंदोलन से 14 साल से जुड़े रहे। इस दौरान दोनों पार्टियों के नजदीक रहे हैं और दोनों पार्टियों की कार्यश्रैली को भी देखा है, लेकिन जो प्रधानमंत्री मोदी में देखने को मिला, वह कहीं नहीं है। वो साधारण लोगों की तकलीफ समझते हैं और मैं उनकी कार्यशैली से प्रभावित होकर ही इस पार्टी में शामिल हो रहा हूं। कर्नल बैंसला ने कहा कि वे पार्टी में किसी पद और हैसियत के लिहाज से नहीं बल्कि साधारण कार्यकर्ता के तौर पर काम करेंगे।

कर्नल बैंसला पहले भी भाजपा में रह चुके है। वर्ष 2007-08 में राजस्थान में गुर्जरों के पहले और सबसे चर्चित आंदोलन के बाद वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के टिकट पर टोंक सवाई माधोपुर की सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन कांग्रेस के नमोनरायण मीणा से बहुत कम अंतर से चुनाव हार गए थे। इसके बाद वे भाजपा मे कभी सक्रिय नहीं रहे।

विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार दिख रहे थे। यही कारण था कि गुर्जर समुदाय का लगभग पूरा वोट बैंक कांग्रेस की तरफ मुड़ गया था, लेकिन पायलट को उपमुख्मंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा। इसकी नाराजगी गुर्जर समुदाय में दिख रही है और गुर्जरों की इसी नाराजगी को भाजपा बैंसला के जरिए भुनाएगी। भाजपा के पास गुर्जर समुदाय का कोई बड़ा चेहरा नहीं था। ऐसे में बैंसला अब भाजपा में सचिन पायलट का जवाब माने जा रहे हैं।

बैंसला के आने से भाजपा को टोंक-सवाई माधोपुर, दौसा, करौली’-धौलपुर, भरतपुर, अलवर, अजमेर, भीलवाडा, कोटा, झालावाड-बारां और राजमसंद सीटों पर फायदा मिलने की उम्मीद है, क्योंकि इन सीटों पर गुर्जर बड़ी संख्या में हैं और गुर्जर आंदोलन के समय इन जिलों से कर्नल बैंसला को अच्छा समर्थन मिलता रहा है।  1962 और 1965 की लड़ाइयों में सेना में रह चुके कर्नल बैंसला ने गुर्जरों के आरक्षण के लिए 2007-08 में पहला आंदोलन किया था। इसके बाद से हर सरकार में उन्होंने इस मांग को पुरजोर ढंग से उठाया। उनके इशारे पर ही राजस्थान में गुर्जरों के सफल आंदोलन हुए, क्योंकि हर बार आंदोलन के बाद सरकारों को गुर्जर आरक्षण के लिए बिल पारित करने पड़े। हाल में फरवरी में भी उन्होंने करीब सात दिन तक ट्रैक रोक दिया था और सरकार को उनके दबाव में बिल लाकर गुर्जरों को आरक्षण देना पड़ा था।

इस आंदोलन के बाद हालांकि यह माना जा रहा था कि बैंसला कांग्रेस से जुड़ सकते हैं, क्योंकि सरकार ने उनकी मांग पूरी की थी। वे मुख्यमत्री अशोक गहलोत से मिले भी थे, लेकिन बाद में उनकी बेटी को भाजपा से टिकट मिलने की चर्चा शुरू हो गई। हालांकि टिकट नहीं मिला और अब उन्हें या उनके परिवार में किसी को टिकट मिलने की संभावना भी नहीं है। माना जा रहा है कि कर्नल बैंसला को भाजपा राज्यसभा में भेज सकती है। इसके अलवा वे अब अपने बेटे विजय बैंसला को राजनीति में आगे बढ़ाना चाहते हैं और इसी दृष्टिकोण से उन्होंने खुले तौर पर किसी पार्टी का दामन थामा है, क्योंकि विधानसभ चुनाव में उन्होंने खुल कर किसी पार्टी का समर्थन नहीं किया था।


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