अंग्रेजों ने किया सिखों को सनातन से लड़ाने का षड्यंत्र:सरदार इकबाल सिंह

By: Dilip Kumar
9/5/2024 1:08:54 PM
नई दिल्ली

कुलवंत कौर के साथ बंसी लाल की रिपोर्ट। सनातन, जैन, बौद्ध और सिख, इन सभी की माँ एक है, लेकिन अंग्रेजों ने सिख और सनातन में फूट डालने का षड्यंत्र कर समाज में भेद पैदा किया। ये बातें आज राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ. इकबाल सिंह लालपुरा जी ने आज नई दिल्ली में आयोजित सिख गुरुओं की राष्ट्रीय दृष्टि नामक पुस्तक के लोकार्पण में कहीं। उन्होंने कहा कि गुरुग्रंथ साहिब में लिखा है कि प्रथम गुरु नानक देव जी भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। इसलिए गुरु केवल सिखों के नहीं, पूरे भारत के हैं। सिख साहित्य के अनुपम विद्वान रहे स्व. राजेंद्र सिंह जी की लिखी तथा संकलित पुस्तक सिख गुरुओं की राष्ट्रीय दृष्टि का लोकार्पण बुधवार, 4 सितम्बर 2024 को सरदार दयाल सिंह सांध्य महाविद्यालय में संपन्न हुआ। पुस्तक का लोकार्पण राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ. इकबाल सिंह लालपुरा जी, दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमिटी के मुख्य सलाहकार सरदार परमजीत सिंह चंडोक जी ने किया तथा पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. जगबीर सिंह जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।

इस अवसर पर परमजीत सिंह चंडोक ने कहा कि गुरुओं ने मानवता का संदेश दिया और खालसा पंथ की स्थापना की। देश में पहली बार ऐसी सरकार आई है, जो गुरुओं के दिवसों का उत्सव आयोजित कर रही है। देश की स्वाधीनता के 75 वर्षों में पहली बार इसी सरकार ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलकर वहाँ तक आम जन की पहुँच को सुगम बनाया। पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. जगबीर सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि बंदा बहादुर और राजा रणजीत सिंह तक हम एक रहे हैं। बाद में अंग्रेजों ने हमें अलग करने का षड्यंत्र किया। उन्होंने काहन सिंह नाभा जैसे लोग खड़े किये, जिन्होंने आधे-अधूरे उद्धरणों से फूट डालने का कार्य किया। यह पुस्तक इन सभी षड्यंत्रों का उन्मूलन करती है। इस पुस्तक का मूल भाव है कि सिख समाज भारत का एक अभिन्न अंग रहा है। प्रथम गुरु नानकदेव जी ने भारत को एक समग्र इकाई के रूप में प्रस्तुत किया था। वे पूरे भारत को एक समग्र रूप में देखते थे और तदनुरूप ही उन्होंने विधर्मी आक्रांताओं और उनके अत्याचारों का वर्णन किया। आज के विभाजनकारी दौर में गुरु नानकदेव की शिक्षाओं का पुनर्स्मरण करने की आवश्यकता है।

इस बात को ध्यान में रख कर ही प्रस्तुत पुस्तक लिखी गई है। पुस्तक के लेखक स्व. राजेंद्र सिंह जी सिख साहित्य के अप्रतिम विद्वान थे और उहोंने श्रीराम जन्मभूमि मामले में सर्वोच्च न्यायालय में गवाही देते हुए सिख साहित्य में श्रीराम जन्मभूमि का उल्लेख होने के प्रमाण प्रस्तुत किये थे। इस लोकार्पण कार्यक्रम में जीवन के विविध आयामों में समाज के लिए उल्लेखनीय योगदान के लिए सिख समाज के 14 महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्वों को सम्मानित भी किया गया। 


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